गो गव्य ही सर्वोत्तम आहार हैं।

यज्ञ में काम लिया जाने वाला घृत केवल और केवल गो-घृत ही होना चाहिये, तभी देवता उसको ग्रहण करेंगे। बाजारू घृत जो कि चर्बीयुक्त हो सकता है या फिर अन्य पशुओं का घृत जो कि अशुद्ध माना जाता है, देवता नहीं दानव ग्रहण करेंगे। उससे देव शक्ति की बजाय दानवी शक्ति का पोषण होगा। परिणाम हमारे लिये निश्चित उल्टा ही होगा। अतः यज्ञ में केवल गो-गव्यों का ही प्रयोग करना चाहिये। शास्त्र विरुद्ध किया गया कार्य पूरी सृष्टि के लिये हानिकारक होता है। शास्त्र में जहाँ भी दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत आदि उल्लेख किया गया है वो केवल गाय के गव्य ही हैं, क्योंकि उस समय भैंस, जर्सी, हॉलिस्टीयन जैसे पशुओं का व्यवहार कहीं भी

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भारतीय अर्थव्यवस्था की आत्मा गाय

हमारा खेतिहर देश जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर खड़ा है, जिसकी आत्मा गाय है। संसार के अन्य देशों के लोग दूध के लिये गाय और खेती के लिये घोड़े या मशीन रखते हैं। वहां के किसानों का काम भिन्न भिन्न पशुओं से चलता है पर हमारे पूर्वजों ने एक ही गाय से दोनों काम किए, गाय से दूध और गोपुत्र बैल से हल चलाना। गांव नगरों में भार—बोझ ढोने, कुएँ—रहट तथा तेलघानी चलाने आदि का काम भी बैलों से लिया जाता है। आज भी ७०% खेती का आधार बैल ही है। हमारे जीवन की आवश्यक खाद्यान्न वस्तुएँ खेती से ही प्राप्त होती हैं और इस हेतु गोवंश हमारे कृषि जीवन का बहुत बड़ा आधार है। वस्तु का मूल्यांकन आर्थिक दृष्टि से होता है। विश्ववि

ऊर्जा संकट में गोवंश

ऊर्जा संकट में गोवंश

भारत में पशुधन आज भी ऊर्जा का शक्तिशाली स्रोत है। पिछड़ेपन का प्रतीक मानी जाने वाली बैलगाड़ी हमारे देश के सारे के सारे बिजली घरों से अधिक ऊर्जा देती है। यदि पशुओं को उनके काम से हटाना हो तो हमें अतिरिक्त ऊर्जा के लिये लगभग ३००० अरब रूपये खर्च करने पड़ेंगे। देश के बोझा ढ़ोने वाले पशुओं की संख्या १२ करोड़ मानी जाती है। यदि प्रतिपशु आधा हार्स पावर ऊर्जा मानी जाय तो इनसे हमें ६ करोड़ हार्सपावर ऊर्जा मिलती है।

आर्य मात्र गाय का पालन करते थे, तब पृथ्वी पर उन्हीं की सत्ता थी।

आर्य मात्र गाय का पालन करते थे, तब पृथ्वी पर उन्हीं की सत्ता थी।

ईश्वर ने हरेक प्रजा को भले ही फिर वह भारतीय हो, अफगानिस्तानी हो या यूरोपीय हो, शारीरिक और बौद्धिक शक्ति बराबर दी है। इस सम्पत्ति को मानव स्वयं के कर्म से घटा—बढ़ा सकता है। जिस प्रजा या मानव में यह सम्पत्ति अधिक है व मानव अथवा प्रजा कम संपत्ति वाले मानव या प्रजा पर राज्य करते हैं। रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथ इसके साक्षी हैं कि उस समय जब आर्य मात्र गाय का पालन करते थे, तब पृथ्वी पर उन्हीं की सत्ता थी। इतिहास देखने से यह भी ज्ञात होता है कि लगभग साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व भारत में भैंस का आगमन हुआ और उसके दूध, घी के सेवन से भारतीयों के बुद्धि, बल, विवेक तथा शांति का विनाश होता चला गया। इसके बाद

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