चरणामृत की महत्ता, उसके औषधीय गुण एवं ग्रहण करने के नियम

चरणामृत की महत्ता, उसके औषधीय गुण एवं ग्रहण करने के नियम

मित्रों, मन्दिर अर्थात जहाँ बेचैन मन भी स्थिर हो जाय उसे मन्दिर कहते हैं । जहाँ दुनियाँ के हर प्रकार की समस्याओं का समाधान मिले उसे मन्दिर कहते हैं । मन्दिर जहाँ केवल और केवल पोजिटिविटी अथवा सकारात्मकता अर्थात सकारात्मक उर्जा ही कण-कण में प्रवाहित हो रही हो उसे मन्दिर कहते हैं ।।
 
इसमें कोई शक नहीं की आज कुछ हमारे ट्रस्टी मित्रों के कारण मन्दिर एक व्यवसाय एवं उनके निजी क्लब की तरह बनकर रह गया है । परन्तु इससे मन्दिर की गुणवत्ता कम हो जाय ऐसी बात नहीं है । मन्दिर में जितना अधिक विद्वान् एवं आचरणशील ब्राह्मण होगा और जितना अधिक सुखी होगा उस मन्दिर में उतनी अधिक मात्रा में सकारात्मकता बनी रहेगी ।।
 
मित्रों, एक ब्राह्मण को उसकी विद्वत्ता के साथ ही उसके आचरण से भी उसे पूजनीय माना जाता है । इसलिये मैं तो कभी भी किसी भी अपने ब्राह्मण मित्रों को यही सलाह देता हूँ, की जिससे उसकी जीविका अथवा दुनियाँ में सम्मान एवं प्रतिष्ठा मिल रही है, उसके तरफ ही अपने मन को केन्द्रित करे और अधिक-से-अधिक अध्ययनशील एवं आचरणशील रहे जिससे उत्तम कोटि की विद्वत्ता को प्राप्त हो ।।
 
ऐसा ब्राह्मण यदि आपको मिल जाय तो समझो आपका कोई भी लक्ष्य पूरा होने में किसी प्रकार की कोई बाधा आ ही नहीं सकती । इसलिये विद्वान् एवं आचरणशील विद्वानों को प्रधानता दें ताकि सभी ब्राह्मण विद्वान् एवं आचरणशील बनें । मैंने देखा है लोग ब्राह्मण की योग्यता नहीं बल्कि अपने पैसे को प्रधानता देते हैं और झोला छाप ब्राह्मण से ही किसी भी प्रकार का कोई भी अनुष्ठान करवा लेते हैं और बाद में सभी ब्राह्मणों को और धर्म को ही कोसते फिरते हैं ।।
 
मित्रों, आइये अब हम अपने विषय की ओर चलते हैं । दोस्तों आपने देखा होगा कि जब भी आप मन्दिर जाते हैं, तो वहाँ पर उपस्थित पुजारी जी आपको भगवान का चरणोदक देते हैं । आपके घर में सत्यनारायण भगवान का पूजन जब भी होता है सभी को पंचामृत दिया जाता है । अब आप जानते हैं की इसकी महत्ता क्या है तथा ये क्यों दिया जाता है ?।।
 
लगभग हम सभी लोगों ने ये दोनों ही अमृत कभी-न-कभी तो पीया ही होगा । मूल रूप में चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत । पञ्चामृत का अर्थ होता है पांच अमृत अर्थात पांच पवित्र वस्तुओं से बना अमृत । दोनों को ही ग्रहण करने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है ।।
 
मित्रों, पञ्चामृत अथवा चरणामृत ग्रहण करने का मन्त्र है - अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् । विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।। अर्थात भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला होता है । यह औषधि के समान है, जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है ।।
 
अब आइये सर्वप्रथम देखते हैं, कि चरणामृत बनता कैसे है ? भगवान के श्रीचरणों को जिस जल से धुला जाय उसे चरणामृत कहते हैं । हमारे दक्षिण भारतीय मन्दिरों में चरणामृत किसी तांबे के पात्र में रखा जाता है । जिससे उसमें तांबे के समस्त औषधीय गुण आ जाते हैं । दूसरा उसमें तुलसी पत्ता, कर्पुर, चन्दन, लौंग, इलाईची तथा अष्टगंध के साथ ही और भी अनेक प्रकार के औषधीय तत्व मिलाये जाते हैं ।।
 
मित्रों, किसी भी मन्दिर में आप देखेंगे की वहाँ सदैव एक तांबे के लोटे में तुलसी मिला जल रखा ही रहता है । इसको पीने से व्यक्ति कई प्रकार के रोगों के दु:ष्प्रभाव से बच जाता है । ऐसा आप भी आपने घर में कर सकते हैं, इससे कोई हानि नहीं बल्कि फायदा-ही-फायदा है । चरणामृत लेने के बाद बहुत से लोग उसे पीकर उसी हाथ को अपने सिर पर हाथ फेरते हैं, परन्तु ऐसा नहीं करना चाहिए ।।
 
