धेनु: सदनम् रचीयाम्

धेनु: सदनम् रचीयाम्

आज यत्र—तत्र—सर्वत्र शाकाहार की चर्चा है किन्तु धर्मप्राण देश भारत, जहां की संस्कृति में गाय को माता तुल्य आदर प्राप्त है, वहां मांसाहार तथा मांसनिर्यात हेतु गो हत्या अत्यन्त शर्मनाक है। अहिल्या माता गोशाला जीव दया मण्डल ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस निबन्ध प्रतियोगिता में सम्पूर्ण देश से ५६ प्रविष्टियाँ प्राप्त हुर्इं थीं। निर्णायक मण्डल ने कु. पटेल के आलेख को प्रथम घोषित किया। जनरुचि का विषय होने तथा शाकाहार के प्रचार में महत्वपूर्ण होने की दृष्टि से अर्हत् वचन के पाठकों के लिये यह आलेख प्रस्तुत है।

धेनु: सदनम् रचीयाम्’’ (अर्थववेद—११.१.३४)

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

भारत में अधिकतर किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है,लेकिन भारत सरकार की जो नीतियां चल रही हैं वे अधिकतर बड़े किसानों के लिये हैं। यंत्रीकरण और ट्रेक्टरों के लिए ऋण, अनुदान व अन्य सुविधायें उपलब्ध कराई जाती है, जिनका उपयोग वे किसान नहीं कर सकते जिनके पास चार पाँच हेक्टेयर भूमि है। उन्हें तो पशुशक्ति पर ही आधारित रहना होगा। प्रश्न यह उठता है कि क्या पशुशक्ति आर्थिक दृष्टि से ट्रैक्टर का मुकाबला नहीं कर सकती? यदि सभी पहलू देखे जाएं और उनका मूल्यांकन किया जाय तो पशुशक्ति न केवल इक्कीसवीं सदी में बल्कि शायद २५ वीं सदी में भी अधिक उपयोगी बनी रहेगी।

गौशाला में जाकर दूर कर सकते हैं अपनी कुंडली के दोष

गौशाला में जाकर दूर कर सकते हैं अपनी कुंडली के दोष

यदि अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना हो तो करें यह अचूक
उपाय---गौशाला में जाकर दूर कर सकते हैं
अपनी कुंडली के दोष
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कभी-कभी न चाहते हुए
भी जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
भाग्य बिल्कुल भी साथ नहीं देता साथ
ही दुर्भाग्य निरन्तर पीछा करता रहता है।
दुर्भाग्य से बचने के लिए या दुर्भाग्य नाश के लिए करें यहाँ बताए गये
उपाय करें। इन्हें पूर्ण आस्था के साथ करने से दुर्भाग्य का नाश
होकर सौभाग्य में वृद्धि होती है। बस आप इन
उपायों को करते रहें

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हैरान कर देने वाली बात दूध नहीं देती गाय फिर भी सालाना 3.50 करोड़ का मुनाफा पर कैसे ?

हरियाणा लाडवा : इनके गोशाला में एक भी गाय दूध नहीं देती, फिर भी इनका सालाना मुनाफा करीब 3.50 करोड़ रुपये हैं, है ना चौकाने वाली बात. ऐसा भी नहीं है कि ये किसी अनैतिक व्यापार के जरिये इतना पैसा कमाते हैं. बल्कि इन्होने इस व्यापार के लिए उन गायों को चुना जिन्हें, दूध न दे पाने के कारण लावारिस छोड़ दिया जाता है. कई तरह की बीमारियों के कारण सड़कों पर ये गायें लावारिस पड़ी रहती हैं. ऐसे गायों को एक-एक कर गोशाला में लाकर पहले तो ये सबका इलाज करवाते हैं. फिर इन गायों की सही से देख रेख शुरु होता है, इनका पूरा व्यापार गोबर और गोमूत्र पर चलता है. ये पूरी कहानी है Haryana के लाडवा की.

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