गौ संवर्धन दीपयज्ञ

गौ संवर्धन दीपयज्ञ

गौ संवर्धन दीपयज्ञ करने के पूर्व, गौ की उपयोगिता एवं उसके महत्त्व को प्रदर्शित करने के लिए पर्चे बांट कर, चित्र प्रदर्शनियां लगाकर, वीडियो फिल्में आदि दिखाकर तथा परिजनों की गोष्ठियां लेकर उपयुक्त माहौल बना लेना चाहिए। चित्र प्रदर्शनी एवं वीडियो फिल्में प्राप्त करने के लिए, रचनात्मक प्रकोष्ठशांतिकुञ्ज हरिद्वार से संपर्क किया जा सकता है। इस प्रदर्शनी के साथ पंचगव्य निर्मित औषधियों, उपयोगी वस्तुओं एवं कीट नियंत्रकों आदि के प्रदर्शन एवं बिक्री की व्यवस्था भी की जा सकती है। 

गौ संवर्धन दीपयज्ञों के अनुयाज कार्यक्रम में शहरी क्षेत्रों में गौ सेवा समिति एवं पंचगव्य औषधियों पर आधारित चिकित्सा केन्द्र भी प्रारंभ किये जा सकते हैं। जिनके माध्यम से गौ ग्रास के निमित्त धर्म घट भी स्थापित किए जा सकते हैं, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में चल रही गौ शालाओं को मदद दी जा सके। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में भी गौशाला समितियों का गठन करके गौ संरक्षण संवर्धन की योजनाएं चलाई जा सकती हैं। इसके लिए वातावरण बनाने का काम दीपयज्ञ के पूर्व ही कर लिया जाए। 

आवश्यक सामग्री -- 

(अ) शहरी क्षेत्रों में साधन सुविधा एवं स्थान के अभाव में छोटा किन्तु भावपूर्ण व प्रभावी आयोजन किया जाना चाहिए। गौ ग्रास एवं गौ संरक्षण के संबंधित संकल्पों के लिए संकल्प पत्रों की व्यवस्था, गाय सहित भगवान कृष्ण का चित्र, संगठित शक्ति की प्रतीक मशाल, पंचगव्य पंचामृत, गौ संरक्षण प्रदर्शनी आदि के अलावा सामान्य तथा दीपयज्ञों में लाने वाली सभी सामग्री संग्रहित कर ली जाए। 

(ब) ग्रामीण क्षेत्रों में इस दीपयज्ञ का स्वरूप बड़ा बनाया जा सकता है। इसके लिए दीपावली के अवसर पर होने वाली गोवर्धन पूजा अथवा श्रावणी अमावस्या पोला पर्व की तरह भावपूर्ण माहौल बनाया जा सकता है। 

  गांव में चौपाल या किसी अन्य खुली जगह में बड़े वृक्ष के नीचे इस दीपयज्ञ का आयोजन गोधुली बेला में किया जाना चाहिए। वृक्ष के नीचे थोड़ी जगह को गोबर से अच्छे से लीप कर एक बूढ़ी गाय एक बूढ़ा बैल तथा एक दुधारू गाय बच्चे सहित बांध दी जाए। चूने से अथवा रंगोली आदि से स्थान सजा दें। इसी के ठीक पीछे बांस के बैरिकेट बनाकर गांव के अन्य गाय बैलों को रखने की व्यवस्था करें। चूने आदि से जगह को रेखांकित करके तोरण या झालर आदि से सजा दें व बैरिकेट बंद कर दें। 

