गाय भी बन सकती है भैस से बेहतर ..
आज की बछड़ी कल की होने वाली गाय-भैंस है। जन्म से ही उसकी सही देखभाल रखने से भविष्य में वह अच्छी गाय भैंस बन सकती है। स्वस्थ बचपन में अगर बछड़ियों का वजन लगातार तेजी से बढ़ता है तो वे सही समय पर गायश्भैंस बन जाती है। पषु पालक को एक गायश्भैंस से ज्यादा ब्यांतश्ज्याद दूध मिलने से अधिक लाभ होता है। ब्यांहने के पहले, आखिरी के दो महीनों में गर्भ बहुत तेजी से बढ़ता है। इन्ही दो महीनों में गायश्भैंस की पाचन षक्ति कम हो जाती है। ऐसे में संतुलित पशु आहार खिलाना बहुत जरूरी है। बच्चादानी में तेजी से बढ़ रहे बछड़े की सम्पूर्ण बढ़ोत्तरी के लिए गायश्भैंस को आखरी के दो महीने अच्छी गुणवत्ता का संतुलित आहार रोजाना 1.5 से 2.0 किलोग्राम खिलाना चाहिए। ऐसा करने से ब्यांहने के समय तथ ब्यांहने के बाद की कई अन्य कठिनाईयां जैसे कमजोरी, जेर अटकना, पिच्छा बाहर आना (फूल दिखाना) मिल्क फिवर इत्यादि से भी छुटकारा मिल सकता है।
ब्याहने के बाद बछड़े - बछड़ियों की देखभाल कैसे करें ?
-जन्म के बाद बछड़े का नाकश्मुँह साफ करें।
-नाल को चार अंगुली नीचे छोटा धागा या रस्सी से बाँध कर साफश्सुथरी कैंची या ब्लेड से काटें। बाद में नाल को आयोडीन के कप में अच्छी तरह से डुबो लें।
-बछड़े को साफ कपड़े से रगड़ कर सुखाएं।
-बछड़े को माँ के सामने रखें। माँ के लगातार चाटने से बछड़े के षरीर में खून दौड़ने लगता है।
-जन्म के बाद एक घंटे के अंदर बछड़ेश्बछड़ियों को खींस जरूर पिलाना चाहिए। खींस पिलाने के लिए जेर गिरने की राह नहीं देखें। एक घंटे के अन्दर पिलाया हुआ खींस बछड़ों को भविष्य में कई खतरनाक बीमायिों से बचाने की जाकत देता है। बछड़ेश्बछड़ियों को उनके वजन के 10 प्रतिषत खींस रोज पिलाना चाहिए जैसे 25 किलोग्राम वजन कें बछड़े को 2.5 किलोग्राम खींस पिलाएं।
बछड़ों को दूध पिलाने की अलगश्अलग विधियाँ :
-माँ के ऑंचल से : गायश्भैंस के थन साफश्सुथरे होने चाहिएं।
-साफश्सुथरी बाल्टी में से : गर्म करके ठंडा किया हुआ दूध। बछड़ा बहुत जल्दी मं दूध नहीं पीए, इसका ध्यान रखें वरना बदहज़मी हो सकती है।
-उल्टी टंगी हुई दुध की बोतल से : बोतल को हर बार गर्म पानी से साफ कर लीजिए।
-दूध पीना समाप्त करने पर बछड़े का मँह गीले कपड़े से साफ कर लें।
-उम्र के डेढ़श्दो मास के बाद, दिन में एक ही बार दूध पिलाएं। बछड़े को धीरेश्धीरे गेहँ की चोकर, दलिया, पिसा हुआ मक्का इत्यादि खने की आदत डालें। छोटे बछड़ेश्बछड़ियों के लिए खास तौर पर बनाया गया संतुलित आहार 'काफ स्टार्टर' भी दे सकते हैं।
-उम्र के दो महीने बाद प्रत्येक बछड़ेश्बछड़ी को प्रति दिन 10 ग्राम मिनरल मिक्सचर अवष्य खिलाएं।
