गौ के प्रति श्रद्घाभाव रखने से ही बचेगी मानवता : रविकांतसिंह
नई दिल्ली। गौमाता इस देश के लिए प्राचीन काल से ही पूजनीया रही है। उसके गुणों से प्रभावित होकर ही हमारे पूर्वजों ने गाय को यह सम्मानित स्थान दिया था। यही कारण है कि आज तक भी इस देश में गौमाता के प्रति सम्मान व्यक्त करने वाले, उसकी रक्षा को अपना जीवनव्रत घोषित करके चलने वालों की देश में कमी नही है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं-श्री रविकांतसिंह। जिन्होंने मध्य प्रदेश के जनपद मैहर में गौशाला का निर्माण कराया है।
श्री सिंह स्वभाव से गौ प्रेमी हैं, उनका कहना है कि गौसेवा का संकल्प उन्होंने अपने माता-पिता से लिया। घर के धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश का प्रभाव उन पर पड़ा और वह गीता, गंगा व गाय के प्रति बचपन से ही श्रद्घावान बन गये। श्रीसिंह ने हमें बताया कि गौमाता के प्रति श्रद्घावान रहकर ही उन्हें इस गौशाला के निर्माण की प्रेरणा मिली। जिसकी आधारशिला 28 दिसंबर 2015 को वैदिक विधि विधान से रखी गयी थी। माता-पिता के प्रति श्रद्घालु श्री सिंह ने इस गौशाला की आधारशिला अपने पूज्य पिताश्री डा. आर.ए.सिंह व माता श्रीमती नीलासिंह द्वारा रखबायी थी। श्री डा. आर.ए.सिंह सेवा निवृत्त प्रोफेसर हैं, जे.पी. यूनिवर्सिटी बिहार में मनोविज्ञान विभाग में एस.ओ.डी. के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, और जिन्हें एक शिक्षाविद के रूप में जाना जाता है।
श्री रविकांतसिंह का कहना है कि केन्द्र की भाजपा सरकार गौमाता के प्रति एक अच्छा और अनुकरणीय दृष्टिकोण रखती है। जिसके चलते भारत की गौसंस्कृति की रक्षा की पूर्ण संभावना है। उनका मानना है कि गौ को किसी संप्रदाय विशेष से जोड़ कर देखा जाना एकदम गलत है। गौ का पंचगव्य यदि सभी के लिए समान रूप से हितकारी है तो गौ के प्रति सबका सम्मान भाव भी समान रूप से होना आवश्यक है। गौ का अस्तित्व बचाये रखने का अभिप्राय है मानवता का अस्तित्व बचाये रखना। आज देश को ही नही अपितु संपूर्ण मानवता को ही गौमाता की रक्षा की आवश्यकता है। इसी दृष्टिकोण से इस गौशाला की स्थापना की गयी है। जिसमें इस समय लगभग 250 गायें हैं। श्री सिंह का कहना है कि भविष्य में वे इस गौशाला में देश की सारी नस्लों की गायों की उपलब्धता सुनिश्चित करेंगे, जिससे कि गौवंश की रक्षा की जा सके। क्योंकि गौवंश की कई नस्लों की गायों पर इस समय अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है, इसलिए हम गौशाला को एक आदर्श गौशाला बनाना हमारा उद्देश्य है। लेखक -श्रीनिवास आर्य