गाय के ग्रामीण अर्थशास्त्र
गाय के ग्रामीण अर्थशास्त्र को समझने के लिये ‘गाय’ को केन्द्र में रखें तो उसका नक्शा कुछ ऐसा बनता है:— गाय से घी—दूध, मक्खन, मट्ठा, गाय से खेतों के लिये बैल, गाय—बैल से खेतों के लिये खाद, परिवहन के लिये बैलगाड़ी, चमड़े के लिये मृत गाय बैल और गाय बैल के पोषण के लिये घास, भूसा जो खेती के उपउत्पाद हैं। इस प्रकार खेती पर आधारित किसान के लिये संपूर्ण गोवंश अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेती भारतीय किसान के लिये एक पूजा है, जीवंत श्रम है, साधना है। गाय मनुष्य को श्रेष्ठ जीवन का पाठ सिखाती है, वह हमें दूध जैसा उत्तम पदार्थ देती है, जो माता के दूध के बाद सर्वश्रेष्ठ आहार माना जाता है। किस जाति, धर्म या संप्रदाय का ऐसा बच्चा है जिसे माता के दूध के बाद गाय के दूध की आवश्यकता न पड़ती हो इसे सांप्रदायिकता का प्रश्न बनाना मानसिक दिवालियापन ही कहा जावेगा।
आधुनिक युग में गोरक्षा के जन्मदाता महर्षि दयानंद सरस्वती ने एक छोटी सी परन्तु सारगर्भित पुस्तक ‘‘गोकरुणानिधि’’ के एक अंश में लिखा कि ‘‘यदि एक गाय कम से कम दो सेर दूध देती है और दूसरी गाय बीस सेर तो प्रत्येक गाय का औसत ग्यारह सेर होगा। इसी प्रकार एक माह में सवा आठ मन (१ मन= ४० सेर) दूध होगा। एक गाय कम से कम ६ मास व ज्यादा से ज्यादा १८ मास दूध देती है तो औसत हर गाय १२ माह दूध देती है। इस प्रकार १२ महीने का दूध ९९ मन होगा।
इस दूध में से प्रति सेर एक छटाक चावल व डेढ़ छटाक चीनी डालकर खीर बनाकर प्रतिव्यक्ति को एक सेर दूध की खीर के हिसाब से १९८० व्यक्तियों को खिलाया जा सकता है। इस प्रकार एक बार ब्याहने में १९८० व्यक्तियों को तृप्त कर सकती है। गाय कम से कम ८ व ज्यादा से ज्यादा १८ बार ब्याहती है, जिसका औसत १३ होगा, इस प्रकार एक गाय अपने जीवनकाल में २५७४० व्यक्तियों को एक बार में तृप्त कर सकती है।
एक गाय को अपने जीवनकाल में ६ बछड़ी व 7 बछड़े होते हैं जिनमें से एक की रोग आदि से मृत्यु हो तो १२ रहेंगे। उन छ: बछड़ियों के दूध मात्र से इसी प्रकार १,५४,४४० मनुष्यों का पालन होगा। छ: बछड़ों की दो—दो की जोड़ी बने तो उनमें से एक जोड़ी से दो फसल में २०० मन अनाज उत्पन्न हो सकता है एवं तीन जोड़ी से ६०० मन। इन बैलों का औसत जीवन मात्र ८ वर्ष मानें तो तीन जोड़ी बैल अपने जीवनकाल में ४८०० मन अनाज उत्पन्न करेंगे। एक मनुष्य को एक समय में भोजन के लिए तीन पाव अनाज चाहिये इस प्रकार २,५६,००० मनुष्य एक बार खाना खा सकेंगे।
दूध व अन्न दोनों का योग करें तो ४,१०,४४० मनुष्यों का पालन एक समय के भोजन हेतु होता है जबकि इसी प्राणी के मांस से मात्र ८० मांसाहारी एक समय तृप्त हो सकेंगे। (डा. करमरकर, उपसंचालक—जैविक खेती, इन्दौर)
‘‘एक गाय एक दिन में औसतन १० किलोग्राम गोबर देती है। यदि इस गोबर का उत्तम तरीकों (जैसे नाड़ेप) से खाद बनायें तो दस दिन के गोबर से ३० टन उत्तम गुणवत्ता वाली खाद प्राप्त हो सकती है, जिसकी कीमत १२०० रु.बनती है।’’
इस प्रकार गाय का प्रत्येक उत्पाद तथा अंग मनुष्य के लिये आर्थिक लाभ प्रदान करने वाला होता है। मरणोपरांत उसकी चमड़ी से विभिन्न साज सज्जा की सामग्री एवं वाद्य यंत्र बनाये जाते हैं, जिसकी कीमत बहुत अधिक होती है।
आज कितना भी औद्योगिकीकरण क्यों न हो जाये, जैविक खाद की आवश्यकता निरंतर बढ़ती ही है। गोमूत्र, घी, दूध आदि के महत्व व औषधीय गुणों को कौन नहीं जानता। ‘‘इसी कारण तो ‘‘गाय’’ को हमारी सभ्यता का मेरुदण्ड एवं अर्थव्यवस्था का आधार कहा गया है।’’