गाय और गांव

गोवंश और रोजगार

गोवंश और रोजगार

किसान के लिये केवल खेती तथा ग्वाले के लिये केवल दूध का उत्पादन व दूध की कमाई आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभप्रद नहीं है। खेती का उत्पादन व दूध की कमाई मिलकर ही किसान को संभाल सकते हैं इसीलिए हमारी सरकार भी हरित क्रांति के साथ दुग्ध क्रांति की योजना चला रही है। हरित क्रांति से कृषि का उत्पादन बढ़ा है जो उसका लक्ष्य था पर हरित क्रांति तब तक अपूर्ण है, जब तक कि दुग्ध क्रांति नहीं होती है। गांवों में भूमिहीनों की बढ़ती बेरोजगारी देखकर सरकार ने डेयरी उद्योग को प्राथमिकता दी है जिससे गांवों के लोगों को रोजगार मिले। पूरे देश के आंकड़े बताते हैं कि १९५१ में दुग्ध उत्पादन १७ मिलियन टन था जबकि १९८८ में ३६

करोड़पति बनना है तो खोलिए आधुनिक डेयरी

करोड़पति बनना है तो आधुनिक मशीनों से लैस डेयरी खोलिए। इसमें सभी काम मशीन से होंगे। मेहनत भी नहीं करनी है लेकिन इसके लिए 15 अगस्त तक आवेदन करना होगा।

          विदेशों की तरह सभी सुविधाओं से लैस डेयरियों की स्थापना करने के लिए प्रदेश सरकार ने कुछ दिन पहले ही कामधेनु योजना शुरू की है। जिले में इसके लिए कोर्इ टारगेट भी नहीं है। दूध दुहने, चारा काटने व चारे को मिक्स करने के लिए मशीनें लगी होगीं। सभी मशीनें गोबर गैस प्लांट से चलेंगी। पहले साल से ही लगभग 66 लाख रूपए आय होने लगेगी। बैंक की किस्त और अन्य खर्चों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 29 लाख रूपए की सालाना शुद्ध आय होगी।

गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है

गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है

गायों की प्रचूरता के कारण ही भारतभूमि यज्ञभूमि बनी है । पर आज हमने गायों को दुर्लक्षित कर दिया है इसी कारण देश के प्राणों पर बन पडी है । गाय के सान्निध्य मात्र से ही मनुष्य प्राणवान बन जाता है । आज हमारे शहरी जीवन से हमने गाय को कोसों दूर कर दिया है । परिणाम स्पष्ट है मानवता त्राही-त्राही कर रही है और दानवता सर्वत्र हावी है ।

गौ माता के नाम पर केवल जय

गौ माता

श्री मान पता नहीं आप मेरे तर्क से सहमत होंगे या नहीं परन्तु मेरी धारणा है की, हिन्दू समाज के साधू ,,संत और अदि शंकराचार्य की निष्क्रियता ही समस्त समाज के पतन का कारण है,, चारों शंकराआचार्या जी अपने अपने मठों में मगन हैं,,बाकि के साधू संत अपने अपने आश्रमों में आनंदमयी जीवन व्यतित कर रहे हैं,,कोई धर्म संसद नहीं ,,कोई अनुशान नहीं ,,कोई दिशा निर्देश नहीं,,आज समाज का साधरण मानव गौ रक्षा के लिए जूझ रहा है,,परन्तु इस पुण्य कर्म के लिए साधू और संत समाज का योगदान नाम मात्र को ही मिल रहा है,, जबकि हमारे देश में असंख्य ऐसे मठ भी हैं जिनके पास सैंकढ़ों एकड़ जमीन है,,यदि समस्त साधू समाज चाहे तो एक आव्हा

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