गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति के साधनों में से एक है।
गावो विश्वस्य मातरः !!......
भुक्त्वा तृणानि शुष्कानि पीत्वा तोयं जलाशयात् ।
दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो विश्वस्य मातरः॥
वेदों में कहा गया हैः गावो विश्वस्य मातरः। अर्थात् गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है। महाभारत में भी आता हैः मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः।
'गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं। वे सभी को सुख देने वाली हैं।' (महा.अनु.69.7)
गौमाता की सेवा भगवत्प्राप्ति के साधनों में से एक है। गौदुग्ध का सेवन करना भी गौ-सेवा है। जब गाय का दूध हमारा आवश्यक आहार हो जायेगा, तब उसकी आपूर्ति के लिए गौ-पालन तथा गौ-संरक्षण की आवश्यकता होगी। गाय के दूध, दही, घी, गौमूत्र तथा गोबर की विशेष महिमा है। अग्नि, भविष्य, मत्स्य, पद्म आदि पुराणों में गौदुग्ध की महिमा का वर्णन मिलता है। गौदुग्ध में जो विशेष पोषक तत्त्व पाये जाते हैं, वे अन्य किसी के भी (भैंस, बकरी आदि के) दूध में नहीं पाये जाते हैं।
आचार्य वाग्भट्ट के 'अष्टांगहृदय' ग्रंथ में उल्लेख है कि सब पशुओं के दुग्धों में गाय का दुग्ध अत्यंत बलवर्धक और रसायन है। गव्यं तु जीवनीयं रसायनम्।
मध्यकाल में अरब के चिकित्सकों ने और सन् 1867 में रूप और जर्मनी के चिकित्सकों ने दूध के औषधीय महत्त्व को समझा। अमेरिका के डॉ. सी.करेल ने अन्य औषधियों से निराश सैंकड़ों रोगियों को दुग्धामृत से स्वस्थ किया। विश्व का सबसे धनी व्यक्ति रॉकफेलन जब मेदरोग से पीड़ित हो गया तब किसी भी औषधि से उसे फायदा नहीं हुआ। उस समय गाय का दूध उसके लिए वरदान साबित हुआ।