गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है
गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।
भारतीय संस्कृति में प्रत्येक जीव को सम्मान दिया जाता है। पुराणों में ऐसी असंख्य किवदंतियां विद्यमान हैं, जहां पशु-पक्षियों का वर्णन देवता स्वरूप में किया गया है। गरुड़ देवता भगवान विष्णु के वाहन हैं, तो नाग शिव के गले का हार हैं। मां दुर्गा शेर पर सवार हैं, तो कार्तिकेय के साथ मयूर है।इसी प्रकार इन शास्त्रों में गाय के महत्व को सवरेपरि माना गया है। गाय को माता कहा गया है। जिस प्रकार माता अपने बच्चों के लिए पूर्ण रूप से समर्पित होती हैं, उसी प्रकार गाय भी अपने प्रत्येक स्वरूप में सर्वहितकारी हैं। पुरातन काल में इसे गौधन कहा जाता था।स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गौमाता के भक्त थे। गोपाष्टमी का पर्व गौमाता व श्रीकृष्ण के प्रेम प्रतीक स्वरूप हर वर्ष मनाया जाता है। इसी दिन श्रीकृष्ण को गौ-चारण के लिए वन में भेजा गया था। श्रीकृष्ण ने इसी दिन कंस द्वारा भेजे गए मायावी राक्षसों का वध किया था, जिस कारण गोपाष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं। गोपाष्टमी वास्तव में गाय के प्रति हमारे सम्मान का प्रतीक पर्व है।
विश्वामित्र ने गाय देखने की इच्छा जाहिर की। वशिष्ठ ने उन्हें गौमाता के दर्शन करवा दिए। गाय को देखकर विश्वामित्र का मन बेईमान हो गया। वह बोले, ‘महर्षि, आप को चाहिए कि यह गाय राजा को भेंट कर दें।’वशिष्ठ ने असमर्थता प्रकट कर दी। इस पर विश्वामित्र को क्रोध आ गया। वह बोले- ‘अगर आप हमें अपनी इच्छा से गाय नहीं देगें, तो हम इसे जबरन ले जाएंगे।’आश्रम के शिष्य व विश्वामित्र की सेना आमने सामने डट गईं, परंतु कहां शाही सेना और कहां कुछ छात्र। महर्षि वशिष्ठ गौमाता के पास गए तथा अपनी रक्षा की प्रार्थना की। तभी गौमाता के कानो का आकार बढ़ने लगा तथा उसमें से एक सुसज्जित सेना निकली। उसने विश्वामित्र की सेना को खदेड़ दिया।विश्वामित्र की शाही सेना को जान बचाकर भागना पड़ा। विश्वामित्र ने राजमहल पहुंचकर अपने मंत्रियों को बुलाया तथा युद्ध की तैयारी करने को कहा। एक मंत्री बोला- ‘राजन, वशिष्ठ ऋषि है। उनके तप का तेज बहुत ज्यादा है। उनके तप का सामना करना शाही फौज के वश का कार्य नहीं है।’ विश्वामित्र को बड़ा अचरज हुआ।उन्होंने सोचा कि अगर एक ऋषि के तप का बल उनसे •यादा है, तो उन्हें भी तपस्या कर बल प्राप्त करना चाहिए। विश्वामित्र अपने राजपाठ को अलविदा कहकर तप करने जंगल में निकल पड़े। बाद में ब्रहार्षि विश्वामित्र कहलाए। ऐसी है गौमाता की महिमा।
33 करोड़ देवी देवताओं का वासधर्मशास्त्रों में अनेक स्थानों पर वर्णन आता है कि जब-जब पृथ्वी पर पाप बढ़ता है, धर्म का नाश होता है, तो पृथ्वी परमेश्वर के पास गौमाता के रूप में पहुंचती है तथा पाप का बोझ कम करने की प्रार्थना करती हैं। गौमाता की पुकार सुनकर प्रभु पाप का अंत करने के लिए स्वयं अवतरित होते हैं और पापियों का विनाश करके धर्म की पुन:स्थापना करते हैं। अत: गौमाता हमारे लिए परम आदरणीय है।गौमाता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास कहा गया है। गौमाता के शरीर का शायद ही कोई भाग ऐसा हो, जिस पर किसी देवता का वास न हो। इस प्रकार गौमाता संपूर्ण ब्रह्माण्ड अथवा साक्षात नारायण का साक्षात स्वरूप हैं। इसी लिए शास्त्रों में कहा गया है कि मात्र गौमाता की पूजा-अर्चना करने से सृष्टि के 33 करोड़ देवी-देवताओं की आराधना का फल मिलता है।गौमाता की सेवा करने वाले को अंत में वैकुंठ की प्राप्ति होती है। वह आवागमन के चक्कर से छूट जाता है। जिस घर में गौमाता का वास होता है, वहां 33 करोड़ देवी-देवता निवास करते हैं। गौमाता की सेवा करने वाले को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। घर परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। धर्म का वास होता है।परंतु वर्तमान परिपेक्ष्य में विडंबना यह है कि पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव तेजी से हमारे समाज पर बढ़ रहा है। जिस गाय की महिमा का गुनगान करने हमारे धर्म शास्त्र थकते नहीं, वहीं गौमाता आज दुर्दशा का शिकार हो रही हैं। हमारी संस्कृति में गौमाता का पूजन देवी-देवता भी करते आए हैं। गोपाष्टमी के दिन नई पीढ़ी को साथ लेकर गौमाता की पूज करनी चाहिए, ताकि अपनी सांस्कृति को जीवित रखा जा सके।
गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।