देशी गौ वंश प्रजाती

१.साहीवाल प्रजाति : पंजाब-साहीवाल भारतकी सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है । इस प्रजातिकी गायें अफगानिस्तानकी गायोंसे मिलती-जुलती हैं । यह प्रजाति गीर प्रजातिके वर्णसंकरसे बनी है । इस प्रजातिकी गायें मुख्यत: अधिक दूध देनेवाली होती हैं । अच्छी देखभाल करनेपर ये कहीं भी रह सकती हैं । २.हरियाणवी प्रजाति : हरियाणा-हरियाणवी प्रजाति की गायें सर्वांगी कहलाती हैं । इस प्रजातिके बैल खेतीमें अच्छा कार्य करते हैं । इस प्रजातिके गोवंश श्वेत रंगके होते हैं । ये गाएं दुधारू होती हैं । ३. राठी प्रजाति : राजस्थान-राठी प्रजातिका राठी नाम राठस जनजातिके नामपर पडा जिनकी उत्पत्ति राजपूत मुसलमानोंसे हुर्इ। राठस जनजातिके लोग घुमंतू जीवन व्यतीत करते थे । भारतीय राठी प्रजाति एक महत्त्वपूर्ण दुधारू प्रजाति है । ४. देवनी प्रजाति : आंध्रप्रदेश, कर्नाटक-देवनी प्रजातिके गोवंश गीर प्रजातिसे मिलते-जुलते हैं । इस प्रजातिके बैल अधिक भार ढोनेकी क्षमता रखते हैं । गायें दुधारू होती हैं । ५. लाल सिंधी प्रजाति : पंजाब-लाल सिंधी प्रजातिके गोवंशमें अफगान प्रजाति और गीर प्रजातिका वर्णसंकर पाया जाता है । इस प्रजातिकी गायका शरीर पूर्णत: लाल होता है । लाल रंगकी सिंधी गायकी गणना सर्वाधिक दूध देनेवाली गायोंमें होता है । थोडी खुराकमें भी यह अपना शरीर अच्छा रख लेती है । ६. गीर प्रजाति : गुजरात-गीर प्रजातिके गोवंशका मूल स्थान काठियावाड (गुजरात) के दक्षिणमें गीर नामक जंगल है । शुद्ध गीर प्रजातिकी गायें प्राय: एक रंगकी नहीं होती है । इस प्रजातिकी गायें अत्यधिक दुधारू होती हैं तथा नियत समयपर बच्चे देती हैं । ७. नागौरी प्रजाति : राजस्थान-नागौरी प्रजातिके गोवंशका गृहक्षेत्र राजस्थान प्रदेशका नागौर जिला है । इस प्रजातिके बैल भारवाहक क्षमताके विशेष गुणके कारण अत्यधिक प्रसिद्ध हैं । विश्वसनीय ढंगसे निशिचत रूपमें नागौरी प्रजातिके गोवंशके कुल संख्याके आंकडे उपलब्ध नहीं हैं । ८. नीमाडी प्रजाति : मध्यप्रदेश नीमाडी प्रजातिके गोवंश काफी स्फूर्तिवान (फुर्तीले) होते हैं । इनके मुंहकी बनावट गीर जातिकी जैसी होती है । गायके शरीरका रंग लाल होता है, जिसपर स्थान-स्थानपर श्वेत धब्बे होते हैं । इस प्रजातिकी अच्छी देखभाल करें तो पर्याप्त मात्रमें दूध प्राप्त होता है। ९. सीरी प्रजाति : सिक्किम एवं भूटान- सीरी प्रजातिके गोवंश दार्जिलिंगके पर्वतीय प्रदेश, सिक्किम एवं भूटानमें पाए जाते हैं । इनका मूलस्थान भूटान है । ये प्राय: काले और श्वेत अथवा लाल और श्वेत रंगके होते हैं । सीरी जातिके पशु देखनेमें भारी होते हैं । इस जातिके बैल परिश्रमी होते हैं । १०. हल्लीकर प्रजाति : कर्नाटक- हल्लीकरके गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाए जाते हैं । यह एक स्वतंत्र प्रजाति है । इस प्रजातिकी गायें अमृतमहाल जातिकी गौओंसे अधिक दूध देती हैं । ११. भगनारी प्रजाति : पंजाब- भगनारी प्रजातिके गोवंश नारी नदीके तटवर्ती इलाकेमें पाए जानेसे इस प्रजातिका नाम ‘भगनारी’ दिया गया है । इस प्रजातिके गोवंश अपना निर्वाह नदी तटपर उगने वाली घास व अनाजकी भूसीपर करते हैं । गायें दुधारू होती हैं । १२. कांकरेज प्रजाति : गुजरात- कांकरेज प्रजातिके गोवंशका मुंह छोटा किन्तु चौडा होता है । गुजरातमें काठियावाड, बडौदा, सूरत तक यह प्रजाति फैली हुर्इ है । यह प्रजाति बढि़यार प्रजातिके नामसे भी जानी जाती है । यह प्रजाति सर्वांगी प्रजाति कहलाती है । १३. कंगायम प्रजाति : तमिलनाडु- कंगायम प्रजातिके गोवंश अपनी स्फूर्ति और