‘‘चरक संहिता’’ में गाय के दूध के १० गुण बताये गये हैं
आयुर्वेद में बताया गया है कि ‘‘गाय के दूध में विविध प्रकार के १०१ पदार्थ होते हैं जिनमें १९ प्रकार के स्नेहाल्म (फेटीओसड) हैं, ६ विटामिन, ८ क्रियाशील रस, २५ खनिज, १ शक्कर, ५ फास्फेट,१४ नाइट्रोजन पदार्थ हैं। इसमें २०% मक्खन होता है तथा कैल्शियम होता है जो हड्डियोें को मजबूत कर उसके क्षय को रोकता है। विटामिन तथा जैविक प्रोटीन भी खूब होता है,जिससे प्रक्रिया स्वाभाविक गति से चलती है। इस प्रकार गोदुग्ध पूर्ण आहार है।’’
‘‘चरक संहिता’’ में गाय के दूध के १० गुण बताये गये हैं— गाय का दूध स्वादिष्ट, ठण्डा, कोमल, स्निग्ध, सौम्य, गाढ़ा,लसदार, पुष्ट, बाहर के असर से काफी समय तक निष्प्रभावी, स्वचित्त को प्रसन्न करने वाला होता है।’’
गाय के दूध व अन्य पदार्थों पर किये कई वैज्ञानिक अनुसंधान निम्न तथ्य प्रकट करते हैं:—
गाय का दूध पीला रंग लिये होता है, जो केशर जैसा होता है, यह ‘‘क्यूरोसिन’’ नामक प्रोटीन के कारण होता है। यह केशर जैसा पदार्थ आरोग्यवर्धक, बुद्धिवर्धक, शीतलतादायक औषधि है जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है।
भैंस के दूध में ‘लांग चेन फैट’ होती है जो शरीर की नसों में जम जाती है और बाद में हृदय रोगों को उत्पन्न करती है अत: हृदयरोगियों के लिए गाय के दूध का सेवन ही सर्वोत्तम है। (डा. शांतिलाल शाह—अध्यक्ष, इन्टर— नेशनल कार्डियोलाजी कान्फ्रेंस)
भैंस के दूध में गाय के दूध की तुलना ज्यादा मलाई व अन्य एस.एम.एफ.तत्व दिखते हैं, इसलिए भैंस का दूध महंगा बिकता है परन्तु गाय के दूध को गर्म करने पर उसके विटामिन्स और प्रोटीन अधिकांश मात्रा में सुरक्षित रहते हैं जबकि भैंस के दूध को गरम करने पर विटामिन्स व प्रोटीन की अधिकांश मात्रा नष्ट हो जाती है।
भैंस जीवजंतुयुक्त घास खा लेती है। पानी व कीचड़ के गड्ढों में पड़ी रहती है इसलिए उसका दूध ठण्डा और कषाययुक्त होता है। जबकि गाय घास के अग्रभाग को खाती है अत: इसका दूध मधुर रसयुक्त व लवण रस प्रधान होता है, जो विरेचक होता है।
डॉ. फ्रैंक लाऊन्टेन ने ‘‘एक लीटर गाय का दूध लेकर उसका प्रथक्करण किया तो देखने में आया कि इसमें आठ अण्डे तथा पांच सौ ग्राम मुर्गी का मांस तथा ७५० ग्राम मछली जितने तत्व मिल सकते हैं। मांस से गाय का दूध इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इसके विटामिन तथा पोषक तत्व उच्च कोटि के होने के साथ साथ सुपाच्य और सात्विक होते हैं। इन तत्वों को शरीर स्वाभाविक रूप से ग्रहण करता है।
गाय के कच्चे दूध में आक्साइड रिडक्टेस जैसे पाचक रस अच्छी मात्रा में होते हैं जो शरीर में पैदा होने वाले टोकिसन्स तथा टोमेन्स जैसे विकारों को दूर करता है।
ठंड पोषक आहार से परवरिश की गई गाय के गोबर में जैसी कीटाणुनाशक शक्ति है वैसी अन्यत्र कहीं नहीं।
गाय के ताजे गोबर की गंध से बुखार एवं मलेरिया के रोगाणु का नाश होता है।
—(डॉ. ब्रिगेड इटली)
रतौंधी में गो के ताजे गोबर का रस निचोड़ कर आंखों में आंझने से दस दिन में रोग से छुटकारा मिल जाता है।
(आर्य जगत—दिसम्बर १९९४)