  पूजन के लिए रखे गए गौ वंश के एक तरफ देव मंच बनाया जाए, जिस पर गाय सहित भगवान कृष्ण का चित्र, भारत माता का चित्र, संगठित शक्ति के प्रतीक मशाल, गायत्री माता एवं गुरूदेव माताजी के चित्र स्थापित किये जाएं। गौ ग्रास की व्यवस्था की जाए। साथ ही गौ वंश के गले में पहनाए जाने वाली माला (सोहई) अथवा अन्य मालाओं की व्यवस्था बना दी जाए। एक अच्छे बांसुरी वादक को तैयार किया जाए, जो गौ पूजन के अवसर पर उनके बीच जाकर अच्छी बांसुरी बजा सके। पंचगव्य, पंचामृत, कलश, दीपक एवं अन्य पूजन सामग्री संकलित कर ली जाए। 

  दीपयज्ञ के मुख्य यजमान के रूप में ग्राम प्रमुख, उप प्रमुख अथवा अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति तथा हर समुदाय के एक- एक प्रतिनिधी जोड़ी (पति- पत्नी दोनों) को आमंत्रित किया जाए। इसी प्रकार बैरिकेट में स्थित गौ वंश के पूजन हेतु गांव के महिला मंडल की सदस्याओं को नियुक्त कर दिया जाए। 
  गौ वंश के दूसरी ओर की जगह में, गौ संरक्षण की भाव प्रेरणा जगाने वाली प्रदर्शनी एवं पंचगव्य द्वारा निर्मित औषधियों, कीट नियंत्रकों एवं उपयोगी सामग्री के स्टॉल लगा दिये जाएं। 

   कुछ भाई बहनों को स्वयं सेवक के रूप में तैयार कर लिया जाए। निश्चित् समय पर मंच से एक प्रेरक गीत लिया जाए। तत्पश्चात् संगठक प्रशिक्षक मुख्य पुरोहित के आसन पर बैठें तथा सभी पूजन कर्त्ता और ग्रामवासियों को यथा स्थान बिठा दिया जाए। सारी व्यवस्था पूर्ण होने पर संगठक प्रशिक्षक प्रारंभिक उद्बोधन दें। 

प्रेरणा -- 

   आप सभी का इस गौ संवर्धन दीपयज्ञ में स्वागत है। गाय के प्रति आप सभी के मन में श्रद्घा है। आप सभी आज तक गाय की पूजा करते आए हैं, फिर आपको लग सकता है कि आज इस दीपयज्ञ की आवश्यकता क्यों पड़ी ?? 

   मित्रों..., आप सभी जानते हैं कि आज कृषि कार्य बहुत महंगा हो गया है। विगत कुछ वर्षो से किसानों को लगातार अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। विगत वर्षो में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, देवभोग व छुरा क्षेत्रों में आर्थिक तंगी एवं चारे की कमी के कारण किसानों ने मात्र 4० से 8० रू.तक में अपने गाय बैल बेच दिये। मध्य प्रदेश के राजगढ़ क्षेत्र में तो स्थिति और भी खराब हो गई थी। वहाँ किसान अपने जानवरों को हांकते हुए गांव की सीमा तक ले गए और उनकी रस्सियाँ खोल दीं। फिर प्रणाम करते हुए कह दिया जाओ गौ माता... अब हम ना तो तुम लोगों को रख सकते हैं, और ना ही अपनीआंखों के सामने तुम्हें भूखा मरते देख सकते हैं..... हे भगवान हम क्या करें.... हमें माफ कर देना। 

   आज लोग, गौ संरक्षण की बात गंभीरता से नहीं लेते। कहते हैं, यहाँ आदमी मरे जा रहे हैं और तुम्हें गायों की पड़ी है। गौ पालन का अब एक ही अर्थ बचाहै, वो है दूध का धंधा बस। जब तक वह दूध दे उसे रखो नहीं तो फिर किनारे कर दो, वह किसी काम की नहीं रही। गाय, गौ माता न रही... दूध देने वाली मशीन हो गई है। मित्रों अब, या तो गाय को माता कहना बंद कर दो.... कह दो यह जानवर है... मां थोड़े ही है। या फिर घर में मां को भी तब तक ही रखो जब तक वह दूध पिलाती रहे। 

