दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता
दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता | गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्द्धन और गोविंद की तरह पूज्य है। शास्त्रों में कहा गया है-मातर: सर्वभूतानांगाव:, यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हम गाय को गोमाता कहकर संबोधित करते हैं।
मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं। -अंगों में देवी-देवता सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है-सर्वे देवा: स्थितादेहेसर्वदेवमयीहि गौ:। गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयीहै। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शक्तियां होने का वर्णन मिलता है। पद्मपुराणके अनुसार, गाय के मुख में चारों वेदों का निवास हैं। उसके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते हैं।
गाय के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा, ललाट में रुद्र, सीगोंके अग्रभाग में इंद्र, दोनों कानों में अश्विनीकुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुड, जिह्वा में सरस्वती, अपान [गुदा] में सारे तीर्थ, मूत्र-स्थान में गंगाजी,रोमकूपोंमें ऋषिगण, पृष्ठभाग में यमराज, दक्षिण पार्श्व में वरुण एवं कुबेर, वाम पार्श्व में महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्रभाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएं स्थित हैं।
गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभानेकी आवाज में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात:स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। भविष्यपुराण,स्कंदपुराण,ब्रह्मांडपुराण,महाभारत में भी गौ के अंग-प्रत्यंग में देवी-देवताओं की स्थिति का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है।
मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है।
-गौ-सेवा का संकल्प माना जाता है कि गायों का समूह जहां बैठकर आराम से सांस लेता है, उस स्थान की न केवल शोभा बढती है, बल्कि वहां का सारा पाप नष्ट हो जाता है। तीर्थो में स्नान-दान करने से, ब्राह्मणों को भोजन कराने से, व्रत-उपवास और जप-तप और हवन-यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य गौ को चारा या हरी घास खिलाने से प्राप्त हो जाता है।
गौ-सेवा से दुख-दुर्भाग्य दूर होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। जो मनुष्य गौ की श्रद्धापूर्वकपूजा-सेवा करते हैं, देवता उस पर सदैव प्रसन्न रहते हैं। जिस घर में भोजन करने से पूर्व गौ-ग्रास निकाला जाता है, उस परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं होती है। गुणकारी है गोबर और गोमूत्र गाय ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जिसका मल-मूत्र न केवल गुणकारी, बल्कि पवित्र भी माना गया है। गोबर में लक्ष्मी का वास होने से इसे गोवर अर्थात् गौ का वरदान कहा जाना ज्यादा उचित होगा। गोबर से लीपे जाने पर ही भूमि यज्ञ के लिए उपयुक्त होती है। गोबर से बने उपलों का यज्ञशाला और रसोईघर, दोनों जगह प्रयोग होता है। गोबर के उपलों से बनी राख खेती के लिए अत्यंत गुणकारी सिद्ध होती है।
गोबर की खाद से फसल अच्छी होती है और सब्जी, फल, अनाज के प्राकृतिक तत्वों का संरक्षण भी होता है। आयुर्वेद के अनुसार, गोबर हैजा और मलेरिया के कीटाणुओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है। आयुर्वेद में गौमूत्रअनेक असाध्य रोगों की चिकित्सा में उपयोगी माना गया है। लिवर की बीमारियों की यह अमोघ औषधि है। पेट की बीमारियों, चर्म रोग, बवासीर, जुकाम, जोडों के दर्द, हृदय रोग की चिकित्सा में गोमूत्र ने आश्चर्यजनक लाभ दिया है। इसके विधिवत सेवन से मोटापा और कोलेस्ट्रॉलभी कम होते देखा गया है।
गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र से निर्मित पंचगण्यतन-मन और आत्मा को शुद्ध कर देता है। तनाव और प्रदूषण से भरे इस वातावरण की शुद्धि में गाय की भूमिका समझ लेने के बाद हमें गोधन की रक्षा में पूरी तत्परता से जुट जाना चाहिए, क्योंकि तभी गोविंद-गोपाल की पूजा सार्थक होगी। गोपाष्टमी के पर्व का मूल उद्देश्य है गो-संवर्धन की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट करना। अतएव इस त्योहार की प्रासंगिकता आज के युग में और बढी है।