प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्त्तं रसायनम्
अर्थात -सुश्रुत ने भी गौदूग्ध को जीवनीय कहा है । गौदूग्ध जीवन के लिए उपयोगी ।ज्वरव्याधि- नाशक रसायन ,रोग और वृद्धावस्था को नष्ट करने वाला ,क्षतक्षीणरोगीयों के लिए लाभकारी,बुद्धिवर्धक ,बलवर्धक ,दुग्धवर्धक,तथा किचिंत दस्तावरहै ।और क्लम (थकावट) चक्कर आना मद, अलक्ष्मी को दूर करता है ।और दूग्ध आयु स्थिर रखता है,और उम्र को बढ़ाता है ।
२. गाय के दूध का सेवन करते रहने पर कोलेस्ट्राल की वृद्धि नहीं होती ,क्योंकि उसमें विद्धमान” ओरोटिक अम्ल उसे कम कर नियन्त्रित रखता है ।गाय के दूध में कार्बोहाइड्रेट का स्त्रोत लैक्टोज है ,जो विषेशत: नवजात शिशुओ को ऊर्जा। प्रदान करता है ,मानव एंव गाय के दूध में इसकी मात्रा क्रमश:७ तथा ४.८प्रतिशत होती है ।
३. गौदूग्ध अमृततुल्य है ।इसमें ८७.१ प्रतिशत जल तथा १२.९ प्रतिशत घनपदार्थ है ।ए,डी,ई,बी,और सी जीवन सत्त्व है ।इसके अलावा प्रोटिओज, लैक्ओम्युसिन, और मद्धद्रावक प्रोटीन भी अंशत: पाये जाते है ।
४. दूध में प्रोटीन रहित नाईट्रोजन वाले पदार्थ (लैक्टोक्रोम क्रिएटीन, युरिया ,थियोसवनिक एसिड, ओरोटिक एसिड ,हाइपोक्सेन्थीन, जैन्थीन, और यूरिक एसिड ,कोलिनट्राइमेथिलेमिन,ट्राइमेथिलेमिन आक्साइड ,मेथिल ग्वेनिडिन और अमोनियाक्षार)पाये जाते है ।और फास्फोरस वाले पदार्थ (फ्री फास्फेट ,फास्फेट केसीन के साथ मिला हुआ लेसिथिन और सिफेलिन ,डाइमिनो मोनोफास्फोटाइड तथा तीन अम्ल द्रावक सेन्द्रिय फास्फोरस यौगिक ) पाये जाते है ।
५. दूध तत्वों की खास विशेषता यह है ,की वे हमारे भोजन के अन्य पदार्थ -आटा, चावल, आलू, फल-फूल ,शाक, आदि के दोष को नष्ट करने में ,इन पदार्थों को उच्चतर रूप में पलटने में ,इन्हें सुपाच्य बनाने में सहायता करता है ।
६. दूध में कम से कम ५० पदार्थ सवा सौ– डेढ सौ रूपों में रहते है ।इतना सर्वगुणसम्पन्न और सब प्रकार से परिपूर्ण पौष्टिक और साथ ही बुद्धि में सात्विकता उत्पन्न करने वाला बहुत सस्ता आहार है ।
७. गौ का धारोष्णदूध बलकारक ,लघु ,शीत ,अमृत के समान ,अग्निप्रदीपक ,त्रिदोषशामक होता है । प्रात:काल पिया हुआ दूध वृष्य ,बृहण ,तथा अग्निदीपक होता है ,दोपहर में पिया हुआ दूध बलवर्धक ,कफनाशक ,पित्तनाशक होता है और रात्रि में पिया हुआ दूध बालक के शरीर को बढ़ाता है ।इसलिए दूध प्रतिदिन पीना चाहिए ।
८. शरीर के ९५ प्रतिशत रोग अमाशय के विकार ,रोग-कीटाणु ,वायु और अणुसृष्टि से उत्पन्न होते है ,इन सब विपत्तियों को टालने की शक्ति दूध-दही की अणुसृष्टि में है । दूध -दही में उत्तमप्रकार के पोषण पदार्थ (अणु )अधिक मात्रा में है । ३५ बूंद दूध ( १क्यूबिकसेंटीमीटर ) में ५ सें १० लाख और छाछ में ५ से १० करोड़ पोषक अणु रहते है ।इनका उपयोग रोगाणुओ को मार भगाना है ।
९. सभी दूध दही में एक ही प्रकार के उत्तम अणु नहीं होते ।इसलिए जो भी दूध- दही मिले उसे पीना ठीक नहीं है ।दूध -दही ,उनके बर्तनों की वातावरण आदि की सफाई का विषेश ध्यान रखना आवश्यक है ।दूध- दही छाछ में जो अणूदि्भजनक मूल्य होते वह विशेष रूप से लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ,तथा बेसलिस बल्गेरिक्स जाति के है ।उनमें जीवन रक्षक तत्व होता है दूसरे प्रकार के अणुजीवों कें प्रवेश से दही खट्टा हो जाता है ,गंध ,रंग ,स्वाद में विकार उत्पन्न हो जाता है ।
१०. बिना तपाया हूआ दूध घंटों तक पड़ा रहे तो उसमें हवा धूल प्रकाश आदि के कारण हानिकारक परिवर्तन होता है । ताज़ा या धारोष्णदूध में अणुद्भिजों की बहुलता रहती है अत: वह दही जमाने के लिए अच्छा होता है ।दूध को मंदआँच पर उबाल लो ।फिर ठंडा करके उसमें पिछले दिन का साफ़ दही जामन के रूप में १ प्रतिशत ( जाड़े के दिन में २ प्रतिशत ) डालकर उसे अच्छी तरह हिलाकर छोडदे ।कँाच के बर्तन में दही अच्छा नहीं जमता ।मिट्टी के बर्तन आर्दश होते है जो दही एकसमान हो ,पानी न छूटा हो ,फुदकी न पड़ी हो ,स्वाद में खट्टामीठा हो वह दही लाभ करता है ।दही में ज्यादा जल डालने पर छाछ का पोषणमुल्य घटेगा । हवा ,प्काश ,धूप और धूऐं से उसके अनिवार्य सुक्ष्म तत्व घटेगे ।