लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।
गाय हूँ, मैं गाय हूँ,
इक लुप्त- सा अध्याय हूँ।
लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।
दूध मेरा पी रहे
सब,
और ताकत पा रहे।
पर हैं कुछ पापी यहाँ जो,
माँस मेरा खा रहे।
देश कैसा है जहाँ, हरपल ही गैया कट रही।
रो रही धरती हमारी,
उसकी छाती फट रही।
शर्म हमको अब नहीं है,
गाय-वध के जश्न पर,
मुर्दनी छाई हुई है,
गाय के इस प्रश्न पर।
मुझको बस जूठन खिला कर,
पुन्य जोड़ा जा रहा,
जिं़दगी में झूठ का,
परिधान ओढ़ा जा रहा।
कहने को हिंदू हैं लेकिन,
गाय को नित मारते।
चंद पैसों के