गौ समाचार

हैरान कर देने वाली बात दूध नहीं देती गाय फिर भी सालाना 3.50 करोड़ का मुनाफा पर कैसे ?

हरियाणा लाडवा : इनके गोशाला में एक भी गाय दूध नहीं देती, फिर भी इनका सालाना मुनाफा करीब 3.50 करोड़ रुपये हैं, है ना चौकाने वाली बात. ऐसा भी नहीं है कि ये किसी अनैतिक व्यापार के जरिये इतना पैसा कमाते हैं. बल्कि इन्होने इस व्यापार के लिए उन गायों को चुना जिन्हें, दूध न दे पाने के कारण लावारिस छोड़ दिया जाता है. कई तरह की बीमारियों के कारण सड़कों पर ये गायें लावारिस पड़ी रहती हैं. ऐसे गायों को एक-एक कर गोशाला में लाकर पहले तो ये सबका इलाज करवाते हैं. फिर इन गायों की सही से देख रेख शुरु होता है, इनका पूरा व्यापार गोबर और गोमूत्र पर चलता है. ये पूरी कहानी है Haryana के लाडवा की.

Exclusive नंदी गोशाला : डेमेज कंट्रोल में जुटे भाजपा नेता, मुख्यमंत्री व गृहमंत्री से करेंगे मुलाकात

गोलासन गौशाला , नंदीशाला

गोलासन स्थित विश्व की सबसे बड़ी नंदी गोशाला बंद करने की कवायद में सांचौर के पूर्व विधायक का नाम सामने आने के बाद बिगड़ते सियासी समीकरण ने भाजपा के अन्य नेताओं को भी चौकन्ना कर दिया। इसके साथ ही जिले में भाजपा के अन्य नेताओं ने डेमेज कंट्रोल के प्रयास शुरू कर दिए हैं। इसके तहत सांसद देवजी पटेल जल्द ही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात कर सकते हैं। वहीं गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया के नाकोड़ा यात्रा से लौटते समय आहोर विधायक शंकरसिंह राजपुरोहित रविवार को उनसे जालोर में मुलाकात करेंगे। इसके लिए गृहमंत्री ने आहोर विधायक को समय दे दिया है। गौरतलब है कि प्रशासन की ओर से नंदी गोशाला खाली करने के नो

नंदी गोशाला प्रकरण : जिम्मेदारी लेने से ग्रामीण मुकरे, बोले-नहीं संभाल सकते गोशाला

उपखंड क्षेत्र के गोलासन गांव में स्थित देश की सबसे बड़ी नंदीशाला श्री हनुमान महावीर गोशाला के संचालन को लेकर मंगलवार को नया मोड़ आ गया। प्रशासन की ओर से नंदी गोशाला के संचालन के लिए मंगलवार को ग्रामीणों को चाबियां सौंपने का निर्णय हुआ था, लेकिन ऐनवक्त पर ग्रामीणों ने इसके संचालन में असमर्थता जताते हुए इनकार कर दिया। ऐसे में प्रशासन के सामने एक बार फिर से विकट स्थित आ गई है।

गाय माता देश में असुरक्षित क्यों है ??

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भारत में गाय माता होकर भी असुरक्षित क्यों है? जब इस प्रश्न पर विचार किया जाता है तो पता चलता है कि इसके एक नही अनेक कारण हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण है कि भारत ने दूसरों को सम्मान देते-देते अपने सांस्कृतिक मूल्यों को या तो भुला दिया या फिर दूसरों को प्रसन्न करने के लिए उन पर अधिक बल नही दिया। इसे कुछ स्वार्थी विदेशी लेखकों ने या विद्वानों ने भारत की परंपरागत सहिष्णुता या उदारता के रूप में महिमामंडित किया और इस महिमामंडन के माध्यम से वे अपना स्वार्थ सिद्घ कर गये। हम भारतीय अपने स्वभाव से सहिष्णु या उदार हैं, इसमें दो मत नही हैं-परंतु हमें कितना सहिष्णु या उदार होना चाहिए?

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