gauparivar's blog

गाय पालन व्यवसाय के रूप में लाभान्वित...

ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को उनकी आजीविका के साधनों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की योजनाएं केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित की जाती हैं। इन योजनाओं पर अनुदान का भी प्रावधान रखा गया है। किसान व आम ग्रामीण अनुदान प्राप्त कर आजीविका के साधनों को बेहतर बना सकते हैं।

दुग्ध उत्पादन (डेयरी)

 इस संबंध में पशु सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है, और यह योजनायें राज्य पशुपालन विभाग, जिला ग्रामीण विकास अभिकरण, डेयरी को-आपेरेटिव सोसाइटी तथा डेयरी फार्मस के फेडेरेशन को स्थानीय स्तर पर नियुक्त तकनीकी व्यक्ति की सहायता से तैयार की जाती है।

महामहिमामयी गौ हमारी माता है

महामहिमामयी गौ हमारी माता है

महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है|

१. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारण नहीं समझना चाहिये गौ के शरीर में “३३ करोड़ देवी देवताओ” का वास होता है. गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है|

२. गौ को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है. तो गौ उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है. |

परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं

परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं

इस हिन्दोस्तां के माटी की महिमा अपरम्पार है
गौ गंगा गीता से निर्मित इसका श्यामल सार है

परम पूज्य व पाप हारिणी गौ गंगा और गीता हैं
तरण तारिणी मोक्ष दायिनी तीनो परम पुनीता हैं

रोम रोम में देव रमे हों ऐसी पवित्र गौ माता है
चार धाम का पुण्य भी गौ सेवा से मिल जाता है

जो जन इसकी सेवा करते भव सागर तर जाते हैं
वेद पुराण उपनिषद भी इसकी महिमा बतलाते हैं

सकल पदारथ दूध दही घी औषधि गुणकारक हैं
स्वस्थ प्रदायक मंगलकारक समूल रोग निवारक हैं

भगवान कृष्ण ग्वालों संग खुद भी गायें चराते थे
बछड़ों के संग क्रीड़ा करते दूध दही घी खाते थे

चरणामृत की महत्ता, उसके औषधीय गुण एवं ग्रहण करने के नियम

चरणामृत की महत्ता, उसके औषधीय गुण एवं ग्रहण करने के नियम

मित्रों, मन्दिर अर्थात जहाँ बेचैन मन भी स्थिर हो जाय उसे मन्दिर कहते हैं । जहाँ दुनियाँ के हर प्रकार की समस्याओं का समाधान मिले उसे मन्दिर कहते हैं । मन्दिर जहाँ केवल और केवल पोजिटिविटी अथवा सकारात्मकता अर्थात सकारात्मक उर्जा ही कण-कण में प्रवाहित हो रही हो उसे मन्दिर कहते हैं ।।
 

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