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गौ - चिकित्सा भाग - 6 (रक्तप्रदर )

रक्तप्रदर ( ख़ून बहना ) ========================= मादा पशु के प्रसव के चारा दाने में गड़बड़ होने से यह रोग कभी - कभी हो जाता है । उसके प्रसव के समय असावधानी रखने के कारण यह रोग हो जाता है । रोगी मादा पशु की योनि से रक्त बहता रहता है । उसमें दुर्गन्ध आती रहती है । वह रोज़ दूध में और शारीरिक शक्ति में कमज़ोर होती है । १ - औषधि - गाय के दूध की दही ४८० ग्राम , गँवारपाठे का गूद्दा ४८० ग्राम , पानी ४८० ग्राम , सबको आपस में मिलाकर और मथकर रोगी पशु को दोनों समय उक्त मात्रा में , आराम होने तक पिलाया जाये ।

1.जर्सी नस्ल की गाय का दूध पीने से 30 प्रतिशत कैंसर बढने की संभावना हैं
- नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट आॅफ अमेरिका

2.गाय अपने सींग के माध्यम से काॅस्मिक पाॅवर ग्रहण करती हैं - रूडल स्टेनर,जर्मन वैज्ञाानिक

3.गोबर की खाद की जगह रासायनिक खाद का उपयोग करने के कारण महिलाओं का दूध दिन प्रतिदिन विषैला होता जा रहा हैं
- डाॅ. विजयलक्ष्मी सेन्टर फाॅर इण्डियन नोलिज सिस्टम

गौ माता से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी ।

गाय से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी ।

1. गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।

2. जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

3. गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।

4. जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।

5. गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।

गाय के भीतर "सूरज केतु"नामक एक नाड़ी होती है|

प्रत्येक व्यक्ति को उसके शरीर में स्वर्ण{GOLD}
की आवश्यकता होती है पर व्यक्ति स्वर्ण
खा तो नहीं सकता?गाय के भीतर "सूरज केतु"नामक एक
नाड़ी होती है|जब सूर्य की किरणें गाय के भीतर प्रवेश कर
उस नाड़ी पर पड़ती हैं तो उस नाड़ी के माध्यम से प्राकृतिक
रूप से स्वर्ण बनता है तभी गाय का दूध पीलेपन को धारण
किऐ होता है|इस प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति के भीतर
स्वर्ण भी पहुँच जाता है|यह नाड़ी गाय के अलावा अन्य
किसी जीव में नहीं होती|प्रभु द्वारा की गई इस सुंदर
व्यवस्था की रक्षा कीजिऐ और कामधेनु कल्याण परिवार

गौ सेवा या गौ रक्षा का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैँ

गौ सेवा या गौ रक्षा का लोग गलत मतलब निकाल लेते हैँ। इसका मतलब ये नहीँ है कि एक डंडा हाथ मेँ लिया एक कट्टा कमर मेँ फसाया और निकल लिये कसाईयोँ और बूचड़ोँ की खोज मे

चूंकि हिन्दू धर्म की विशेषता है कि वो अपनी विसंगतियोँ को भी खुले दिल से स्वीकारता है

हमारे साथ यही दिक्कत है कि नागपंचमी पर नाग को दूध पिलायेँगेँ और साल के बाकी दिन जहाँ कहीँ साँप नजर आया फौरन उसे

मार देँगेँ

गौअष्टमी के दिन गाय को ढ़ूंढ कर चारा खिलायेँगेँ और साल के बाकी दिन बैल के घर के पास नजर आते ही डंडा मार के भगायेँगे

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