गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है
गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है।इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है।
भारत वर्ष में यह विषय डेरी उद्योग के गले आसानी से नही उतर रहा, हमारा समस्त डेरी उद्योग तो हर प्रकार के दूध को एक जैसा ही समझता आया है. उन के लिए देसी गाय के ए2 दूध और विदेशी ए1 दूध देने वाली गाय के दूध में कोई अंतर नही होता था. गाय और भैंस के दूध में भी कोई अंतर नहीं माना जाता. सारा ध्यान अधिक मात्रा में दूध और वसा देने वाले पशु पर ही होता है. किस दूध मे क्या स्वास्थ्य नाशक तत्व हैं, इस विषय पर डेरी उद्योग कभी सचेत नहीं रहा है. सरकार की स्वास्थ्य सम्बंदि नीतियां भी इस विषय पर केंद्रित नहीं हैं.
भारत में किए गए NBAGR (राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो) द्वारा एक प्रारंभिक अध्ययन के अनुसार यह अनुमान है कि भारत वर्ष में ए1 दूध देने वाली गौओं की सन्ख्या 15% से अधिक नहीं है. भरत्वर्ष में देसी गायों के संसर्ग की संकर नस्ल ज्यादातर डेयरी क्षेत्र के साथ ही हैं .
आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 से देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.
छोटे ग़रीब किसनों की कम दूध देने वाली देसी गाय के दूध का विश्व में जो आर्थिक महत्व हो सकता है उस की ओर हम ने कई बार भारत सरकार का ध्यान दिलाने के प्रयास किये हैं. परन्तु दुख इस बात का है कि गाय की कोई भी बात कहो तो उस मे सम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे कितना भी देश के लिए आर्थिक और समाजिक स्वास्थ्य के महत्व का विषय हो.