चरणामृत ग्रहण करने के लिये सदैव अपने दाहिने हाथ के नीचे अपने उत्तरीय वस्त्र को रखकर बायाँ हाथ उसके नीचे लगाकर ही लेना चाहिये । अर्थात दोनों हाथों के बीच वस्त्र होना चाहिये एवं श्रद्घाभक्ति पूर्वक मन को शांत करके चरणामृत ग्रहण करना चाहिये इससे अधिक फल मिलता है । चरणामृत आयुर्वेद की दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा औषधि माना गया है ।।
 
मित्रों, आयुर्वेद के अनुसार तांबे में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है । यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है । तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क को शान्ति एवं निश्चिंतता प्रदान करता हैं । स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि एवं स्मरण शक्ति को बढ़ाने में भी फायदेमन्द सिद्ध होता है ।।
 
अब आइये देख लेते हैं, कि पञ्चामृत किसे कहते हैं अथवा इसका निर्माण कैसे किया जाता है ? पञ्च+अमृत= पञ्चामृत अर्थात "पांच प्रकार के अमृत से जो निर्मित होता है" उसे पञ्चामृत कहा जाता है । जैसे गाय का दूध, गाय की ही दही, गाय का ही घी, देशी शहद एवं शर्करा (देशी गुड़) इन पाँचों को धरती का प्रत्यक्ष अमृत कहा गया है और इन्हीं को मिलाकर पञ्चामृत बनाया जाता है ।।
 
मित्रों, इन वस्तुओं से निर्मित पञ्चामृत से भगवान का वेद मन्त्रों से अभिषेक किया जाता है । इन पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभदायक और मन को शान्ति प्रदान करने वाला होता है । इसका आध्यात्मिक पहलू ये है, कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं ।।
 
पहला देशी गाय का शुद्ध दूध, यह शुभ्रता का प्रतीक है अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिये अथवा इससे बनता है । दूसरा गाय का ही शुद्ध घर में निर्मित दही, दही का गुण है कि यह दूसरे वस्तु के संयोग से विकृत होकर मथे जाने के बाद भी मक्खन जैसी कोमल एवं पौष्टिक आहार मथनेवाले को प्रदान करता है ।।
 
मित्रों, भगवान के अभिषेक में दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हों एवं दूसरों के अवगुणों से भी न घबराकर उनको भी अपने सद्गुण रूपी मिठास प्रदान करें एवं सभी को अपने जैसा ही बनाने का प्रयत्न करें विकृत समाज में भी खुशियाँ बाटें । यही हमारा प्रयत्न हो ताकि सभी सुखी एवं सद्गुणों से परिपूर्ण हों ।।
 
घी स्निग्धता और स्नेह का प्रतीक होता है । सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना है । तथा शहद मीठा होने के साथ ही शक्ति दायक एवं पौष्टिकता से भी परिपूर्ण होता है । साधारणतया निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर पाता इसलिये तन और मन से शक्तिशाली बनने हेतु भगवान से निवेदन के तौर पर शहद से स्नान करवाकर व्यक्ति पञ्चामृत के माध्यम से शहद ग्रहण कर आत्मोन्नति की कामना करता है ।।
 
मित्रों, मैंने बहुत से ब्राह्मणों को देखा है, कि शर्करा (देशी गुड़) के जगह शक्कर लिखकर यजमान को दे देते हैं । शक्कर अर्थात मीठा जहर होता है ये कोई औषधि नहीं है तथा इसमें कोई भी औषधीय तत्व विद्यमान नहीं होता । शर्करा का अर्थ देशी गुड़ ही होता है जिसका गुण मिठास होता है । पञ्चामृत में कभी भी देशी गुड़ ही मिलाना चाहिये शक्कर नहीं ।।
 
शर्करा हमारे जीवन में मिठास घोले ताकि हम सभी के लिये सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसी भाषा बोल सकें । क्योंकि प्राकृतिक रूप से मीठा बोलना एवं मीठा सुनना लगभग सभी को अच्छा लगता है । भगवान के स्नान में इसको इसलिये चढ़ाया जाता है, ताकि हमारा व्यवहार मधुर हो और हम सभी के लिये एक सन्देश दे सकें की मधुर व्यवहार ही आत्मोन्नति का मुख्य मार्ग है ।।
 
मित्रों, देशी गाय का दूध, दही, घी एवं देशी शहद तथा देशी गुड़ ये प्रकृति की अनमोल उपहार हम मनुष्यों के लिये प्रत्यक्ष अमृत है । हमारी सेहत से लेकर व्यावहारिक जीवन एवं आत्मोन्नति के लिये ये आवश्यक भी है । इनके गुणों को ग्रहण करने से हमारे जीवन में सफलता हमारी कदम चूमती है । पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है ।।
 
चलते-चलते एक और अत्यन्त महत्वपूर्ण बात बता दूँ, कि जिस तरह हम इस प्रकार से निर्मित पञ्चामृत से भगवान को स्नान कराते हैं, ठीक उसी प्रकार इन्हीं वस्तुओं से स्वयं भी स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है । परन्तु निश्चित मात्रा में ही सेवन करना चाहिये और प्रतिदिन करना चाहिये न ज्यादा न कम ।।
 

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