विदेशी नस्ल की गाय को गोमाता नहीं कहा जा सकता
विदेशी नस्ल की गाय को भारतीय संस्कृति
की दृष्टि से गोमाता नहीं कहा जा सकता। जर्सी, होलस्टीन, फ्रिजियन, आस्ट्रियन आदि नस्ल की तुलना भारतीय गोवंश से नहीं हो सकती। आधुनिक गोधन जिनेटिकली इंजीनियर्ड है। इन्हें मांस व दूधउत्पादन अधिक देने के लिए सुअर के जींस से बनाया गया है। अधिक दूध की मांग के आगे नतमस्तक होते हुए भारतीय पशु वैज्ञानिकों
ने बजाय भारतीय गायों के संवर्द्धन के विदेशी गायों व नस्लों को आयात कर एक
आसान रास्ता अपना लिया। इसके दीर्घकालिक प्रभाव बहुत ही हानिकारक हो
सकते हैं। आज ब्राजील भारतीय नस्ल
की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया
है। क्या यह हमारे लिए शर्म का विषय नहीं
है? भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध
देती थीं और आज भी देती हैं। ब्राजील में
भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे
रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक
समृद्धि को कमजोर करने के लिए षड्यंत्र
रचा था। कामनवैल्थ लाइब्रेरी में ऐसे
दस्तावेज आज भी रखे हैं।
आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो.
धर्मपाल ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर
सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और कृषि
संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे
बड़ा निर्यातक बन गया है। वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं। हमारे गोवंश की शारीरिक संरचना अद्भुत है। इसलिए गोपालन के साथ वास्तु शास्त्र में भी गाय को विशेष महत्त्व दिया गया है। ज्योतिष शात्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ से सूर्य केतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है, जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल की गायों का दूध पीलापन लिए होता है। इस दूध में विशेष गुण होता है।
विदेशी नस्ल की गायों का दूध त्याज्य है।
ध्यान दें कि अनेक पालतू पशु दूध देते हैं, पर
गाय का दूध को उसके विशेष गुण के कारण
सर्वोपरि पेय कहा गया है। गाय के दूध,
गोबर व मूत्र में अद्भुत गुण हैं, जो मानव के
पोषण के लिए सर्वोपरि है। देशी गाय का
गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरूरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्त्व गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्त्वों में कई महत्त्वपूर्ण मिनरल, लवण, विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते हैं।
गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है। गाय मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्राणी है। भारतीय
धर्म, दर्शन, संस्कृति और परंपरा में गाय को इसीलिए पूजनीय ही माना जाता है। हम भारतीय गोवंश को अपनाकर उन्हें गोशाला में संरक्षित, संवर्द्धित कर सकते हैं, जिसका सर्वाधिक लाभ भी हमें ही मिलेगा।
ज्यादातर विदेशी संस्था हमारे देशी गौवंश को हमारी गोशालाओं से हटाने की साजिश भी कर रही है, जिस पर समय रहते ध्यान देना जरूरी है ।
जय गौमाता..... जय गौपाल.....