जानें...इंजीनियर आबिद हुसैन कैसे बने गोभक्त, खोली गौशाला

जानें...इंजीनियर आबिद हुसैन कैसे बने गोभक्त, खोली गौशाला

एक मुस्लिम इंजीनियर में गायाें के प्रति इतनी आस्था अचानक क्यों जागी, ऐसा क्या हुआ कि इस गोप्रेमी ने गोशाला खोल ली। 

आबिद हुसैन और जीव रक्षा गौशाला 

गोशाला खोलने वाले मुस्लिम समुदाय के इंजीनियर आबिद हुसैन हैं। वे नगीना खंड के छोटे से गांव मोहमदनगर के रहने वाले हैं। आबिद अपने पैतृक गांव में ही जीव रक्षा गौशाला चलाते हैं। वे पिछले करीब तीन साल से शिक्षित मुस्लिम युवा अपने निजी खर्चे पर फ़िलहाल 50 से अधिक गायों की सेवा कर रहे हैं। 

ये वो अल्फाज़ हैं जो उन्हें चुभते थे...

मुसलमान गौहत्या करते हैं। बस इसी पीड़ा ने इस मुस्लिम युवा की जिंदगी बदलकर रख दी। उसी दिन से इंजीनियरिंग की पढाई कर चुके एक छात्र ने इस बात से ऐसा सबक लिया कि नौकरी और बिजनेस को छोड़कर गौशाला में गायों की सेवा करने का फैसला ले लिया। आबिद को इस बात का मलाल है कि अन्य गाेशालाओं की तरह गौसेवा आयोग या राज्य सरकार से उसे गौशाला चलाने के लिए कोई मदद नहीं मिलती। 

2 -3 गायों से गौशाला की शुरुआत

आबिद हुसैन का जन्म 1 जनवरी 1991 को मोहमदनगर गांव में किसान परिवार में हुआ। आबिद ने वर्ष 2014 में झज्जर से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की। उसी दौरान उसके कुछ साथी छात्र गौहत्या को लेकर मुस्लिम समाज के बारे में कुछ गलत व अनाप - शनाप बात करते थे। वही बात आबिद हुसैन ने दिल में ठान ली और पढाई पूरी करके घर लौटे तो परिवार के सदस्यों इच्छा जताई। परिवार के लोगों ने आबिद हुसैन का साथ दिया और जमीन से लेकर आर्थिक मदद की। शुरू में 2 -3 गायों से गौशाला की शुरुआत की। आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार को बुलाकर गौशाला का उदघाटन किया। आबिद हुसैन ने देश भर में संदेश दिया कि मुसलमान गौहत्या नहीं करता बल्कि गायों की सेवा भी पूरी लग्न और मेहनत से करता है। आबिद हुसैन के मुताबिक अब तक सिर्फ 18 हजार रुपये की आर्थिक मदद हुई है। जबकि करीब 15 लाख रुपये सालाना खर्च गौशाला पर होता है। आबिद हुसैन अपने प्रयास व चंदा के बलबूते पर गौशाला को चला रहे हैं। मुस्लिम गौप्रेमी आबिद हुसैन को मलाल है कि अब तक बार - बार मुलाकात के बावजूद भी गौसेवा आयोग ने उनकी कोई मदद नहीं की। आबिद हुसैन को गौशाला चलाने के लिए बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा , लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। सरकार अगर इस मुस्लिम शिक्षित इंजीनियर आबिद हुसैन को आर्थिक मदद करे , तो आबिद हुसैन मिशाल बन सकते हैं। भले ही आबिद हुसैन ने गौपालन का कार्य करनी की ठानी , लेकिन मदद के बजाय उसे टांग खिंचाई का सामना करना पड़ा। कठिनाइयां तो इस मुस्लिम गौप्रेमी की राह में सबसे बड़ी आर्थिक स्थिति है ,लेकिन पेट में दो रोटी कम खाकर आबिद भूखी - प्यासी गायों की सेवा में जुटा है। एक बार तो टीन शेड पर कुदरत की लाखों रुपये की मार पड़ चुकी है ,लेकिन तिनका - तिनका जोड़कर फिर से आशियाना बनाने की कोशिश जारी है। चारे से लेकर पीने के पानी का बेहतर इंतजाम गौशाला में मौजूद है।

साभार-khaskhabar.com