गौभक्त विचार

गंगाजल ख़राब क्यों नहीं होता?

हिमालय की कोख गंगोत्री से निकली गंगा (भागीरथी), हरिद्वार (देवप्रयाग) में अलकनंदा से मिलती है। यहाँ तक आते-आते इसमें कुछ चट्टानें घुलती जाती हैं जिससे इसके जल में ऐसी क्षमता पैदा हो जाती है जो पानी को सड़ने नहीं देती। हर नदी के जल की अपनी जैविक संरचना होती है, जिसमें वह ख़ास तरह के घुले हुए पदार्थ रहते हैं जो कुछ क़िस्म के जीवाणु को पनपने देते हैं और कुछ को नहीं। वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि गंगा के पानी में ऐसे जीवाणु हैं जो सड़ाने वाले कीटाणुओं को पनपने नहीं देते, इसलिए पानी लंबे समय तक ख़राब नहीं होता।

गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति के साधनों में से एक है।

गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति

गावो विश्वस्य मातरः !!......

भुक्त्वा तृणानि शुष्कानि पीत्वा तोयं जलाशयात् ।
दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो विश्वस्य मातरः॥

वेदों में कहा गया हैः गावो विश्वस्य मातरः। अर्थात् गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है। महाभारत में भी आता हैः मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः।

'गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं। वे सभी को सुख देने वाली हैं।' (महा.अनु.69.7)

लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।

लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।

गाय हूँ, मैं गाय हूँ,
इक लुप्त- सा अध्याय हूँ।
लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।
दूध मेरा पी रहे
सब,
और ताकत पा रहे।
पर हैं कुछ पापी यहाँ जो,
माँस मेरा खा रहे।
देश कैसा है जहाँ, हरपल ही गैया कट रही।
रो रही धरती हमारी,
उसकी छाती फट रही।
शर्म हमको अब नहीं है,
गाय-वध के जश्न पर,
मुर्दनी छाई हुई है,
गाय के इस प्रश्न पर।
मुझको बस जूठन खिला कर,
पुन्य जोड़ा जा रहा,
जिं़दगी में झूठ का,
परिधान ओढ़ा जा रहा।
कहने को हिंदू हैं लेकिन,
गाय को नित मारते।
चंद पैसों के

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