कलियुग और गौमाता
गौमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा । इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है ।
भविष्य पुराण में लिखा है गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं ।
भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं-
【‘विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।‘】
सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए। आपको किसी मंदिर में केवल श्री विष्णु भगवान मिलेंगे, किसी मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण दो मिलेंगे।
किसी में सीता राम लक्ष्मण तीन मिलेंगे तो किसी मंदिर में श्री शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, हनुमान जी इस प्रकार छः देवी-देवता मिलेंगे।