गावो विश्ववस्य मातरः

भारतीय चिंतनपद्धति में, चाहे वह किसी भी पंथ या मान्यता से अनुप्राणित हो, गाय को आदिकाल से ही पुज्यनीय माना गया हैं, और उसके बध को को महापाप समझा जाता रहा है। वेदो, शास्त्रों, एव पुराणो के अलावा कुरान, बाइबिल, गुरुग्रन्थं साहिब तथा जैन एंव बौद्ध धर्मग्रन्थों में भी गाय को मारना मनुष्य को मारने जैसा समझा जाता है। कुरान में आया है कि गाय की कुर्बानी इस्लाम धर्म कर खिलाफ है। इस प्रकार देखा जाये तो सभी धर्मों नें गाय की महत्ता को समान रुप से सर्वोपरि माना है। लेकिन इन सबके बावजुद कुछ निकम्मे व कूठिंत सोच वाले लोग है जो की कहते है बिना गाय की बली दिये हुए त्योहार अधुरा रह जाता है। ये वे समय है जब हमे जैसा को तैसा वाला नियम अपनाना पड़ेगा, अन्यथा इसका परिणाम क्या होगा ये हम सब अनुमानित कर सकते है। कहीं ऐसा ना हो कि जिसे हम माता कहके बुलाते है वह बस तस्विर बनकर ही रह जाये आने वाले समयं में। गौ माता की रक्षा भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के गौरव व आत्म सम्मान की रक्षा का अभिन्न अंग है। यह अजीब विडंबना है कि कि जब तक हमारे परंपरागत ज्ञान को को पश्चिमी दुनिया व अन्य धर्म वाले मान्यता नहीं दते, हम सकुचाये- से रहते हैं और अन्य धर्म के विचारकों द्वारा उसे स्वीकार करते ही मान लेते है। हम जो सो रहे, हमारे आखों मे पट्टी नुमा बेड़िया पड़ी है, उसे अब निकाल फेकना होगा और निर्णय लेना पड़ेगा। गौ माता की रक्षा लिए हमें संकल्प लेना पड़ेगा। हिन्दू धर्म, बल्कि समूची मानव जाति के विकास के लिए गौ माता की रक्षा को परम कर्तव्य बनाना पड़ेगा।

 

साभारhttp://mithileshdubey.blogspot.in/2009/11/blog-post_10.html