धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर का प्रयोग क्यों?
आपने देखा होगा कि किसी भी धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है। गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठकर गाय गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी का वास बना रहता है। प्राचीन काल में मिट्टी और गाय का गोबर शरीर पर मलकर साधु संत स्नान भी किया करते थे।
इसके पीछे धार्मिक कारण यह है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है।
गाय का दूध उत्तम आहार माना गया है। माना जाता है कि मां के दूध के समान गाय का दूध पौष्टि होता है। इसलिए गाय को माता भी कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है ''गावो विश्वस्य मातरः''। यानी गाय विश्व की माता है।
नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।
गाय के अंगों में सभी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गाय के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय का दर्शन हो जाए तो यह बेहद शुभ माना जाता है।