गौ सवर्धन और कृषि ...

गौ सवर्धन और कृषि ...

वैदिक काल में समद्ध खेती का मुख्य कारण कृषि का गौ आधारित होना था। प्रत्येक घर में गोपालन एवं पंचगव्य आधारित कृषि होती थी, तब हम विश्व गुरू के स्थान पर थे। भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास एवं संवध्र्रन के लिये आवश्यक समझा और ऐसी व्यवस्थाऐं विकसित की थी जिसमें जन मानस को विशिष्ट शक्ति बल तथा सात्विक वृद्धि प्रदान करने हेतु गौ दुग्ध, खेती के पोषण हेतु गोबर-गौमूत्र युक्त खाद, कृषि कार्याे एवं भार वहन हेतु बैल तथा ग्रामद्योग के अंतर्गत पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था। प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन शैली व अंर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है।

वर्तमान में मनुष्य को अनेकों समस्याओं जैसे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण असंतुलन, जल का दूषित होना, कृषि भूमि का बंजर होना आदि से जूझना पड़ रहा हैं। इन विपरित परिस्थतियों में हमें अपने आप को स्वस्थ एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न रखना है तो दैनिक जीवन में गौ-दूग्ध एवं पंचगव्य उत्पादों का तथा कृषि मंे गौबर एवं गौमूत्र से उत्पादित कीटनाशकों एवं जैविक खादों का उपयोग बढ़ाना होगा।
भारत वर्ष ही एक एैसा राष्ट्र है जिसमें दूध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। आज हमारा देश संसार में सर्वाधिक 133 मिलीयन टन दूध उत्पादन करने वाला देश हैं। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 290 ग्राम है जो संसार के औसत उपलब्धता से ज्यादा हैं। पिछले 5 वर्षो मंे भारत का दूध उत्पादन 25 मिलीयन टन बढ़ा, इसकी तुलना में अमेरिका में 6.6 मिलीयन टन, च.ीन में 5.4 मिलीयन टन एवं न्यूजीलैन्ड में 2.7 मिलीयन टन ही बढ़ा। इससे सिद्ध होता है कि हमारा पशुपालक एवं पशुधन किसी से कम नहीं है।
यद्यपि हमारे पास 304 मिलीयन का विशाल दुधारू पशुधन है, जिसमें 16.60 करोड़ भारतीय नस्लकीदेशी व 3.3 करोड़ संकर नस्ल की गाये है तथा 10.53 करोड़ भैसे है, जिनसे 7 करोड़ पशुपालकों द्वारा प्रतिदिन 33 करो़ड लीटर दूध का उत्पादन किया जाता है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान हैं। इसमें भैसे 54 प्रतिशत, संकर गाय से 24 प्रतिशत एवं देशी गाय से 22 प्रतिशत दूध प्राप्त होता है।
समय समय पर निति निर्धारकों एवं चिंतको द्वारा ऐसे विचार व्यक्त किये जाते रहे है कि भारत में दूध उत्पादन में ब़ढ़ोतरी करने हेतु संकर गायों की संख्या बढ़ानी होगी। यहां यह नोट करने की आवश्यकता है कि पिछले दशक में संकर गायों की उत्पादकता में वृद्धि दर भैस यहां तक कि देशी गायों सें भी कम पायी गयी हैं। इससे सिद्ध होता है कि भारतीय नस्ल की गायांे की उत्पादक क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए, तथापि देशी गायों की उत्पादकता को उत्तरोतर बढ़ाने के उपाय करने चाहिए। भारतीय गौवंश गुणवत्ता के आधार पर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और सभी विदेशी नस्लों में श्रेयस्कर है। भारत में अधिक दूध देने वाली नस्लें भी है गुजरात राज्य की गीर नस्ल की गाय ने ब्राजील में आयोजित विश्व प्रतियोगिता में 64 लीटर दूध देकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय नस्लों की गायों का दूध अधिक गुणकारी है जिसमें प्रोटीन ।.2 किस्म की होती है, जिसकी प्रकृति धमनियों में रक्त जमाव विरोधी, कैसंर विरोधी एवं मधुमेह विरोधी होती है, इसलिए देशी गाय का दूध दौहरा लाभदायक है वहीं भारतीय गाय के दूध में बच्चों के दिमाग की वृद्धि करने हेतु आवश्यक तत्व सेरेब्रोसाईड, कन्जूगेटेड लिनोलिक ऐसिड एवं ओमेगा थ्री फेटी ऐसिड आवश्यक अनुपात में पाया जाता है।

