गाय का अर्थव्यवस्था के लिए योगदान

गाय का अर्थव्यवस्था

गाय के लिए इस देश के लोगों के मन में श्रद्धा किसी अंधविश्वास या धार्मिक अनुष्ठान के कारण नही वरण 
गाय की उपयोगिता के कारण है. कृषि, ग्राम उद्द्योग, यातायात के अलावा दूध, दही और छाछ,गौमूत्र और गोबर विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोगी होते हैं. यहां तक ​​कि उसकी मौत के बाद, चर्म विभिन्न वस्तुओं के निर्माण का साधन और गाय के सींग और शरीर के अन्य भाग का खाद बनाने में उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के लिए पोषक तत्वों में बहुत अमीर है और कृषि दृष्टि से बहुत कीमती है 
हमारे देश में मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है. कृषि की प्रणाली गोवंश के उपयोग पर आधारित थी. भारत के कृषि क्षेत्रों में मिट्टी, ज्यादातर बहुत नाजुक और पतली है,मिट्टी की इस स्थिति में बैलों का उपयोगसबसे उपयुक्त था. यह बताया जाता है कि 200 साल के आसपासमालाबार, तमिलनाडु और इस देश के अन्य क्षेत्रों, रेलवे लाइनों की स्थापना, यहां तक ​​कि ब्रिटिश सेना परिवहन प्रयोजनों के लिए बैलों का उपयोग किया गया गोवंश ४ टन प्रति वर्ष की दर से १२० करोड़ टन गोबर और ८० करोड़ किलो लीटर गोमूत्र प्रदान करता है. यहमात्रा लो की देश के विकास में सहायक होनी चाहिए आज पर्यावरण की समस्या बन गयी है ग्राम- शहर कीनालिओं से बह कर क्षेत्र के जलाशयों, और नदिओं के जल स्तर को ऊँचा करती जा रही है. अगर इसगोवंशशक्ति को उपयोग में लाया जाये तो १२० करोड़ टन गोबर ५०,००० करोड़ का प्राकृतिक उर्वरक, ३५,०००करोड़ की १०,००० करोड़ यूनिट बिजली और एक बैल ८ अश्वशक्ति ८० करोड़ अश्व शक्ति के सामान बैलशक्ति देशकी ग्रामीण विद्युत्, इंधन और पेय जल समाश्या का निदान है.