पश्चिम के डॉक्टर गाय के सूखे गोबर पाउडर से धूम्रपान करवा कर दमे के रोग को दूर करने में रुचि ले रहे हैं।
गाय के घी को जलाने से उत्पन्न होने वाली गैस के चार प्रकार ज्ञात हुए हैं। घी जलाने से एसिटिलीन का निर्माण होता है, जो अशुद्ध वायु को स्वयं की तरफ खींचकर शुद्ध करती है।
गाय के घी में बहुत सारे रोग तथा मन की चिंताओं को दूर करने की अद्भुत क्षमता होती है तथा चूँकि इसके कण सूक्ष्म व नरम होते हैं जो जल्दी पच जाते हैं व मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाड़ियों में पहुंचकर ऊर्जा प्रदान करते हैं।
—‘‘अग्निहोत्र’’
गोमूत्र पीने अथवा सूंघने से बीटा तरंगें बलवान होती हैं और मगज में प्राणवायु की कमी दूर होती है।
—‘‘डॉ.फ्रैंकलीन’’
आस्ट्रेलिया में फसल के ऊपर कीटनाशक औषधियों के स्थान पर ‘‘गोमूत्र’’ छींटने में आता है। इससे हानिकारक जीवाणु का नाश होता है और फसल अच्छी होती है।
गाय के गोबर व गोमूत्र में पानी के प्रदूषित बैक्टीरिया को नाश करने की शक्ति होती है।
गाय पालने से या संपर्क में रहने से मनुष्य की उम्र बढ़ती है क्योंकि मनुष्य के सांस के हानिकारक लार्वा, बैक्टीरिया, गाय की श्वांस मेें नष्ट होते हैं।
(एशियन वैज्ञानिक शिरोमियना)
गाय के उक्त वर्णित औषधि गुणों के अतिरिक्त कई अन्य गुण एवं विशेषताएं भी हैं। कई गंभीर बीमारियों की औषधि के रूप में ‘घी’ तथा ‘गोमूत्र’ का प्रयोग किया जाता है। क्षय रोग, कैंसर आदि बीमारियों तथा सर्पदंश में भी गाय के गोबर का प्रयोग होता है।
इसी प्रकार गुजरात के एक क्षेत्र की इस घटना से हम गाय के दूध की महत्ता को सहज ही स्वीकार कर पायेंगे:-
‘मांझरी’ के पास एक घोड़ा पालन या परवरिश केन्द्र है। जिसे रेस’ के घोड़े परवरिश करने वाली कोई संस्था वर्षों से चलाती आ रही है। इनके घोड़े ‘रेस’ में हमेशा आगे रहते थे। अचानक उन्होेंने देखा कि घोड़े रेस में पिछड़ते जा रहे हैं। रेस के घोड़े पालना खर्चीला भी बहुत होता हे पर कमाई भी बहुत होती है अत:व्यवस्थापकों ने बारीकी से तलाश प्रांरभ की पर कोई कारण दिखाई नहीं दिया, बस घोड़े ‘रेस’ में आगे आना बंद होते गये। विदेशों से विशेषज्ञों को बुलाया गया उन्होंने वैज्ञानिक रूप से सब कुछ देखा पर किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाये क्योंकि सब कुछ तो बराबर पूर्ववत ही था।
निराश होकर बाहर निकल रहे थे, तभी दरवाजे के पास ‘तबेला’ देखा और उसमें बंधी भैंस को देखकर बोले, ये कौन सा प्राणी है ? जबाब मिला— भैंस है, इसे इन घोड़ों को दूध पिलाने हेतु रखा गया है। वे विशेषज्ञ नीचे उतरे और पूछा पहले किसका दूध पिलाते थे उत्तर मिला गाय का। वे उसी समय बोले—‘‘गाय का दूध पिलाना शुरू करो और कुछ करने की जरूरत नहीं है।’’ गाय के दूध पर परवरिश शुरू की और घोड़े पुन: रेस में आगे आना शुरू हो गये। इस प्रकार के अनेकों उदाहरण हमें मिलते हैं जिसे देखकर गाय के गुणों को पहचान सकते हैं। हमें हमारी अर्थव्यवस्था यदि बहुआयामी एवं सुदृढ़ व स्वस्थ मानसिकतायुक्त बनाना है तो गाय को ही इसका प्रमुख आधार बनाना पड़ेगा।