-6 महीने से कम उम्र वाले बछड़ेश्बछड़ियों को यूरिया मिश्रित पशु आहार न खिलाएं। वयस्क गायश्भैंसों के लिए बनाया गया ऐसा आहार बछड़ेश्बछड़ियों को हानि पहँचाता है।
-डेढ़ से दो महीने के बछड़ेश्बछड़ियों को पेट के कीड़े मारने की दवा (क्मूवतउमत) देना बहुत जरूरी है। यह दवा साल में दो बार अवष्य दें।
-डम्र के तीन महीने बाद ''मुँह पका - खुर पका'' नामक बीमारी की रोकथाम के लिए टीका जरूर लगवाएं। जरूरत होने पर 10 दिन बाद ''गलाश्घोंटू'' बीमारी का भी टीका लगाना चाहिए।
समयश्समय पर ''चिचड़'' का प्रतिबंधन करने से बछड़ेश्बछड़ियों का वजन बढ़ने में मद्द होती है। चिचड़ों के माध्यम से फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम होती है।
चिचड़ों के लिए घरेलू दवा बनाने की विधि :
दो लीटर खट्टा छाछ (तीन दिन पुराना) लीजिए। इसमें दो चम्मच पिसी हुई हल्दी और दो मुट्ठी कपड़े धोने का डिटर्जेंट पाऊडर मिलाएं। इस घोल को पशु के षरीर पर साफश्सुथरे कपड़े से लगाएं। साथश्साथ बाड़े में आसपास इसी घोल का स्प्रें करें।
दुधारू पषुओं में ब्यांत से सौ महत्वपूर्ण दिन
संकरित गाय का ब्यांत कुल 305 दिन का माना जाता है। इनमें से पहले दिन खींस के और बाकी 300 दिन दुध के होते हैं। संकरित गाय नस्ल की गायों के संदर्भ में श्श्
1. प्रत्येक वर्ङ्ढ में एक ब्यांत
2. दो ब्यांतों में 13 से 14 महीनों का अन्तर
इन दो मुद्दों पर दूध व्सवसाय की नफा - नुकसान काफी हद तक निर्भर करता है, इसलिए ब्यांत के कुछ दिन बहुत महत्पपूर्ण माने गये हैं।
सौ महत्पूर्ण दिन :
ब्यांहने से पहले के 30 दिन और ब्यांहने के बाद के 70 दिन : इन सौ दिनों में दुधारू पशओं के षरीर में विभिन्न प्रक्रियों के द्वारा -
1. ब्यांहने की तैयारी
2. ब्यांने के बाद क्षमतानुसार दूध देने की तैयारी
3. छोबारा गाभिन रहने की तयारी पूर्ण की जाती है।
ब्यांहने से पहले 30 दिन में गाय-भैंस को दूध तो नहीं देना होता परन्तु बछड़े के जन्म तथा उसके बाद में दूध देने के लिए उसका षरीर यंत्रणा का काम तेजी से जारी रहता है। प्रोटीन, ऊर्जा, मिनरल्स इत्यादि पोङ्ढक घटकों का षरीर में संचय किया जाता है। आखिर के 30 दिनाें में बच्चादानी में बछड़े के वजन में बहुत तेजी से बढ़ोत्तरी होती है, इसलिए भी माँ को पोङ्ढक घटकों के अतिरिक्त खुराक की जरूरत होती है।
आमतौर पर यह देखा गया है कि जब गाय-भैंस दूध नहीं देती है या सुखायी जाती है तब किसान उसकी तरफ बहुत कम ध्यान देता है, खासकर उसकी खुराक पर.......
इसका परिणाम -
बयाहने में तकलीफ
-जेर अटकना
-मिल्क फीवर
-कम वनज का बछड़ा
-अपेक्षा से कम दूध
-दूध में उतार - चढ़ाव
-ऋतु चक्र में गड़बड़ी (हीट)
इन गड़बड़ियों से बचने के लिए क्या करें ?
