गौ - चिकित्सा भाग - 5 ( पैर रोग )
आगे के पैर की मोच ( घटने का खिसक जाना )
परस्पर लड़ने से , घातक चोट लगने से, दौड़ने और फिसल जाने पर कभी - कभी पशु की गोड़ खिसक जाती है । इसके लिए नीचे लिखें उपचार का प्रयोग करना चाहिए ।
कन्थार की हरी पत्तियाँ २४० ग्राम , या पत्तियों का रस ४० ग्राम ,मीठा तैल ६० ग्राम , कन्थार की पत्तियों को पहले पानी में डालना चाहिए एक घंटे बाद पत्तियों को निकालकर उन्हें महीन पीसकर उनका रस कपड़े में छानकर निकाल लेना चाहिए । फिर जितना रस हो , उतना खाने के मीठे तैल में मिलाकर गरम करना चाहिए । गरम करते समय चम्मच द्वारा उसको हिलाना चाहिए । फिर घोल से गुनगुना रहने पर पशु के घुटने पर मालिश करनी चाहिए । एेसी मालिश चार दिन तक करनी चाहिए । पाँव तुरन्त ठीक हो जायेगा । रोगी पशु के बाल निकल जायेंगे , किन्तु चमड़ी नहीं निकलेगी । बाल बाद में आ जायेंगे । जब पशु अच्छा हो जाये, तब मालिश किये गये स्थान पर नारियल का तैल रूई से लगाना चाहिए । इससे आराम आ जायेगा ।
१ - औषधि - रोगी पशु के चटखुरी या मोच के स्थान पर पहले रूई द्वारा मिट्टी का तैल ( घासलेट ) लगाया जाय । १२ घंटे बाद उसी स्थान पर नारियल का तैल लगाया जाये।यह दवा एक ही बार लगाने पर पशु को आराम हो जायेगा । कन्थार की दवा भी बनाकर मोच में काम आ सकती है ।
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खुर तिड़कना....
१ - औषधि - कभी-कभी पशु का खुर कोई मार लगने से तिडक जाता है,सीताफल ( शरीफ़ा ) की पत्ती १२ ग्राम , चूना ९ ग्राम , शरीफ़ा की पत्तियाँ बारीक पीसकर चूने में मिलाकर ज़ख़्म में भरकर ऊपर से रूई रखकर पट्टी बाँधनी चाहिए ।
२ - औषधि - भिलावें का तैल साढ़े चार ग्राम में भरकर ऊपर से गरम लाल लोहे का दाग लगाया जाय । इस प्रयोग से पशु को आराम मिलेगा ।
खुरमोच...
कभी - कभी अचानक गड्डे में पैर गिर जाने से या आपस में लड़ने से पशुओं के खुर में मोच ( चोट ) आ सकती है और उस स्थान पर सूजन आ जाती है ,और पशु चलने - फिरने में लँगड़ाता है ।
१ - औषधि - पहले नीम की पत्ती पानी में उबालकर पानी से सेंकें, फिर निम्नलिखित दवा का उपयोग करना चाहिए । कन्थार ( कठार, गोविन्द फल, लै०- कैपीरस केलेनिका ) २४० ग्राम , मीठा तैल ६० ग्राम , कन्थार की पत्ती को पानी में आधा घन्टा तक डालकर फिर पत्तियों को निकालकर महीन पीसें । फिर कपड़े द्वारा रस निकालकर जितना रस हो उतना ही तैल मिलाकर गरम करें । उसे गुनगुना रहने पर रोग के स्थान पर रोज़ सुबह ८ दिन तक मालिश करें । इससे पशु के रोग के स्थान पर के बाल तो निकलेंगे , किन्तु चमड़ी नहीं निकलेगी । कुछ दिन में बाल जम जायेंगे और पशु ठीक हो जायेगा । जब पशु का लंग करना कम हो जाये तो उस स्थान पर खोपरे का तेल रोज़ लगाना चाहिए ।
२ - औषधि - घासलेट ( मिट्टी का तैल ) ६० ग्राम , से रोगी पशु के रोगस्थान पर लगाकर मालिश कि जाय । फिर १२ घंटे बाद उस स्थान पर नारियल तैल को लगाया जाय। इस दवा के लगाने से एक बार में ही आराम आने लगता है ।