   मित्रों, गौमाता की बात अंधश्रद्घा की बात नहीं है। सोच कर देखें क्या मां याने केवल दूध ही होता है ?? अरे वह हमसे कितना प्रेम करती है, हमारी सेवा करती है। घर की व्यवस्था रखती है। हमें मार पड़ती है तो उसे पीड़ा होती है....वह हमें बचाने आती है। हमें बीमारियों से बचाती है, हमारे भीतर श्रेष्ठगुणों का विकास करती है...... और फिर माता केवल जन्म देने वाली को ही कहते हैं, ऐसा तो है नहीं। 

   छत्रपति शिवाजी के पिता मुगल राजा के सेवक मात्र थे, लेकिन उनकी माता ने उन्हें शिवाजी बना दिया...  . छत्रपति शिवाजी। क्या वो शिवाजी को जिंदगीभर अपना दूध ही पिलाती रही ?? राष्ट्रप्रेम, शौर्य, साहस, विचारशीलता, धर्म कर्त्तव्य के लिए बलिदान की भावना, इन सारे गुणों को उसी ने बढ़ाया था तभी तो बच्चा शिवाजी बन सका। जन्म देने का महत्त्व कम नहीं, किन्तु पालन- पोषण और श्रेष्ठ गुणों को बढ़ाने के लिए अपने आपको खपा देना भी महत्त्पूर्ण होता है। 

   चित्तौड़ की एक मामूली सी पन्ना धाय मात्र कुछ घंटे मातृत्व का फ$र्ज निभा कर राजकुमार उदयसिंह की माता बनी तो उसकी कुर्बानी ने उसे इतिहास में अमर बना दिया। देवकी ने भले ही कृष्ण को जन्म दिया था परन्तु पालन- पोषण संवर्धन करने वाली, यशोदा मैय्या बनी रही। 

   मित्रों गाय ने भले ही सारे विश्व वसुधा को बनाया ना हो किन्तु वह पोषण संवर्धन सभी का करती है। इसी से हमारे यहां कहा गया है... गावो विश्वस्य मातरः। वह न केवल मनुष्य बल्कि, पशु- पक्षी, नदी, तालाब, खेत, जंगल, हवा, पानी, आकाश आदि सभी का पालन पोषण करती है। उन्हें शुद्घ पवित्र रखती है। मनुष्य के कई रोग तो, उसके साथ रहने व उसे प्रेम से सहलाने मात्र से नष्ट हो जाते हैं। गोमूत्र के नियमित पान से तो प्रायः सारे रोग नष्ट हो जाते हैं, उसके द्वारा दिये जाने वाले हर पदार्थ अमृत गुणों से युक्त और जीवनदायी है। माता तो माता ही है, किन्तु जिस दिन हमारा ध्यान मात्र दूध देने वाले गुण से हटकर उसके पालन पोषण संरक्षण करने वाले गुणों पर जाएगा, तो मित्रों हम सब सुखी हो जाएंगे। यह गीता की ही तरह महत्त्वपूर्ण संदेश है जो भगवान कृष्ण ने स्वयं दिया है। अधिक जानकारी के लिए गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित कल्याण का गौ सेवा अंक पढ़ कर देखना चाहिए। 

   मित्रों... बच्चा, सबसे ज्यादा दुखी तब होता है जब वह अपनी मां से, उसके आशीर्वाद से, उसके प्रेम से वंचित हो जाता है। उसे ऐसी दशा में कभी चैन नहींपड़ता, उसका अन्तर्मन हर कहीं अपनी माता को ढूंढते रहता है। मां का साथ उसे संतोष सुरक्षा एवं ठोस सहारे की अनुभूति देता है। यह माता की कल्याण कारी उपस्थिति का ही प्रभाव है। गौमाता का ठीक से पोषण संवर्धन और सदुपयोग नहीं होने के कारण ही आज हमें, पोषक अन्न, पीने को शुद्घ पानी और श्वास लेने को शुद्घ वायु नहीं मिल पा रही है... 

