गौ - चिकित्सा भाग - 3 ( जहरवात )
यह रोग अधिकतर मादा ( दूध देने वाले ) पशुओं के थन और साधारण पशुओं के गले ( कण्ठ) में होता है । पहले गले या कण्ठ और थन में एक गाँठ पैदा होती है । कुछ ही घण्टों बाद वह बड़ा रूप धारण कर लेती है । यह रोग हर जगह हो सकता है ।
गाय को छूने पर वह गरम मालूम होती है । गाँठ का आकार ३-४ इंच तक होता है । पशु खाना पीना और जूगाली करना बन्द कर देता है । उसे बुखार चढ़ आता है । गले पर सूजन आ जाती है , जिससे साँस लेने में उसे कठिनाई होती है । कभी - कभी इसका आक्रमण थनों पर भी होता है । थन ख़राब हो जाते है । थनों और दूग्धकोष पर सूजन आ जाती है , कभी - कभी छिछडेदार और रक्तमिश्रित दूध निकलता है । समय पर इलाज न होने से थन बेकार हो जाते है । यह बीमारी कभी एक , दो , तीन , चारों थनों में हो जाती है । उपचार उचित समय पर न होने के कारण गर्दन के रोग वाला पशु जल्दी मर जाता है ।
१ - औषधि - रोग - स्थान को नीम के उबले पानी को गुनगुना होने पर दिन में ३ बार सेंका जाय । फिर नारियल का तैल या नीम के तैल की मालिश की जाय । इससे गाँठ को गरम होने में सहायता मिलेगी ।
२ - औषधि - सत्यनाशी की जड़ १२० ग्राम , गुड़ २४० ग्राम , पानी ७२० ग्राम , जड़ को बारीक पीसकर , गुड़ मिलाकर , पानी में घोलकर , रोगी पशु को ( बिना छाने ही ) , दो बार पिलाना चाहिए ।
३ - औषधि - हुलहुल का पुरा पौधा ( मच्छुन्दी ) १२० ग्राम , इसको बारीक पीसकर , रोटी के साथ रोगी पशु को दोनों समय , खिलाया जाय । अथवा इसको बारीक पीसकर ७२० ग्राम , पानी के साथ बिना छाने पिलाया जाय । दवा जादू का - सा असर दिखायेगी ।
टोटका -:-
४ - औषधि - जिस व्यक्ति की सबसे छोटी और अँगूठे के पासवाली अंगुली लम्बी करने से मिल जाती है , उसके द्वारा कुँआरी बछडी का गोबर लेकर सूजन के ऊपर गोल चक्कर बनाकर मध्य में चित्र नं० १ की तरह चीर देना चाहिए ।
आलोक -:- दोनों उँगलियों को मिलाते वक़्त उसको दूसरी दोनों अंगुलियों को हथेली की और दबाकर अंगुलियाँ मिलाना चाहिए ।