गाय के दूध पीने का यह फायदा नहीं जानते होंगे आप

गाय के दूध पीने का यह फायदा नहीं जानते होंगे आप

वैसे तो दूध के फायदे किसी से नहीं छिपे हैं लेकिन गाय के दूध का एक फायदा आप अब तक नहीं जानते होंगे। हाल में ताइवान में हुए एक शोध में माना गया है कि गाय के दूध के नियमित सेवन से पेट के कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जा सकता है।

शोधकर्ताओं ने गाय के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिसिन बी25 (लेफसिन बी25) की खोज की है जो गैस्ट्रिक कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में मदद करती हैं।

‘दुनिया भर में, खासतौर पर एशियाई देशों में गैस्ट्रिक कैंसर से मरने वाले रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस दिशा में हमारी यह खोज एक बड़ी उपलब्धि है।”

प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्त्तं रसायनम्

क्षीरमुक्त्तं

अर्थात -सुश्रुत ने भी गौदूग्ध को जीवनीय कहा है । गौदूग्ध जीवन के लिए उपयोगी ।ज्वरव्याधि- नाशक रसायन ,रोग और वृद्धावस्था को नष्ट करने वाला ,क्षतक्षीणरोगीयों के लिए लाभकारी,बुद्धिवर्धक ,बलवर्धक ,दुग्धवर्धक,तथा किचिंत दस्तावरहै ।और क्लम (थकावट) चक्कर आना मद, अलक्ष्मी को दूर करता है ।और दूग्ध आयु स्थिर रखता है,और उम्र को बढ़ाता है । 

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गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है

गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है

गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है।इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग लिए होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच

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कलियुग और गौमाता

कलियुग और गौमाता

गौमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा । इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गौभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है ।

भविष्य पुराण में लिखा है गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं ।

भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं-
【‘विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।‘】

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