गाय भारत की आत्मा है।
औद्यौगिकीकरण की आंधी अभी तक इस ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पूरी तरह उखाड़ नहीं पायी थी किन्तु नई आर्थिक नीति के कारण ग्रामीण अर्थनीति को खतरा पैदा हो गया है। ये अपनी विशाल पूंजी और अचूक प्रचारशक्ति से शीघ्र ही भारतीय बाजारों पर पूर्ण अधिकार कर लेंगे और भारतीय अर्थव्यवस्था को अपने में आत्मसात कर लेंगे। इस विषम परिस्थितियों में गोरक्षा नई जीवन पद्धति को दृष्टि दे सकती है। पूरी अर्थव्यवस्था के परिवर्तन की व्यापक मांग का गाय एक प्रतीक है। उसे ‘गाय बचाओ’ के रूप में देखने जैसा है। गाय भारत की आत्मा है। शरीर में जितना महत्व आत्मा का है वही महत्व गाय का भारत के जीवन में आदिकाल से रहा है और आज भी है| अभ्युदय (सांसारिक सुख समृद्धि) और नि:श्रेयस (मोक्ष) दोनों की प्राप्ति के लिए लोग इसे एक प्रधान कारण मानते हैं। राष्ट्र की उन्नति, अवनति, स्वतंत्रता और परतंत्रता सभी की कल्पना गाय की स्थिति से की जा सकती है। यह हमारे आर्थिक जीवन की ही नहीं, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन की भी आधारशिला रही है। हिन्दू परम्परानुसार ३३ करोड़ देवताओं का वास स्थान होने के कारण वह हमारी श्रद्धा और पूजा का स्थान तथा गोमाता के रूप मेें हमारी ममता और वत्सलता का भी स्रोत है। राष्ट्र के मानचिन्हों में उसका स्थान सर्वोपरि नहीं तो अद्वितीय अवश्य ही है।