-ब्यांहने से पूर्व के 30 दिनों में गाभिन पशु को संतुलित पशु आहार अवष्य खिलाएं। पशु को हर रोज 200 ग्राम पचनीय प्रोटीन एवं 1500 कि. कैलोरी ऊर्जा मिलनी चाहिए, इससे गर्भ के वजन में सही
-परजीवी नाषक दवा (डिवर्मर) अवष्य दीजिए।
-जरूरत होने पर खुरों को अच्छी तरह से काट लें।
-ब्याहनें के बाद षरीर में कैल्षियम की कमी नहीं होनी चाहिए, इसलिए निम्नलिखित मिश्रण खिलाएं :श्
-एल्यूमिनियम क्लोराइड 100 ग्राम + मैग्नेषियम सल्फेट 100 ग्राम अथवा कैल्षियम क्लोराइड 100 ग्राम + मैग्नेषियम सल्फेट 100 ग्राम ।
-यह मिश्रण कम से कम आखरी के 15 दिन तो देना ही चाहिए।
-आखिर के 8 दिन पूँछ, पेषाबदानी आदि पिछला हिस्सा हर रोज सफाई से धो लें। पशु को साफश्सुथरी, हवादार खाली जगह पर बाँधें।
ब्याहने के बाद 34 दिनों से 45 दिनों तक दूध में लगातार वृध्दि होती है। जिस दिन सबसे अधिक दूध मिलेगा उस दूध की संख्या को 245 से गुणिए, जो संख्या आएगी इससे वह पशु उस ब्यांत में कितना दूध देगा इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्यांहने के तुरन्त बाद गुड़ का पानी (1/2 किलो गुड़ + 10 लीटर पानी) दीजिए। जेर गिरने में मद्द हागी।
बाद के 70 दिन
ब्यांहने से बाद के दिनों में जिस हिसाब से दूध बढ़ता है उसकी अपेक्षा पशु खुराक नहीं खा पाता। इस वक्त दूध की बढ़ोत्तरी षरीर में संचित चर्बी पर निर्भर करती है, ऐसे में ब्यांहने से पहले बॉडी स्कोर (3.5 से 4) तथा बाद का स्कोर (2.8 से 3.2) बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब छाती की तीन से ज्यादा पसलियां दिखने लगती हैं तब 10 प्रतिषत तक दूध घटता है, साथ ही साथ ऋतुकाल (हीट) भी टलता है।
गाय - भैंस जब अधिकतक दूध दे रही हाती है, उन दिनों उसे ऊर्जा-प्रोटीन से भरपूर (हाय एनर्जी-हाय प्रोटीन) आहार देना चाहिए। ऐसे में फुल फैट सोयाबीन एक बहुगुणी, उपयुक्त खाद्य घटक साबित हुआ है। फुल फैट सोयाबीन में 38 से 40 प्रतिषत प्रोटीन, 18 से 20 प्रतिषत फैट तथा 3700 कैलारी ऊर्जा है।
ब्यांहने से बाद के 70 दिनों का आहार, रखरखाव, बीमीरियाँ इन सब बातों पर निर्भर करता है बाकी बचे दिनों में मिलने वाला दूध।
इस तरह ब्यांत के पूर्व 30 दिन तथा बाद के 70 दिन (कुल सौ दिन) पषु पालन व्यवसाय के नफा-नुक्सान को तय करते हैं। इन दिनों में पशु पालक ने अपने पशु पर विषेङ्ढ ध्यान देकर व्यवसाय को अधिक लाभकारी बनाने की हर सम्भव कोषिष करनी चाहिए।
गोबर परीक्षण : एक उपयुक्त हथियार
एक साधारण गायश्भैंस एक दिनश्रात में 12 से 18 बार गोबर करती है, जिससे 20 से 40 कि.ग्रा. गोबर मिलता है। केवल गोबर का निरीक्षण करके आप पशु के पेट में चल रही चयापचय क्रिया तथा उसके आहा के असंतुलन का पता कर सकते हैं।
गोबर कैसा है ? निर्देष
गहरे रंग का पतला गोबर - आहार में जरूरत से ज्यादा प्रोटीन होना या रेषों की कमी होना
हल्के रंग का पतला गोबर - ऑसिडोसिस (अफारा)
सख्त गोबर - नमक की कमी / पानी कम पीना / आहार में प्रोटीन की कमी या रेषों की मात्रा ज्यादा होना
गोबर में अनाज के दाने - दाने की पिसाई में कमी या ऑसिडोसिस
गाय - भैंस में जेर अटकना
सामान्य रूप से ब्यांहने के बाद 2 से 8 घंटों में जैर अपने आप गिर जाती है। किसी भी कारणवष जेर के अटकने से बच्चेदानी पर बुरा असर होता है। गाय भैस का दूध उसकी क्षमता की अपेक्षा घट जाता है। उसका ऋतु चक्र बिगड़ता है। बच्चादानी में गड़बड़ी होने के कारण दुबारा गाभिन रहने में तकलीफ होती है।
जेर क्यों अटकती है ?
