तो यह कारन हे गाय का गोबर और गोमूत्र को पवित्र मानने का !
आपने हवनकुंड और पूजा के स्थान पर गोबर को देखा ही होगा। लोग भगवान की पूजा दोरान गौ माता के गोबर का इस्तेमाल करते हे। गाय के गोबर में भयानक रोग को ठीक करने की क्षमता होती हे। क्या आपको पता हे पुराने ज़माने में लोग गोबर के उपले में भोजन बनाते थे।
गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये होता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। इसलिए गाय को पवित्र पशु माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय के मुख वाले भाग को अशुद्ध और पीछे वाले भाग को शुद्ध माना जाता है।
गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। गांवों में महिलाएं आज भी सुबह उठकर गाय गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। इसके पीछे की यह मान्यता है कि इससे घर में लक्ष्मी देवी का वास बना रहता है।
गाय के गोबर में 86 प्रतिशत तक द्रव पाया जाता है। गोबर में खनिजों की भी मात्रा कम नहीं होती। इसमें फास्फोरस, नाइट्रोजन, चूना, पोटाश, मैंगनीज़, लोहा, सिलिकन, ऐल्यूमिनियम, गंधक आदि कुछ अधिक मात्रा में विद्यमान रहते हैं तथा आयोडीन, कोबल्ट, मोलिबडिनम आदि भी थोड़ी थोड़ी मात्रा में रहते हैं।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। श्वास रोग, आंत्रशोथ, पीलिया, मुख रोग, नेत्र रोग, अतिसार, मूत्राघात और कृमिरोग का उपचार गोमूत्र से होता हे। इसके आलावा आधुनिक चिकित्सा विज्ञानी गोमूत्र को हृदय रोग, कैंसर, टीबी, पीलिया, हिस्टिरिया जैसे खतरनाक रोगों में प्रभावकारी मानते हैं।
वैज्ञानिक द्रष्टिकोन से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है। गोमूत्र का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चीजें बनाने में भी होता हे। गाय के अंगों में सभी देवताओं का निवास होता है। गाय की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गोमूत्र में मोजूद गुणों के कारण उसे इसे ‘अमृत’ कहा गया है।
गोबर को जलाने से उसमे जो धुआ निकलता हे उससे सकारात्मक ऊर्जा फेलती है। सिर्फ इतना ही नहीं यह हमारे आसपास के वातावरण का भी शुध्ध और पवित्र रखता हे। उन्हीं कारणों की वजह से इसे पवित्र माना गया हे।
नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है। जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।