गाय और आस्था

दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता 

दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता 

दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता | गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोव‌र्द्धन और गोविंद की तरह पूज्य है। शास्त्रों में कहा गया है-मातर: सर्वभूतानांगाव:, यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हम गाय को गोमाता कहकर संबोधित करते हैं।

भक्त और गौ माता

एक भक्त और गौ माता

एक भक्त और गौ माता

श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण गायों के समूह के पीछे पीछे चलते थे .

इस पर एक भक्त ने गौ माता से इस प्रकार पूंछा-

भक्त - 
गोमाता ! तुम अपने ईष्ट देव के आगे आगे क्यों चलती हो ?
उनके तो पीछे पीछे चलने का विधान है.

गौ - 
आप भूल कर रहे हो अधिष्ठान तो सदा पीछे ही रहता है.
भगवान मेरे ईष्ट और संरक्षक है ,
उनके द्वारा संरक्षित हम अपने गंतव्य स्थान पर बिना किसी भय और संकोच के शीघ्र पहुँच जाती है तो मैया हमारा दूध निकालकर उबालकर शीघ्र लाला को पिला देती है.

गौ संवर्धन दीपयज्ञ

गौ संवर्धन दीपयज्ञ

गौ संवर्धन दीपयज्ञ करने के पूर्व, गौ की उपयोगिता एवं उसके महत्त्व को प्रदर्शित करने के लिए पर्चे बांट कर, चित्र प्रदर्शनियां लगाकर, वीडियो फिल्में आदि दिखाकर तथा परिजनों की गोष्ठियां लेकर उपयुक्त माहौल बना लेना चाहिए। चित्र प्रदर्शनी एवं वीडियो फिल्में प्राप्त करने के लिए, रचनात्मक प्रकोष्ठशांतिकुञ्ज हरिद्वार से संपर्क किया जा सकता है। इस प्रदर्शनी के साथ पंचगव्य निर्मित औषधियों, उपयोगी वस्तुओं एवं कीट नियंत्रकों आदि के प्रदर्शन एवं बिक्री की व्यवस्था भी की जा सकती है। 

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी,

अबला गैया हाय तुम्हारी है यह दुखद कहानी,

अबला गैया हाय
तुम्हारी है यह दुखद कहानी,
माँ कह कर भी कुछ लोगों, ने कदर न
तेरी जानी..
कोई तुझको डंडा मारे,कोई बस दुत्कारे,
भूखी-प्यासी भटक रही है, तू तो द्वारे-द्वारे.
देख दुर्दशा तेरी मैया, बहे नैन से पानी.
अबला गैया हाय
तुम्हारी है यह दुखद कहानी.
पीकर तेरा दूध यहाँ पर, जिसने ताकत पाई,
वही एक दिन पैसे खातिर, निकला निपट
कसाई.
स्वारथ में अंधी दुनिया ने, बात कहाँ-कब
मानी.
अबला गैया हाय
तुम्हारी, है यह दुखद कहानी.
गो-सेवा का अर्थ यहाँ अब, केवल रूपया-पैसा,

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