   आज हमें खेती में पानी कम पड़ता है, तो इसका एक कारण तो यह है, कि हम उसे सहेज कर नहीं रख पाते। किन्तु साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण बात है, कि हम अपने खेतों में रासायनिक खाद डालते हैं जिसकी वजह से जमीन जल्दी सूख जाती है। यदि हम गोबर से बनी कम्पोस्ट खाद प्रयुक्त करें तो जमीन में नमी बनी रहती है और कम पानी में काम चल जाता है। रासायनिक खाद से पैदा होने वाली सब्जियों व अन्न में ना स्वाद होता है, ना खुशबू और ना ही प्राणतत्व। जहरीले कीट नाशकों का प्रयोग करने से हवा, पानी, मिट्टी सभी कुछ खराब हो जाता है। यही कारण है कि आज आदमी दिखता तो ठीक ही है पर उसे सतत् कुछ ना कुछ होते ही रहता है। 

   आज कारखानीकरण, डीजल व पेट्रोल के ज्यादा उपयोग और प्लास्टिक, रबर आदि जलाये जाने के कारण वायु मंडल जहरीला हो गया है। पहले लोग नित्य हवन करते थे जिसमें गाय के घी और जड़ी- बूटियों का उपयोग होता था, तब हवा भी स्वच्छ रहती थी। मनुष्य के विचारों में भी सात्विकता और सेवा भावना के गुण पनपते थे। 

यदि हम मात्र हल चलाने और परिवहन के क्षेत्र में ही बैलों का उपयोग करने लगें तो भी बहुत बड़ी बेरोजगारी दूर हो सकती है। यदि हम गांव के लोग मिलकर सामुहिक रूप से गौ शालाओं को चलाएं तो अनियंत्रित चराई, आवारा पशुओं की समस्या तथा गौवंश के नस्ल सुधार जैसे कार्यक्रम तो चल ही सकते हैं। पंचगव्यों से अनेकों औषधियां, कीट नियंत्रक एवं साबुन, मंजन, तेल, शैम्पू जैसी सामग्रियां बनती हैं... जो सामने स्टॉल पर रखी भी हुई हैं। इनका निर्माण करके गांव में, रोजगार के अतिरिक्त अवसर भी पैदा किये जा सकते हैं। शहरों में रहने वाले भी इन्हें खरीद कर गौ संरक्षण में सहयोग कर सकते हैं। 

मित्रों, हमने अपनी ही करनी से पानी, मिट्टी, हवा, खानपान की वस्तुओं और वैचारिक जगत में प्रदूषण फैला दिया है। गाय विश्वमाता है, उसमें इतनी ताकत है कि वह इन सभी को ठीक कर सकती है। यदि हम गाय को नहीं बचा पाए तो आगे चलकर मुसीबत और बढ़ेगी। गाय बैल चलेंगे तो रोजगार भी बढ़ेंगे और सुख समृद्घि भी। 

   एक आखरी बात..... यदि गाय की इज्जत करने की बात दिमाग में आती है तब विदेशी नस्ल के सांडों का बहिष्कार करना पड़ेगा। आज मात्र अधिक दूध के लालच में विदेशी बीज भारतीय नस्ल की गायों में डाल कर, सारे गौवंश का सत्यानाश किया जा रहा है। भाइयों बहनों, आज से कसम खाएं कि जब हम अपनी बहन- बेटी को किसी ऐरे- गैरे के हवाले नहीं करते, तब अपनी गायों के लिए भी हम अच्छी नस्ल के देशी सांडों का ही उपयोग करेंगे... ऐसी कसम खा लें। गौवंश को अच्छा रखेंगे काम का रखेंगे। 

