भक्त और गौ माता
एक भक्त और गौ माता
श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण गायों के समूह के पीछे पीछे चलते थे .
इस पर एक भक्त ने गौ माता से इस प्रकार पूंछा-
भक्त -
गोमाता ! तुम अपने ईष्ट देव के आगे आगे क्यों चलती हो ?
उनके तो पीछे पीछे चलने का विधान है.
गौ -
आप भूल कर रहे हो अधिष्ठान तो सदा पीछे ही रहता है.
भगवान मेरे ईष्ट और संरक्षक है ,
उनके द्वारा संरक्षित हम अपने गंतव्य स्थान पर बिना किसी भय और संकोच के शीघ्र पहुँच जाती है तो मैया हमारा दूध निकालकर उबालकर शीघ्र लाला को पिला देती है.
यदि भगवान हमारे आगे चलेगे तो हमको अपने विवेक पुरुषार्थ और बल का प्रयोग करके उनका अनुगमन करना पड़ेगा तब भय है कि हम मार्ग में पानी और घास देखकर विचलित हो जाये
परन्तु उनके द्वारा हाँके जाने पर हम निष्कंटकराजमार्ग पर निर्भय चली जाती है.
भक्त -
यह तो आप ठीक कह रही है परन्तु आगे आगे चलने पर तुम भगवान के रूप माधुर्य के दर्शन से तो वंचित रह जाती हो .
गौ -
भक्त जी ! जब भगवान हमारे पीछे चलते है तो कभी कभी मेरी पीठ पर हाथ लगा देतेहै,
हम अपना मुँह मोड़कर उनका दर्शन करके परमानंद में मगन हो नेत्र बंद करके चलती रहती है .
यदि भगवान आगे चलेगे
तो हम उनके मुखारविंद
के दिव्य दर्शन और स्पर्श सुख से वंचित राह जायँगी.
भक्त -
तुम्हारे सौभाग्य कि बात तो अलौकिक है परन्तु तुम्हारा इस प्रकार चलाना धर्म विरुद्ध है बडो के आगे नही पीछे चला जाता है.
गौ - धर्म शास्त्र के अनुसार मै मुमूर्ष जीवो को वैतरणी नदी पार करा देती हूँ
(जीव कि मृत्यु के पश्चात यमलोक के मार्ग में खून और पीव से भारी कष्टदायक वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है जो गौ पार कराती है )
वह मेरी पूंछ पकड़कर सरलता से तर जाते है . मुझमें और मेरी पूंछ में यह शक्ति भगवान के स्पर्श से ही प्राप्त होती है.
भक्त-
गौमाता ! आपकी बात तो अकाट्य है फिर भी
श्रेष्ठ पुरुषों को अपना पृष्ठ अंग दिखाते हुए चलना अनुचित है .
गौ -
शास्त्रनुसार मेरा गोबर और मूत्र पवित्र है परन्तु मेरा मुँह जूठा उअर अपवित्र है अब बताओ कि मै अपने ईष्ट की ओर पवित्र अंग करुँगी अथवा अपवित्र ?
इतना सुनते ही भक्त गौ माता के चरणों मे लोट गया.