अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है।
गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया हैं।
गोबर में लक्ष्मी का वास होने से इसे 'गोवर' अर्थात गौ का वरदान कहा जाना ज़्यादा उचित होगा।
गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है।
गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोई घर, दोनों जगह प्रयोग होता है।
गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है।
गोबर की खाद से फ़सल अच्छी होती है और सब्जी, फल, अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है।
आयुर्वेद में गौमूत्र अनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है।
लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है। पेट की बीमारियों,चर्म रोग, बवासीर, जुकाम, जोड़ों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनकलाभ दिया है। इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्राल भी कम होते देखा गया है।
गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्य तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है।
तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गो धन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी।