भारतीय कृषि एवं गाय
हम अपनी अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो मन में एक प्रश्न उठता है कि भारतीय कृषि की प्रगति में कौन से बाधक तत्व हैं? क्योंकि विश्व की कृषि योग्य भूमि का १४% अपने पास है अर्थात् अपने देश में ज्यादा कृषि ही नहीं ‘‘गहन’’ व उत्तम कृषि हो सकती है और थोड़ी जमीन पर ज्यादा फसल प्राप्त करने के लिए उत्तम खाद की जरूरत पड़ती है, ये खाद गाय के पालन से ही मिल सकती है। गोबर के खाद की किस्म आज वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार की है तथा इसे बनाने के लिये नये तरीके भी खोजे गये हैं, जैसे नाडेप कम्पोस्ट। क्योंकि कृत्रिम खाद फर्टिलाइजर के प्रयोग से कुछ स्थानों पर अमेरिकी भूमि बांझ हो चुकी है और बुलडोजरों से १० फुट मिट्टी को ऊपर से निकालकर गोबर के खाद से खेती हो रही है। आज हमारे देश में उसी खाद का प्रचलन हो रहा है। क्या हम भी अपनी जमीन को बांझ बनाना चाह रहे हैं? और दूसरी ओर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाते हैं। (डा. मनमोहन बजाज,आर्य जगत ९३)
आज भी हमारी खेती ट्रैक्टरों से नहीं बल्कि बैलों से ही होती हैं क्योंकि हमारे ५०% किसानों के पास मात्र २ एकड़ तक की जोत के खेत हैं। ये छोटे किसान ट्रैक्टर खरीद भी नहीं सकते। इन मशीनों का उपयोग तो मात्र १५% बड़े किसान ही कर पाते हैं। छोटे किसान इन यंत्रों का उपयोग करें भी कैसे? क्योंकि इन यंत्रों को डीजल चाहिये और डीजल तो कोई खेती में पैदा नहीं होता अत: हमारी कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का भविष्य ‘गाय’ और ‘बैल’ पर जितना निर्भर है, उतना सिंचाई को छोड़कर किसी और साधन पर निर्भर नहीं है। (युग शक्ति गायत्री—जनवरी ९५, गुजराती)
हमें दूध देने वाली एवं बैल उत्पन्न करने वाली गाय स्वयं मनुष्य का खाद्य नहीं खाती, वह हमारे भोजन का या खेती का शेष भाग ही ग्रहण करती है अर्थात् गाय घास, भूसा, निंदाई से निकला खर पतवार आदि चारा खाती है। कृषि विशेषज्ञों का अध्ययन है कि ‘‘गाय जितनी भूमि में लगी घास खाती है, उसके मलमूत्र से उतनी भूमि पर आठ गुना उत्पादन बढ़ जाता है। गाय कभी किसान व कृषि के लिये बोझ नहीं होती, मरने के बाद भी नहीं।’’ प्रकृति से हम जितना लें उसे उतना ही वापिस भी करें, इसका पालन गोवंश की तरह अगर हम मनुष्य ने भी किया होता तो बहुत सी समस्याएं पैदा ही नहीं होतीं।