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गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है ।

गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है ।

गोपूजन की परम्परा के पीछे प्राणविज्ञान का रहस्य है । कहा जाता है कि गाय में तैंतीस करोड देवी-देवता वास करते हैं । सामान्यत: हम देवता का अर्थ ईश्वर के रूपों अथवा अवतारों से लेते हैं किन्तु शास्त्र कुछ और ही बताते हैं । प्रकृति की शक्तियों को देवता कहा जाता है । हमारे अध्यवसायी ॠषियों ने सृष्टि में प्रवाहित जीवनदायी शक्तियों को सम्पूर्णता के साथ जाना । इस शक्ति को ही प्राण कहा जाता है । मूलत: सूर्य से प्राप्त यह महाप्राण सारी सृष्टि में विविधता से प्रवाहित होता है । उसके प्रवाह की गति, दिशा, लय व आवर्तन के भेदों का ॠषियों ने बडी सूक्ष्मता से अध्ययन किया । और इस आधार पर उन्होंने पाया कि ३३ कोट

भूदेवता एव गोरूपं धृत्वा स्वस्याः

भूदेवता एव गोरूपं धृत्वा स्वस्याः

भूदेवता एव गोरूपं धृत्वा स्वस्याः भारं निवर्तयितुं प्रार्थितवती खलु परीक्षिन्महाराजम्।यथा भूः पूज्या तथा गौरपि। गव एव धनमिति सत्यम्।धनस्य स्थाने पूर्वं भारते गोविनिमयः आसीत्।गां न रक्षामश्चेत् उपद्रवास्सम्भवन्त्येव। गोः अवमानेन दिलीपो नाम राजा कामधेनुना शप्त असीत्।सः वसिष्ठमहर्षेः उपदेशेन गोपूजां गोसेवां प्रतिदिनं वने उषित्वा पत्न्या सह कृतवान्।दिलीपः न सामान्यः। सः चक्रवर्ती। तथापि गोरवमानेन अतिकष्टमनुभूतवान्। गवि सर्वाः देवतास्सन्ति। गोधनमेव अपहृतं दुर्योधनेन। तत्फलितमप्यनुभूतवान्। अस्माकं देशोऽपि गोशापेनैव कष्टान् अनुभवति।सर्वदा सर्वधा गौः

सारी सृष्टि में केवल दो ही प्राणियों के देह ऐसे हैं जिनमे पूरे तैंतीस कोटी प्राण निवास करते हैं- गाय और मानव ।

सारी सृष्टि में केवल दो ही प्राणियों के देह ऐसे हैं जिनमे पूरे तैंतीस कोटी प्राण निवास करते हैं- गाय और मानव ।

सारी सृष्टि में केवल दो ही प्राणियों के देह ऐसे हैं जिनमे पूरे तैंतीस कोटी प्राण निवास करते हैं- गाय और मानव । मानव को कर्म स्वातंत्र्य होने के कारण वह उन प्राणों का साक्षात्कार कर अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये उनका प्रयोग कर सकता है । इसी के लिये गोमाता का पूजन व सान्निध्य अत्यन्त उपयोगी है । इस विज्ञान के कारण ही गाय को समस्त देवताओं के निवास के रूप में पूजा जाता है । सभी धार्मिक अनुष्ठानों में गाय के पंचगव्यों का महत्व होता है । गोबर से लिपी भूमि, दूध, दही, घी से बना प्रसाद, गोमूत्र का सिंचन तथा गोमाता का पूजन पूरे तैंतीस करोड प्राणों को जागृत कर पूजास्थल को मानव के सर्वोच्च आध्यात्मिक

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे

भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही गोधन को मुख्य धन मानते थे, और सभी प्रकार से गौ रक्षा और गौ सेवा, गौ पालन भी करते थे। शास्त्रों, वेदों, आर्ष ग्रथों में गौरक्षा, गौ महिमा, गौपालन आदि के प्रसंग भी अधिकाधिक मिलते हैं। रामायण, महाभारत, भगवतगीता में भी गाय का किसी न किसी रूप में उल्लेख मिलता है।

गाय का जहाँ धार्मिक आध्यात्मिक महत्व है वहीं कभी प्राचीन काल में भारतवर्ष में गोधन एक परिवार, समाज के महत्वपूर्ण धनों में से एक है। आज के दौर में गायों को पालने और खिलाने पिलाने की परंपरा में लगातार कमी आ रही है।

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