वेदों में भी गौमाता महत्ता
वेदों में भी इसकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा गया है कि-
‘‘माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसाऽऽदिव्यानाम मृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट।।’
अर्थात् गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और धृतरुप अमृत का खजाना है। गाय परोपकारी एवं वध न करने योग्य है। अथर्ववेद के मंत्रों में भी कहा है कि गाय घर को कल्याण का स्थान बनाती है एवं मनुष्य का पोषण करती है। गाय को ही संपत्ति माना गया है तभी तो भारतीय राजाओं की गोशालाऐं असंख्य गायों से भरी रहती थीं।
गोपालन की प्रवृत्ति एवं महत्व:— कौटिल्य के अर्थशास्त्र को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि उस समय गायों की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिये विशेष विभाग ‘‘गोऽअध्यक्ष’’ चलाने में आता था। भगवान श्रीकृष्ण के समय भी गायों की अधिक संख्या सामाजिक प्रतिष्ठा एवं ऐश्वर्य का प्रतीक मानी जाती थी। नंद, उपनंद, नंदराज, वृषभानु, वृषभानुवर आदि उपाधियां गोसंपत्ति के आधार पर ही दी जाती थीं। श्रीकृष्ण गाय के असंख्य गुणों को जानते थे और इसी कारण गाय उन्हें अत्यंत प्रिय थी एवं वे उनका पालन करते थे और इसी कारण उनका प्रिय और पवित्र नाम गोपाल ही है। गोधन को सर्वोत्तम धन मानने के कारण ही ब्राह्मण की सबसे बड़ी दक्षिणा ’’गाय’’ मानी जाती रही है।