विजयवाडा में धेनु मानस गौ कथा आयोजित 

गोमाता

विजयवाडा 20 फरवरी ( पर्वत शर्मा ) स्थानीय वनटाउन स्थित श्री सुखदेव  राठी महेश्वरी भवन में गत रात्रि श्री गौमाता गौ सेवा ट्रस्ट द्वारा धेनुमानस गौ कथा का आयोजन किया गया । गत 9 मई 2016 को गंगोत्री से यात्रा प्रारम्भ कर 365वे जिले( कृष्णा ) विजयवाडा में पधारे श्री गोपाल मणिजी महाराज ने कथा सुनाई ,उन्होंने कथा में गौमाता से जुड़े अनेक फायदे बताते हुए कहा की " गौमाता के बोलने से जो माँ की आवाज निकलती है उनको सुनने से कान का बहरापन ठीक हो जाता है और माँ ध्वनि मंदिरो में घण्टी बजाने का काम करती है। गौ कथा में सरकार पर आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि दिल्ली की भारत सरकार गाय को गौमात

गाय बची तो ही देश बचेगा, सभ्यता बचेगी

भारत की संस्कृति, समृद्वि और सभ्यता का आधार गंगा, गौ, गायत्री, गीता और गुरु ही रही है।

भारत की संस्कृति प्रकृति मूलक संस्कृति है। दुनिया के

प्राचीनतम ग्रन्थ वेदो में कण-कण के प्रति अहोभाव कीh अभिव्यक्ति है। हमने सूर्य-चन्द्र, ग्रह नक्षत्र, पशु-पक्षी, जीव-जन्तु, पेड़-पौधों को पूज्य माना है। प्रकृति का कण-कण हमें देता है। इसीलिए कण-कण में देवाताओं का निवास माना है।

मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक आहार देसी गाय का दूध ही है ।

मां के दूध के बाद सबसे पौष्टिक आहार देसी गाय का दूध ही है ।

आज भी गाय की उत्पादकता व उपयोगिता में कोई कमी नहीं आई है । केवल हमने अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक आधार से हटाकर यन्त्राधारित बना लिया है । विदेशियों के अंधानुकरण से हमने कृषि को यन्त्र पर निर्भर कर दिया । यन्त्र तो बनने के समय से ही ऊर्जा को ग्रहण करने लगता है और प्रतिफल में यन्त्रशक्ति के अलावा कुछ भी नहीं देता । बैलों से हल चलाने के स्थान पर ट्रेक्टर के प्रयोग ने जहाँ एक ओर भूमि की उत्पादकता को प्रभावित किया है वहीं दूसरी ओर गोवंश को अनुपयोगी मानकर उसके महत्व को भी हमारी दृष्टि में कम कर दिया है । फिर यन्त्र तो ईंधन भी मांगते हैं । आज खनिज तेल के आयात के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत अ

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गाय की पूरी शारीरिक संरचना विज्ञान पर आधारित है ; जानें कैसे ??

गाय , ऋषिमुनि , विज्ञानं , गौवंस

हम बीमार क्यों होते हैं इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि हमारा शरीर पंचभूतों से निर्मित है। मानव के अतिरिक्त मानव उपयोगी समस्त जीवों का भी शरीर भी पंचभूतों से ही निर्मित है । वर्तमान चिकित्सा पद्धतियाँ आज के समय रासायनिक तरीकों से चिकित्सा करती हैं , उन्हें पंचभूत को संतुलित करने का कोई ज्ञान नहीं है । आज के समय मानव निर्मित सारे पंचभूत चाहे वह मिट्टी हो , जल हो , वायु हो , अग्नि हो या आकाश हो सब कुछ दूषित हो चुका है ।

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