श्रम-सहिष्णुताके लिए विशेष प्रसिद्ध हैं । इस जातिके गोवंश कोयम्बटूरके दक्षिणी भागोंमें पाए जाते हैं । यह प्रजाति दूध न्यून देटी है; किन्तु १०-१२ वर्षोंतक दूध देती है । १४. मालवी प्रजाति : मध्यप्रदेश- मालवी प्रजातिके बैलोंका उपयोग खेती तथा सडकोंपर हल्की गाडी खींचनेके लिए किया जाता है । इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंगकी होती है । किन्तु बुढापेमें इसका रंग श्वेत हो जाता है । मध्य प्रदेशके ग्वालियर क्षेत्रमें यह प्रजाति पाई जाती है । १५. मेवाती प्रजाति : हरियाणा- मेवाती प्रजातिके गोवंश सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं । इस प्रजातिकी गायें अत्यंत दुधारू होती हैं । इनमें गीर जातिके लक्षण पाए जाते हैं तथा पैर कुछ ऊंचे होते हैं । इस प्रजातिके गोवंश हरियाणा राज्यमें पाए जाते हैं । १६. गावलाव प्रजाति : मध्यप्रदेश- गावलाव प्रजातिके गोवंशको सर्वोत्तम प्रजाति माना गया है । मध्य प्रदेशके सतपुडा, सिवनी क्षेत्र व महाराष्ट्रके वर्धा, नागपुर क्षेत्रमें इस जातिके गोवंश पाए जाते हैं । गायोंका रंग प्राय: श्वेत तथा गलंकबल बडा होता है । गायें दुधारू मानी जाती हैं । १७. थारपारकर प्रजाति : राजस्थान- थारपारकर प्रजातिका गोवंश राजस्थानके जोधपुर, जैसलमेर व कच्छ क्षेत्रोंमें एक बडी संख्यामें पाया जाता है । इस प्रजातिकी गौएं भारतकी सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायोंमें गिनी जाती है । इस जातिके बैल अत्यंत परिश्रमी होते हैं । इनमें कर्इ ऐसे गुण हैं जिनके कारण इनकी पूछ-परख की जाती है । १८. वेचूर प्रजाति : केरल- वेचूर प्रजातिके गोवंशपर रोगोंका न्यूनतम प्रभाव पडता है । इस जातिके गोवंश आकारमें छोटे होते हैं । इस प्रजातिकी गायोंके दूधमें सर्वाधिक औषधीय गुण होते हैं । इस जातिके गोवंशको बकरीसे भी आधे व्ययमें पाला जा सकता है । १९. बरगूर प्रजाति : तमिलनाडु- बरगूर प्रजातिके गोवंश तमिलनाडुके बरगुर नामक पहाडी क्षेत्रमें पाए गए थे । इस जातिकी गायोंका सिर लम्बा, पूंछ छोटी व मस्तक उभरा हुआ होता है । बैल तीव्र गतिसे चलते हैं और सहनशील होते हैं । गायोंकी दूध देनेकी मात्रा न्यून होती है । २०. कृष्णाबेली : महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश- कृष्णा नदी तटकी कृष्णाबेली प्रजातिके गोवंश महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेशमें पाए जाते हैं । इनके मुंहका अग्रभाग बडा तथा सींग और पूंछ छोटी होती है । २१. डांगी प्रजाति: महाराष्ट्र- डांगी प्रजातिके गोवंश अहमद नगर, नासिक और अंग्स क्षेत्रमें पाए जाते हैं । इस जातिके बैल सुदृढ (मजबूत) एवं परिश्रमी होते हैं । गायोंका रंग लाल, काला व श्वेत होता है । गायें अल्प मात्रामें दूध देती हैं । २२. पवार प्रजाति : उत्तर प्रदेश पवार प्रजातिके गोवंश उत्तर प्रदेश्ज्ञके रोहेलखण्डमें पाए जाते हैं । इनके सींगोंकी लम्बार्इ १२ से १८ ‘र्इंच’तक हो सकती है । इनकी पूंछ लम्बी होती है । इनके शरीरका रंग काला और श्वेत होता है । इस प्रजातिके बैल कृषि योग्य हैं; किन्तु गाय ‘कम’ दूध देती है । २३. अंगोल प्रजाति : तमिलनाडु- अंगोल प्रजाति तमिलनाडुके अंगोल क्षेत्रमें पाई जाती है । इस जातिके बैल महाकाय (भारी बदनके) एवं शक्तिशाली (ताकतवर) होते हैं । इनका शरीर लम्बा किन्तु गर्दन छोटी होती है । यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है । २४. हासी-हिसार : हरियाणा- हासी-हिसार प्रजातिके गोवंश हरियाणाके हिसार क्षेत्रमें पाए जाते हैं । इस प्रजातिके गोवंशका रंग श्वेत व खाकी होता है । इस