- सेहत की कमजारी : कमजोर गायश्भैंस की सारी ताकत बच्चे को बच्चेदानी में से बाहर निकालने में खर्च हो जाती है। बाद में ऐसा पशु जेर को बाहर फैंकने में असमर्थ होता है।
- शरीर में मिनरल्स (खनिजों) की कमी : कैल्षियम, फॉस्फोरस, सेलेनियम, कॉपर, आयोडीन इत्यादि जरूरी मिनरल्स की षरीर में कमी होना भी जेर अटकने का एक कारण बन सकता है।
- व्यांहने से पूर्व बच्चेदानी में कोई इन्फेक्षन होना : दिन पूरे होने के पहले या बहुत बाद में ब्यांहना, बच्चादानी में गर्भ की अवस्था में बदलाव, जुड़वा बछड़ों का जन्म इत्यादि कारणों से भी जेर गिरने में रूकावट होती है।
जेर नहीं अटके इसके लिए क्या करें ?
- ब्यांहने के दो महीने पहले से गायश्भैंस को प्रतिदिन 2 से 3 किलोग्राम संतुलित पशु आहार खिलाएं। इससे पशु की सेहत अच्छी बनती है।
- मिनरल्स की अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए रोजाना के आहार में अच्छी कम्पनी का मिनरल मिक्स्चर (30 से 40 गा्रम प्रति पशु) अवष्य दें।
- ब्यांहने के तुरन्त बाद गायश्भैंस को गुड़ का पानी पिलाएं (आधा कि.गा्र. गुड़ + 10 लीटर पानी)
- ब्यांहने के एक घंटे के अन्दर बछड़े को खींस पिलाना ही चाहिए। जेर के गिरने तक खींस पिलाने की राह देखना बछड़ा और माँ दोनों के लिए हानिकारक है। एक घंटे के अन्दर बछड़े के खींस पीने से जेर गिरने में भी मद्द होती है।
जेर अटकने पर क्या उपाय करें ?
- ब्यांहने के 12 घंटे बाद भी जेर अटकी है तो इसे हाथ से लिकालने का प्रयास नहीं करें।
- ब्यांहने के 36 से 48 घंटों में बच्चादानी का मँंह पूरी तरह बन्द हो जाता है। बच्चादानी का मुँह बन्द होने से पहले उसमें पशु चिकित्सक के हाथें नली द्वारा ''एन्टीबायोटिक'' दवाई डालें।
- अटकी हुई जेर को चप्पल, पत्थर इत्यादि से बाँध कर खींचने का प्रयास न करें।
- अनुभवी पशु चिकित्सक से सलाह कर के कम से कम पाँच दिन दवाईयाँ दीजिए।
थनैला : कारण एवं प्रतिबंधन
दूध व्यवसायी पशुपालक के लिए थनैला एक चुनौती से कम नहीं हैं। तीव्र हो या सुप्त, थनैला होने से पशुपालक को बहुत नुकसान पहुँचता है। इसका प्रतिबंधन एवं समय पर उपचार करना अति महत्वपूर्ण है।
थनैला क्याें होता है ?