   यहाँ एक तथ्य महत्वपूर्ण है कि गाय के नाम से पुकारा जाने वाला हर चौपाया वह कामधेनु गाय नहीं है जिसकी महिमा का वर्णन सर्वत्र किया जा रहा है। भारतीय नस्ल की गाय के कंधे पर एक विशिष्ट उभार होता है यहां से होकर सूर्यकंतु नामक एक नाड़ी गुजरती है। इसी के प्रभाव से भारतीय नस्ल की गाय सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित करके कैराटीन नामक द्रव्य का निर्माण करती है जो कि गाय के दूध और घृत को पीला रंग भी प्रदान करता है। यही वह तत्वहै जो कि प्राणशक्ति बढ़ाने वाला तथा विशिष्ट रोग नामक शक्ति से युक्त होता है। विगत लगभग ३५ वर्षों से भारतीय नस्ल की इन गायों के वंश नाश को कुचक्र गाय के नस्ल सुधार के नाम पर चल रहा है। अधिक दूध पाने की लालच में हम स्वतः भी इस नाश के क्रम को अनजाने में बढ़ावा ही दे रहे है। हासेस्टीन तथा जर्सी आदि नस्लों के प्रभाव में आकर हमारा आकर हमारा अधिकांश गोधन धीरे- धीरे कत्लखानों में जाने लगा है क्योंकि ये शंकर गाय न तो स्वस्थ रह पाती हैं और न ही ठीक से दूध दे पाती हैं और न ही इनसे उत्पन्न नर पशु कृषि कार्य में उपयोगी हो पाता हैं। 

इस समय युग परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। भारत देश के, हम सभी के अच्छे दिन आने वाले हैं। ग्वाल बालों का संगठन इस कार्य के लिए बनाएं। भगवान कृष्ण के बताए मार्ग पर चलकर गौ का संरक्षण, संवर्धन करें। 

हम ध्यान नहीं दे रहे इसीलिए हमारे गाय बैल, माटी के मोल बिक रहे हैं। इन्हें निर्दयता पूर्वक मार- काट कर डिब्बों में बंद करके विदेशों में बेचा जा रहा है। गाय के रक्त और मांस के अनुपयोगी भागों से साबुन, क्रीम, लिपस्टिक, पीपरमेंट, मंजन,  टूथपेस्ट और फेवीकोल जैसी चीजें बना बना कर हमें बेची जा रहीहैं.... कम से कम इनका तो हम बहिष्कार करें ही। लेकिन हमें जीवन देने वाली मां ही मर रही है तो हमें कौन बचा सकेगा ?? भगवान कृष्ण ने तो पहले ही कह दिया है कि सर्व प्रथम गाय को बचाओ... 

भगवान की पुकार किसी ना किसी माध्यम से इन्सान तक आ ही जाती है। आज के इस गौ संवर्धन दीपयज्ञ में, आपको बुलाने वाले चाहे कोई भी हों। आप विश्वास कीजिए यह निमंत्रण युग देवता की ओर से ही आया है। आप सभी उनकी उम्मीदों पर खरा उतर सकें, इसी शुभेच्छा के साथ बात समाप्त। 
आइये अब आज का कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वे हमें सत बुद्घि दें और गुरू रूप में हमारा मार्ग दर्शन भी करते रहें। सभी लोग कमर सीधी करके बैठें और हमारे साथ- साथ गायत्री मंत्र का उच्चारण करें- 

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् 

मंगलाचरणम् -- 

युग देवता, श्रेष्ठ आत्माओं को नव सृजन की प्रेरणा और सुअवसर प्रदान कर रहे हैं। आप सभी को उन्होंने सुपात्र मानकर आमंत्रित किया है। आप सभी का एक साथ इस पवित्र कार्य में शामिल होना स्वागत योग्य है। दैवीय अनुग्रह के प्रतीक स्वरूप अक्षत- पुष्प की वर्षा आप पर की जा रही है... उसे श्रद्घापूर्वकस्वीकार करें। 

(स्वयंसेवक उपस्थित परिजनों पर अक्षत पुष्प का सिंचन करें) 

ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवा, भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरंगै स्तुष्टुवा,  स्वस्तनुर्भिः व्यशेमहि देवहितं यदायुः॥ 

पवित्रीकरणम् -- 

मित्रों गौमाता की सेवा संरक्षण के निमित्त हम सभी आज यहां एकत्रित हुए हैं। 
यज्ञ के प्रारंभ में आप सभी के ऊपर पवित्र जल का सिंचन हो रहा है, ताकि पवित्रता का व पवित्र विचारों का और भी विस्तार हो। हम सभी उससे ओत- प्रोत हो जाएं। यह पवित्रता हमारे मन काया और अंतःकरण में व्याप्त हो जाए। 

अब आप कमर सीधी करके दोनों हाथ गोद में रखें और भाव पूर्वक सूत्र दोहराते चलें -- 
(स्वयंसेवक पवित्र जल का सिंचन प्रारंभ करें) 
ॐ पवित्रता मम मनः काय अंतः करणेषु संविशेत्। 

सूर्यध्यान प्राणायामः -- 

प्राण एक ईश्वरीय शक्ति है। प्राणवान व्यक्ति ही जीवन में कुछ कर सकते हैं। प्राण सेही संकल्पों को बल मिलता है और वे कार्य के रूप में परिणित हो पाते हैं। 

यह गौ संरक्षण दीपयज्ञ है। गौ संरक्षण के लिए हमें कई कार्य करने पड़ेंगे हो सकता है कुछ कार्य हमारी रुचि के अनुकूल हों और कुछ ना भी हों, किन्तु लोकहित को देखकर हमें उन्हें अपनाना चाहिए। इसे ही यज्ञीय भावना कहते हैं। आइये परमात्मा से प्रार्थना करें कि वह इसके लिए हमें धैर्य और हिम्मत के रूप में अपनी प्राण शक्ति प्रदान करे। ताकि हम अपनी गौमाता के प्रति पुत्र का कर्त्तव्य पालन कर सकें। 

कमर सीधी करके दोनों हाथ गोद में रखें। प्राणाकर्षण प्राणायाम हेतु लंबी श्वास खींचें और कुछ देर रोककर धीरे- धीरे छोड़ें। प्राण शक्ति के प्रदाता सविता देवता से प्रार्थना करें कि हे विश्व के स्वामी, हे महाप्राण हमें श्रेष्ठताओं से जोड़ि़ए और बुराइयों से दूर कीजिए। इसी भाव के साथ एक बार प्राणायाम की प्रक्रिया पूर्ण करें -- 

ॐ विश्वानि देव सवितः दुरितानि परासुव यदभद्रं तन्न आसुव॥ 

चंदन धारणम् -- 

गौ संरक्षण हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने संगठित शक्ति को माध्यम बनाया था। घोर विपरीत परिस्थितियों में ग्वाल बालों के सामुहिक श्रम समर्थन से ही वृक्ष वनस्पति लगाई, गोचर बनाए। परस्पर सम्मान से ही सहयोग का वातावरण बनता है, आपसी समझ विकसित होती है और सार्वजनिक हित के कार्य सम्पन्न हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम एक दूसरे को समझें और सम्मानित करें। 

हमारा देश अवतारी चेतनाओं, ऋषियों, महान संतों और क्रांतिकारियों की लीला स्थली है। यहां की मिट्टी में इन्हीं की चरण रज रची बसी है। आइये इसी चंदन सी पवित्र माटी का तिलक हम एक दूसरे के माथे पर करें। ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह हमें शांतिपूर्वक सोचने की शक्ति प्रदान करे। हम किसी आवेश में आकर अनुचित कार्य ना करें तथा विवेकवान होकर सत्कर्म ही करें ताकि हमारा सिर कभी नीचा ना हो। अब भावना पूर्वक सूत्र दोहराएं। कहिए -- 