प्रजातिके बैल परिश्रमी होते हैं । २५. बचौर प्रजाति : बिहार- बचौर प्रजातिके गोवंश बिहार प्रांतके तहत सीतामढी जिलेके बचौर एवं कोर्इलपुर परगनेमें पाए जाते हैं । इस जातिके बैल अति परिश्रमी होते हैं । इनका रंग धूसर (खाकी), ललाट चौडा, आंखें बडी-बडी और कान लटकते हुए होते हैं । २६. लोहानी प्रजाति : इस प्रजातिका मूलस्थान बलूचिस्तानका लोरालार्इ क्षेत्र है । इस जातिके पशु आकारमें छोटे होते हैं । इस जातिके बैल हल चलाने तथा विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रोंमें बोझा ढोनेमें बहुत उपयोगी होते हैं । २७. आलमवादी प्रजाति : इस प्रजातिके गोवंश कर्नाटक राज्यमें पाए जाते हैं । इनका मुंह लम्बा और कम चौडा होता है तथा सींग लम्बे होते हैं । इस जातिके बैल स्फूर्तिवान एवं परिश्रमी होते हैं । २८. केनवारिया प्रजाति : इस प्रजातिके गोवंश बांदा जिलाके (म.प्र.) केन नदीके तटपर पाए जाते हैं । इनके सींग कांकरेज जातिके पशुओं जैसे होते हैं । गायें कम दूध देती हैं । गायोंका रंग खाकी होता है । २९. खेरीगढ प्रजाति : इस प्रजातिके गोवंश खेरीगढ क्षेत्र (उ.प्र.) में पाए जाते हैं । गायोंके शरीरका रंग श्वेत होता है । इनके बड़े होते हैं । सींगकी लम्बार्इ १२ से १८ ‘इंच’तक होती है । इनके सींग केनवारिया प्रजातिके गोवंशके सींगोंसे बहुत मिलते हैं । बैल क्रोधी एवं फुर्तीले होते हैं तथा मैदानोंमें स्वच्छन्द रूपसे चरनेसे स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हैं । इस प्रजातिकी गायें न्यून दूध देती है । ३०. खिल्लारी प्रजाति : इस प्रजातिके गोवंशका रंग खाकी, सिर बडा, सींग लम्बे और पूंछ छोटी होती है । इनका गलंकबल बडा होता है । खिल्लारी प्रजातिके बैल शकितशाली होते हैं; किन्तु गायोंमें दूध देनेकी क्षमता न्यून होती है । यह प्रजाति महाराष्ट्र तथा सतपुडा (म.प्र.) क्षेत्रोंमें पाई जाती है । ३१. अमृतमहाल प्रजाति : इस प्रजातिके गोवंश कर्नाटक राज्यके मैसूर जिलेमें पाए जाते हैं । इस प्रजातिका रंग खाकी, मस्तक तथा गला काले रंगका, सिर और लम्बा, मुंह व नथुने कम चौडे होते हैं । इस प्रजातिके बैल मध्यम आकारके और ‘फुर्तीले’ होते हैं । गायें कम दूध देती है । ३२. दज्जल प्रजाति : भगनारी प्रजातिका दूसरा नाम ‘दज्जल’ प्रजाति है । इस प्रजातिके पशु पंजाबके ‘दरोगाजी खां’ जिलेमें बडी संख्यामें पाले जाते हैं । कहा जाता है कि इस जिलेके कुछ भगनारी प्रजातिके सांड खासतौरपर भेजे गए थे । यही कारण है कि ‘दरोगाजी खां’में यह प्रजाति बडी मात्रामें पाई जाती है । यहींसे इस प्रजातिको पंजाबके अन्य क्षेत्रोंमें भेजा गया । इस जातिकी गौएं अधिक दूध देनेके लिए प्रसिद्ध हैं । ३३. धन्नी प्रजाति : इस प्रजातिको पंजाबकी एक स्वतंत्र प्रजाति माना जाता है इस प्रजातिके पशु मध्यम परिमाणके तथा बहुत फुर्तीले होते हैं । इनका रंग विचित्र प्रकारका होता है और पंजाबके अनेक भागोंमें इन्हें पाला जाता है । गायें दुधारू नहीं होती । इस प्रजातिमें दुग्धोत्पादनकी क्षमतामें वृद्धिके लिए विशेष ध्यान दिया ही नहीं गया । ३४. केनकथा प्रजाति : उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश। ३५. खेरीगढ प्रजाति : उत्तरप्रदेश। ३६. रेड कंधारी प्रजाति : मराठवाडा (मूलस्थान-कंधार)। वर्तमानमें स्थिति : स्वतंत्रताके पूर्व भारतमें गोवंशकी करीब ६० प्रजातियां आज गोवंश की करीब २७-२८ प्रजातियां ही है । भारत सरकार द्वारा वर्तमानमें भी १०% अनुदानके (सबसीडीके) चलते वधशालाओंमें (कत्लखानोंमें) गोवंश इसी तरह कटता रहा तो गोवंशकी अनेक प्रजातियां समाप्त हो जाएंगी ।