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खोराला ( अगले पैर के खुर के पास पक जाना )
अगले पाँव के खुर के पास पक जाता है । इलाज न होने से वह पककर पककर फूट जाता है और पशु लँगड़ाता है ।
१ - औषधि - आक ( मदार ) की हरी गीली लकड़ी में तेल लगाकर फिर उसके ऊपर सिन्दुर लगा लें । उसे पशु की नाक के अन्दर घुसा दें । इस प्रकार नाक के दोनो छिद्रों में आक की लकड़ी चलानी चाहिए । इसे लगाते समय पशु की नाक से आवाज़ आती है, और वह छींकता हैं ।
आलोक-:- आक की लकड़ी को पहले ही पशु की नाक के बाहर से नाप लेंना चाहिए । ध्यान रहे कि लकड़ी इतनी बड़ी न हो कि वह आँख तक पहुँच जाय । आँख तक पहुँच से हानि हो सकती है ।यह रोग पशु के अगले पैर में ही होता है ।
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पाँव करवा जाने पर ( पैरों का तलस जाना )
रेत ,काली मिट्टी और नरम मिट्टी में पैदा हुए बछड़ों को पथरीली ज़मीन पर काम करने से पाँव करवा जाते है । रोगी पशु लंग करता है । वह कभी - कभी एक, दो या तीन पाँवों से लंग करता है ।
१ - औषधि - रोगी पशु के पैरों में नाल हमेशा बैठवानी चाहिए । इससे उसके पाँव करवाते नही । फिर वह डामर की सड़क , पथरीली ज़मीन और अन्य कड़ी जगहों पर आसानी से चल सकता है ।
२ - औषधि - रोगी पशु को नीम के उबले पानी से, गुनगुना होने पर ,२० ग्राम , नमक डालकर , दोनों समय , आराम होने तक ,सेंकना चाहिए । बाद में रोग के स्थान पर नारियल तैल की मालिश करनी चाहिए ।
घोड़े के लिए इलाज -:- ईंट को लाल गरम करके पानी में बुझा लें । फिर तत्काल उस ईंट पर घोड़े का लँगड़ा पैर रख दें। इससे उसके पैर में सेंक लगेगा और उसे आराम हो जायेगा ।
#- थोड़े से गाय के गोबर से बने कण्डो फ़र्श पर रख कर जलायें ,उपले जल जाने पर उन्हें तुरन्त वहाँ से हटा दें और उस स्थान पर घोड़े के पैर को गरम गरम फ़र्श पर रखकर सेंकना चाहिए और ऊपर से थोड़ा थोड़ा पानी डालनी चाहिए, इससे सेंक लगने से आराम आने लगेगा ।
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खुर ( तलवे या तालू फूटने ) की बीमारी
यह रोग भैंस को होता है । गर्मी की अधिकता के कारण यह रोग पैदा होता है ।
१ -पशु के मुँह के भीतर ऊपरी जबड़े में दो पतले सुराख़ होते है , जिनका सम्बंध मस्तिष्क से रहता है । वह जो पानी पीता है वह इन सूराखों से उसके मस्तिष्क में चढ़ जाता है । ये दोनों सुराख़ अन्दर से चौड़े हो जाते है । पशु जब पानी पीता है तो पानी उसकी नाक से गिरता है ।
२ - औषधि - सिन्दुर ३६ ग्राम , मक्खन ९ ग्राम , दोनों को मिलाकर , थोड़ी रूई में लपेटकर , गोमती घास की काड़ी ( सोटिया घास ) लेकर उपर्युक्त मिश्रण उसके एक सिरे पर लगायें । फिर पशु को धीरे से पृथ्वी पर सुलाकर सावधानी से दोनों स्वरों में दो काँडियांँ बनाकर , दोनों सूराखों में आधा - आधा इंच लें जायँ ।बाहर निकली काड़ी को तोड़ देना चाहिए । रोगी पशु को एक ही बार में अवश्य आराम होगा ।
खान-पान -:- रोगी पशु को कमजोर न होने देना चाहिए । मुलायम घास और पतली खुराक दी जायेँ ।