किसी भी कारणवष रोग जन्तुओं का (जीवाणु, विङ्ढाणु, फफूंद इत्यादि) थनश्लाओटी में प्रवेष व बाद में प्रसार होने से थनैला होता है।
थनैला के मद्दगार :
- थन पर बाहर से जख्म या खरोंच
- समय पर दूध निकालने में देरी
- बाड़े में फर्ष (जमीन) पर हमेषा गंदगी
- पिछले पैरों के ज्यादा बढ़े हुए नाखून
- खुरों का टेढ़ाश्मेढ़ा बढ़ना तथा दो खुरों के बीच मं जख्म
- जेर अटकने का इतिहास एवं बच्चादानी में इन्फेक्षन
- घटिया व असंतुलित पषुआहार
- रोजाना के आहार में मिनरल्स की कमी जैसे कोबाल्ट, कॉपर, फॉस्फोरस, सेलेनियम इत्यादि
- ब्रुसेल्ला एवं गलाघोंटू जैसी बीमारी
सुप्त थनैला : छिपा दुष्मन
थनैला बीमारी के इस प्रकार में कोई भी लक्षण बाहर से नज़र नहीं आते। जिस थन में यह बीमारी होती है उसमें से कम दूध निकलता है और दूध में फैट की मात्रा हमेषा कम ही रहती है। ऐसे सुप्त थनैला का पशु चिकित्सक की मदद से पहचान कर के उसका तुरन्त इजाज करना बहुत फायदेमंद साबित होता है। सुप्त थनैला का पहचानने के लिए सी. एम. टी. परीक्षण एक बहुत सरल एवं सस्ता उपाय है।
थनैला का प्रतिबंधन :
- दूध निकालने वाले के नाखून, उसके हाथों की स्वच्छता एवं पशुओं के उठने बैठने की जगह की साफश्सफाई का खास तौर पर ध्यान देना चाहिए।
- थन या लाओटी की छोटी सी खरोंच का भी तुरन्त उपचार करें।
- बढे हुए पिछले नाखून / खुरों को समयश्समय पर काट कर सामान्य से ज्यादा न बढ़ने दें।
- हाल ही में खरीदे हुए नए पशुओं का कुछ दिन थोड़ा हट कर बाँधिए।
- दूध निकालने के बाद थन का छेद आधे से चार घंटों तक खुला रहता है। खुले छेद के द्वारा रोग जन्तु आसानी से अन्दन प्रवेष करक थनैला का कारण बन सकते हैं। रोग जन्तुओं का प्रवेष रोकने के लिए हमेषा दूध निकालने के पश्चात चारों थनों को औङ्ढधि युक्त पानी में डुबोना न भूलें। इसके लिए एक गिलास/कप में लाल दवा/ ब्लीचिंग पाऊडर या बेन्झालकोनियम मिश्रित पानी का प्रयोग करें। इन दवाओं का बदलश्बदल कर इस्तेमाल करें।
- दूध से सुखाते समय गायश्भैंस के चारों थनों से सम्पूर्ण दूध निकाल कर प्रत्येक थन में दवाई युक्त मल्हम की टयूब (केवल 3 मि.मी. अन्दर तक) से दवाई छोड़ें। बाद में अगले चार दिन थनों को ऊपर दिए गए निर्देषानुसार दवाई मिश्रित पानी के कप में रोजाना डुबोएं।
- सभी पशुओं को हमेषा ताजा, साफश्सुथरा तथा ठंडा पानी पीने को दीजिए।
- थनैला के प्रतिबंधन में अच्छी गुणवत्ता वाले संतुलित आहार का योगदान महत्वपूर्ण है। आहार में मिनरल मिक्स्चर (खनिज मिश्रण) का सही मात्रा में होना अनिवार्य है।
- थनैला के लक्षणप दिखने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सलाह मष्वरा कर उपचार करवाएं। किसी भी प्रकार की लापरवाही बहुत नुक्सानदेय साबित हो सकती है।
गोबर परीक्षण : एक उपयुक्त हथियार
एक साधारण गायश्भैंस एक दिनश्रात में 12 से 18 बार गोबर करती है, जिससे 20 से 40 कि.ग्रा. गोबर मिलता है। केवल गोबर का निरीक्षण करके आप पशु के पेट में चल रही चयापचय क्रिया तथा उसके आहा के असंतुलन का पता कर सकते हैं।