गाय को खुश रखने का स्मार्ट तरीका
एस्गर क्रिसटेंसन ने जब पशुपालन शुरू किया था तो डेनमार्क में 40 हजार पशुपालक थे. आज उनकी संख्या महज 3000 रह गई है.
दुनियाभर में डेयरी उद्योग को हाल के वर्षों में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
रिटेल क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के आने से कई देशों में दूध के थोक भाव में कमी आई है और छोटे उत्पादकों के लिए रोजी रोटी का जुगाड़ करना भारी पड़ रहा है. अमरीका में दुग्ध उत्पादों की बिक्री में कमी से भी इंडस्ट्री प्रभावित हुई है.
इसकी मदद से आप देख सकते हैं कि गाय कितनी देर बैठी रहती है, कितने घंटे सोती है, कितनी देर भटकती है और वो कैसा महसूस कर रही है
अस्गर क्रिसटेंसन
ऐसे में पशुपालकों के लिए गायों को स्वस्थ रखने के साथ-साथ अधिकतम लाभ कमाने के लिए कई जतन करने पड़ रहे हैं.
तकनीक का सहारा
पिछले आठ महीने से क्रिसटेंसन जीईए काऊव्यू का ट्रायल कर रहे हैं. ये ऐसी तकनीक है जो झुंड में हर जानवर की गतिविधि पर नज़र रखती है.
उन्होंने कहा, "इसकी मदद से आप देख सकते हैं कि गाय कितनी देर बैठी रहती है, कितने घंटे सोती है, कितनी देर भटकती है और वो कैसा महसूस कर रही है."
क्रिसटेंसन ने कहा, "अगर कोई गाय बहुत देर तक लेटी रहती है तो हो सकता है कि वो बीमार हो. मैं अपने आईफ़ोन पर में देख सकता है कि तबेले में गाय कहां है."
हर गाय पर एक विशेष पट्टा लगा रहता है. इस पट्टे पर एक बेतार आरटीएलएस (रियल टाइम लोकेटिंग सिस्टम) टैग फिट है.
तबेले की छत में एक ग्रिड पर लगे संवेदक इन टैग की गतिविधियों पर नज़र रखते हैं.
पशुओं पर नज़र
Image captionडेटा से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि गायों के लिए पर्याप्त चारा है या नहीं
संवेदक डेटा को एक हब को भेजते हैं जहां हर गाय की गतिविधि का आकलन करके उनकी सेहत का पता लगाने की कोशिश की जाती है.
इस सिस्टम से पशुपालक को अपने स्मार्टफ़ोन पर पता चलता है कि पशु बीमार है या वो गर्मी से बेहाल है या उसके गर्भधारण का समय आ गया है.
क्रिसटेंसन ने कहा, "इस सिस्टम से आप पता लगा सकते हैं कि गाय खुश है या नहीं. इससे दो दिन पहले ही मुझे पता लग जाता है कि कोई गाय बीमार होने वाली है. इस तरह समय रहते उसका इलाज किया जा सकता है और इससे पैसों की भी बचत होती है."
इस सिस्टम से गाय को ढ़ूढ़ने में भी मदद मिलती है.
क्रिसटेंसन ने कहा, “अगर मैं अपने आईफ़ोन पर गाय नंबर 5022 को टच करता हूं तो दो सैकंड में मुझे पता चल जाता है कि वो गाय कहां है.”
सिस्टम को विकसित करने के पीछे जीईए फार्म टैक्नोलॉजीज के केल्ड फ्लोरजैक का दिमाग है.
उन्होंने कहा, “गाय झुंड में रहती है. वो जितना संभव हो सके अपनी कमजोरियों को छिपाने की कोशिश करती हैं लेकिन वो अपने व्यवहार में बदलाव को नहीं छिपा सकती.”
फ्लोरजैक ने कहा, “लेकिन संभव है कि पशुपालक गाय के व्यवहार में बदलाव को न देख पाए.”
टैग
Image captionसिस्टम से मिलने वाले डेटा स्मार्टफ़ोन पर उपलब्ध होता है
जब टैग लगाया जाता है तो जानवर के व्यवहार का डेटाबेस बनने में छह से दस दिन का समय लगता है.
सिस्टम में इस्तेमाल किए जाने वाले संवेदकों की रेंज 600 मीटर तक होती है.
फ्लोरजैक ने कहा कि गायों की कुछ खास आदतें होती हैं जिनसे उनकी सेहत के बारे में पता लगाया जा सकता है.
उन्होंने कहा, “अगर किसी गाय को गर्मी लगती है तो वो ज्यादा भटकेगी, दूसरी गायों के साथ चिपकने की कोशिश करेगी और अपने बाड़े से बाहर निकल जाएगी.”
इस सिस्टम से समय रहते गाय की बीमारी का पता लगाया जा सकता है और इस तरह पशुपालक को पैसों की भी बचत होती है.
अभी इस सिस्टम का इस्तेमाल डेनमार्क, जर्मनी और नीदरलैंड में किया जा रहा है और ब्रिटेन तथा अमेरिका में इसी महीने इसे लांच किया जा रहा है.
इस्तेमाल
काऊव्यू एक तरह के आरएफआईडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) का इस्तेमाल करता है जिसे यूडब्ल्यूबी (अल्ट्रा वाइडबैंड) तकनीक कहा जाता है.
आरएफआईडी तकनीक पशुपालन में नई नहीं है. पारंपरिक तौर पर इसका इस्तेमाल जानवरों को एक फार्म से दूसरे फार्म में ले जाते समय उन पर नज़र रखने और चोरी रोकने के लिए किया जाता रहा है.
गाय तो खुशी-खुशी पट्टा पहन लेती है लेकिन सूअरों के मामले में ऐसा नहीं है.
उनके लिए कान में पहनने वाला टैग बनाया गया है क्योंकि वे गर्दन और पैर में लगने वाले टैग को तोड़ देते हैं.