भारतीय गौवंश में 34 निर्धारित एवं 30 स्थानीय नस्लें अपने-अपने प्रजनन क्षैत्रों में बखूबी योगदान दे रही है। साहीवाल, गीर, रेडसिन्धी, राठी और थारपारकर नस्ल की गायें प्रजनन एवं उत्पादन दोनों में श्रेष्ठ है। उचित प्रबन्धन से इन नस्लों की गायें 12-18 लीटर दूध प्रतिदिन देते हुए दूध की जरूरत को पूरा, ग्रामीणों को वर्षपर्यन्त रोजगार एवं भूमि को उपजाऊ बनाऐ रखने के लिए जैविक खाद उपलब्ध करवा सकती है।
हमारे पास देशी गौवंश में 4.80 करोड़ दुधारू गायों सहित 8.92 करोड़ व्यस्क मादा देशी गौवंश है, जिनकी उत्पादकता बढ़ाकर, दो ब्यांत का अन्तराल कम कर दूध एवं दूध उत्पादों की बढ़ती मांगो का पूरा किया जा सकता है । लेकिन हमारे पशुपालकों द्वारा पुराने प्रचलित सिद्धातों जैसे केवल भूसा या कड़वी ही खिलाना, घरों में उपलब्ध एक या दो खाद्यान्न वह भी अल्प मात्रा में दूध देते समय अपने सुविधा अनुसार खिलाना, पशु प्रबंधन जैसे-
ब्याने के पूर्व नहीं खिलाना, ब्याने के 2 माह बाद ग्याभिन नहीं करवाना, नियमित रूप से नमक एवं खनिज मिश्रण नहीं देना, बिमार पशुओं का उचित उपचार नहीं करवाना आदि को अपनाया जाता है, जिनकेे परिणामस्वरूप पीक दूध उत्पादन का कम होना या एक ब्यांत में कम दिनों तक कम दूध का देना एवं दो ब्यंात का अन्तराल बढ जाने से कम दूध उत्पादन होने की बजह से गोपालन व्यवसाय अलाभकारी सिद्ध होता जा रहा है, जबकि देशी गायों की क्षमता प्रतिदिन 10 से 12 लीटर दूध देते हुये 1 ब्यात में 2000 से 2500 लीटर दूध देने एवं प्रतिवर्ष ब्याने की हैं। इस क्षमता का दौहन करने की आवश्यकता है।

अनुसंधान परिणाम दर्शाते है कि संतुलित आहार से दूध उत्पादन बढ़ता है, उत्पादन लागत घटती हैं तथा मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी आती है। दुधारू पशुओ को संतुलित आहार खिलाये बिना केवल अनुवांशिक क्षमता बढ़ा कर बेहतर दूध प्राप्त करना संभव नहीं है। आमतौर पर दूधारू पशुओं को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पशु खाद्य पदार्थ, घास एवं सूखे चारे तथा फसल अवशेष ही खिलाये जाते हैं, जिनके फलस्वरूप उनका आहार प्रायः असंतुलित रहता है और उसमें प्रोटीन, ऊजो, खनिज तत्वों तथा विटामिनों की मात्रा कम या ज्यादा हो जाती हैं। असंतुलित आहार न केवल पशुओं के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है अपितु दूग्ध उत्पादन में होने वाली आय को भी प्रभावित करता है, क्योकि आहार खर्च में दुग्ध उत्पादान की कुल लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा होता हैं। पशुओं की प्रजनन एवं दूध उत्पादन क्षमता में सुधार लाने, दो ब्यात का अन्तराल कम करने तथा दूध उत्पादकोें की शुद्ध आय मंे बढ़ोतरी हेतु दूध उत्पादकों को संतुलित आहार के बारे में शिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है।
हरा चारा पशुओं के लिये पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है परन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिये सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चारागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा, जिससे कि हरे चारे की कमी के समय इनकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।

विभिन्न प्रयोगों में पाया गया है कि खनिज तत्वों की कमी वाले आहारों का निरन्तर उपयोग करते रहने से पशु शरीर में उपस्थित खनिजों के क्रियात्मक संयोगों एवं विशिष्ठ सांद्रताओं में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते है कई प्रकार की व्याधिया उत्पन्नहो जाती है। पशुओं को दूध देने, पुनः ग्याभिन होने एवं ब्याने के दौरान प्रोटीन व ऊर्जा की ज्यादा आवश्यकता पड़ने के कारण खनिज तत्वों एवं विटामिनों की आवश्यकता बढ़ जाती है। अतः पशुओं की सामान्य वृद्धि दर, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन के स्तर को बनाये रखने के लिए सभी खनिज तत्व प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाना आवश्यक है। इन दिनों अधिकांश गौपालकों द्वारा महसूस किया जाने लगा है कि गायों को पर्याप्त मात्रा में दाना/बाटा/चारा देने के उपरान्त भी दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, अधिक उम्र में परिपक्व होना, समय पर ग्याबिन नहीं होना एवं बार-बार गर्भ गिर जाना आम बात हो गई है।
दूध के साथ निकलने वाले खनिजों की पूर्ति करने एवं पशु शरीर की सामान्य वृ(ि व उत्पादन के स्तर को बनाये रखने, परासरण दाब एवं तापमान को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से पशु की इच्छा अनुसार या पच्चीस से 30 ग्राम साधारण नमक एवं 40-50 ग्राम कम्पलीट खनिज मिश्रण अवश्य ही दिया जाना चाहिये।