ॐ मस्तिष्कं शान्तम् भूयात.... ॐ अनुचितः आवेशः मा भूयात.... ॐ शीर्षम् उन्नतं भूयात.... 
अब गायत्री महामंत्र का उच्चारण करते हुए एक दूसरे के माथे पर तिलक करें 
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।। 

संकल्प सूत्र धारणम् -- 

(संकल्प सूत्र बांटने की व्यवस्था कर दें) 

मित्रों, यज्ञ लोकहित के कार्यो को कहते हैं। इस गौ संवर्धन दीपयज्ञ में दैवी शक्तियों का मार्ग दर्शन सहयोग मिलता रहे इसलिए उनका भी आवाहन पूजन करके उन्हें मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। यह कार्य पूरी श्रद्घा व समर्पण भाव से ही हो सकता है। सच्चे भक्त के हृदय में भगवान बैठ जाते हैं, सच्चा यज्ञ भी वही है जिसमें जीवन ही यज्ञमय हो जाए। 

जीवन को यज्ञमय बनाने के लिए तीन कार्यक्रम अपनाने पड़ते हैं। इष्ट के गुणों का ध्यान करना, अपने आपको इसके योग्य बनाना और इष्ट से प्राप्त अनुदानों को, समाज में बांटना इसे ही उपासना, साधना और आराधना कहते हैं। 

आज हम गौ संरक्षण का संकल्प लेने जा रहे हैं, तो हमें गौ के स्वभाव, गुणों और उसकी उपयोगिता आदि को समझना होगा। पश्चात् एक तो घर में उसके रहने की उचित व्यवस्था बनानी पड़ेगी। दूसरे गांव में उसके लिए अनुकूल वातावरण बनाना होगा। उसके लिए चरागाह, पीने के पानी, चिकित्सा तथा वंश सुधार की व्यवस्था करानी होगी। इसके लिए अपना समय व साधन खर्च करने होंगे। साथ ही समाज में गौ हत्या आदि रोकने के लिए जन शिक्षा का व्यापक कार्यक्रम चलाना होगा। 

गौ आधारित अर्थ व्यवस्था बनाने के लिए गाय की आर्थिक उपयोगिता को सिद्घ करना होगा। यह सब कार्य आपस में मिलजुलकर संगठित रूप में ही किये जा सकते हैं। इसके लिए गायत्री परिवार रचनात्मक प्रकोष्ठ आपकी पूरी मदद करेगा। सच्चे मन से संकल्प लेकर प्रयास जारी रखने पर दैवी सहयोग भी बराबर मिलते रहेगा। देव शक्तियों का सहयोग मिल जाने पर कार्य अधूरा नहीं रहता, इसीलिए हमने इस कार्य में सहायक दैवी शक्तियों को प्रतीक रूप में पूजा स्थान पर स्थापित किया है। 

आइये इन देव शक्तियों की साक्षी में शपथ लें कि हम सामाजिक, नैतिक मर्यादाओं का पालन करेंगे। दण्डनीय, वर्जित एवं आपराधिक स्तर के कार्य नहीं करेंगे और ईश्वरीय विधि व्यवस्था का पालन करते हुए गौ संरक्षण के अपने लक्ष्य के लिए पूरी ईमानदारी से प्रयास करेंगे। 

अब सभी परिजन रीढ़ सीधी करके बैठें। सूत्र को बाएं हाथ में लेकर उसे दाहिने हाथ से ढंक लें तथा संकल्प सूत्र दोहराते चलें -- 

ॐ मर्यादाम् चरिष्यामि.... ॐ वर्ज्यम् नो चरिष्यामि.... 
ॐ ईशानुशासनम् स्वीकरोमि.... 
अब गायत्री मंत्र कहते हुए एक- दुसरे को संकल्प सूत्र बांधें... 
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि 
धियो यो नः प्रचोदयात्। 

अब दोनों हाथ जोड़कर श्रद्घापूर्वक यह प्रार्थना दोहराएं- हे महाकाल.. उ