गाय और गंगा
गंगा संरक्षण मंत्रालय सम्भालने के कुछ महीने पहले उमा भारती ने कानपुर में गंगा किनारे दिये एक भाषण में टेनरीज पर निशाना साधते हुए कहा था कि गाय को लेकर ऐसा कानून बनाएँगे कि कोई कागज पर बनी गाय को भी काटने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। टेनरीज पर रोक लगाना तो दूर उमा भारती उन्हे गंगा में गोवंश का खून बहाने से भी नहीं रोक पा रहीं हैं। कुल मिलाकर गाय और गंगा को लेकर सिर्फ हल्ला मचाया जा रहा है। डेढ़ साल से लोगों को लग रहा है कि बस अब कुछ होने ही वाला है लेकिन यह इन्तजार खत्म ही नहीं हो रहा।
नया शगुफा देखिए उमा भारती ने रुड़की आईआईटी के वैज्ञानिकों को यह पता लगाने के लिये कहा है कि गंगा का उद्गम गोमुख है या कैलाश मानसरोवर। रिमोट सेसिंग की मैपिंग का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि पहले गंगोत्री तक बर्फ जमी रहती थी जिससे लोग गोमुख तक नहीं पहुँच पाते थे। अब गोमुख तक पहुँचा जा सकता है। गोमुख को देखकर लगता है कि रिसकर बाहर आ रहे पानी का स्रोत कहीं और हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस नए शिगुफे से गंगा का क्या भला होगा?
क्या कैलाश मानसरोवर को उद्गम घोषित कर देने से उसमें सीवेज डालना बन्द हो जाएगा? या सरकारें बाँध बनाना बन्द कर देंगी। यह पूरी तरह से बड़ी और ज्वलन्त समस्या से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश है। वास्तव में यह मंत्रालय की नाकामी को ढँकने का प्रयास है जिसे सन्त समाज समझ रहा है और उसने इसका विरोध भी शुरू कर दिया है। उनका मानना है कि सनातन धर्म में वर्षों से यही मान्यता है कि गंगा गोमुख से निकली है।
दुनिया का सारा पानी कहीं-ना-कहीं एक दूसरे से जुड़ा है तो इस बहस का क्या मतलब कि गंगा कहाँ से निकली है। सन्तों का कहना है कि जो गंगा हमारे युग में मौजूद है हमें उसे निर्मल और अविरल रखने का प्रयास करना चाहिए, नहीं तो वह आई कहाँ से है हम इस पर जुझते रहेंगे और गंगा हमारी आँखों के सामने ओझल भी हो जाएगी।
वास्तव में हिमालय और तिब्बत से निकलने वाली भारत की सभी नदियों का उद्गम कहीं-ना-कही कैलाश मानसरोवर ही है। ब्रह्मपुत्र सहित कई नदियाँ ज्ञात रूप में मानसरोवर से निकलती हैं। दरअसल 65 मील लम्बी कैलाश मानसरोवर झील के नीचे 200 से अधिक झरने हैं और इन्हीं का पानी भूमिगत होकर गोमुख की तरफ बढ़ रहा हो सकता है। अब पौराणिक मान्यताओं पर गौर करें तो ये झरने भगवान शिव की जटाओं का अहसास कराते हैं। लगता है कि शिव की जटाएँ ही गंगा के प्रवाह की शुरुआत करती हैं। इससे पहले भी कई वैज्ञानिक गंगा का उद्गम मानसरोवर को बता चुके हैं।
यह सब तभी हो रहा है जब आपदा प्रबन्धन तंत्र के अभाव पर नियंत्रक एवं महालेखापरिक्षक ने सत्ता को झाड़ पिलाई। 2013 की आपदा से राज्य और केन्द्र ने कोई सबक नहीं सीखा यहाँ तक कि हिमनदियों पर गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया और निर्माण के नाम पर अन्धाधुन्ध विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। कैग की रिपोर्ट बताती है कि गंगोत्री, यमुनोत्री जा रहे यात्रियों को प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिये सरकारें कितनी तैयार हैं।
अब जब देश को यह बताने का समय आ रहा है कि मंत्रालय ने अब तक आबंटित फंड खर्च क्यों नहीं किया या क्यों बीस महीने के शासन में सिर्फ एक नया सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा है या फिर अब तक प्रदूषण फैला रही किसी भी फ़ैक्टरी को बन्द क्यों नहीं किया गया, तो सरकार गंगा के उद्गम को नारे में बदलकर एक हर्षोल्लास का माहौल बनाना चाहती है ताकि नारों के शोर में सवाल खो जाये। यह हो भी जाता लेकिन फिलहाल जनता ‘गाय हमारी माता है’ का नारा लगा रही है फिर वो सड़कों पर घूमती है और पोलीथिन खाती है, तो क्या हुआ?