ऊर्जा संकट में गोवंश
भारत में पशुधन आज भी ऊर्जा का शक्तिशाली स्रोत है। पिछड़ेपन का प्रतीक मानी जाने वाली बैलगाड़ी हमारे देश के सारे के सारे बिजली घरों से अधिक ऊर्जा देती है। यदि पशुओं को उनके काम से हटाना हो तो हमें अतिरिक्त ऊर्जा के लिये लगभग ३००० अरब रूपये खर्च करने पड़ेंगे। देश के बोझा ढ़ोने वाले पशुओं की संख्या १२ करोड़ मानी जाती है। यदि प्रतिपशु आधा हार्स पावर ऊर्जा मानी जाय तो इनसे हमें ६ करोड़ हार्सपावर ऊर्जा मिलती है।
अनुमान है कि देश में ४ करोड़ ६ लाख ७० हजार हल तथा १ करोड़ ३० लाख बैलगाडियां हैं और उनसे जुड़े ३ करोड़ लोगों का जीवन यापन होता है। यदि हलों की जगह ट्रैक्टर ले तो उसके लिए २ लाख ८ हजार करोड़ की पूंजी अपेक्षित होगी, जो कर्ज में आकण्ठ डूबे हमारे देश के लिए जुटा पाना मुश्किल है। इस समय ट्रैक्टरों से जितनी जुताई होती है उतनी तो भैंसे कर देते हैं, बैल उससे आठ गुना अधिक जुताई कर रहे हैं। खेतों में लगभग पांच करोड़ रुपये की पशुशक्ति लग रही है। इसी तरह ट्रक और मालगाड़ियां जितना माल ढोती हैं, बैलगाडियाँ उससे अधिक ढोती हैं। वे ऊबड़—खाबड़ रास्तों पर भी जाती हैं और घर के दरवाजे तक माल पहुंचाती हैं। ढुलाई में पशुशक्ति के उपयोग से २५ अरब रूपये के डीजल की बचत होती है। भोपाल के केन्द्रीय यांत्रिकी अनुसंधान ने बैलों की उत्पादकता बढ़ाने तथा किसानों का श्रम कम करने हेतु पशु चालित ट्रैक्टर बनाये हैं। वह हल के मुकाबले तीन चार गुना कार्य करता है। इसी तरह पंक्चररहित बैलगाड़ियां निर्मित हुई हैं, जिससे बैलों पर भार कम पड़ता है और परिवहन की क्षमता बढ़ी है। बम्बई की ‘‘नाइटी’’(National Institute For Traning in Industrial Engineering) ने ऐसा उपकरण बनाया है जिससे रहट के साथ बैलों के घूमने पर विद्युतधारा उत्पादित होती है। उस उपकरण के सहारे एक हार्स पावर अर्थात् ७८६ वॉट बिजली पैदा कर सकते हैं। भारत के नेताओं ने स्वयं नेरोबी के ऊर्जा सम्मेलन में स्वीकार किया था कि भारत में हमारे सभी बिजलीघरों, जिनकी अधिष्ठापित क्षमता २२ हजार मेगावॉट है से अधिक शक्ति पशु प्रदान करते हैं। यदि उनको हटा दिया जाय तो बिजली उत्पादन पर २५४० अरब डॉलर पूंजी निवेश करने के अतिरिक्त कृषि अर्थव्यवस्था को खाद और र्इंधन की हानि होगी। गोबर गैस, नाडेप खाद, चारा काटने की बैलचलित मशीन से मिलने वाले लाभ कौन नहीं जानता?
विभिन्न रूपों में पशुओं से ४०,००० मेगावॉट के बराबर ऊर्जा मिलती है तथा इससे देश को २७००० करोड़ रु. का लाभ है। आधे टन वजन की गाय, दिन रात में १२०० वॉट गर्मी देती है। जर्मनी के विद्युत अभियंता संघ ने २० गायों से एक बड़ा मकान गर्म रखने का प्रयोग किया और उससे वर्ष में ३००० लीटर से अधिक तेल की बचत की। (सम्पादकीय—आर्य जगत, २ मई १९९४)
विदेशों में जहाँ इस तरह ऊर्जा स्रोत के रुप में गायों को बढ़ावा मिल रहा है वहीं भारत में गोहत्या बढ़ रही है क्योंकि हम गोवंश में समाहित ऊर्जा शक्ति के भण्डार को पहचान नहीं पा रहे हैं। जब समस्त खनिज तेलों तथा परम्परागत ऊर्जा के स्रोत नष्ट हो जायेंगे तब हमें इन्हीं पशु ऊर्जा की ओर हाथ पसारना पड़ेगा।