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गोवर्धनधारी की दुलारी गौ माँ

गोवर्धनधारी की दुलारी गौ माँ
साधु संतोँ मुनियोँ की प्यारी गौ माँ
ममता की मृदु फुलवारी गौ माँ
पर्यावरण की रखवाली गौ माँ
मानव पे सदा उपकारी गौ माँ
कदम कदम सुखकारी गौ माँ
हाय फिर भी है दुखियारी गौ माँ
संकट मेँ आज है हमारी गौ माँ
.
गौमाता का दूध अमृत समान है
गोबर और मूत्र भी गुणोँ की खान हैँ
रक्तचाप मधुमेह ज्वर अस्थमा
कैँसर जैसे रोगोँ का ये करे खात्मा
गौमूत्र के जैसे एंटीबॉयटिक नहीँ है
घी से ज्यादा कुछ स्वास्थ्यदायक नहीँ है
हृदय रोग मेँ भी गुणकारी गौ माँ
संकट मेँ आज है हमारी गौ माँ
.

गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन छोड़ती है।

गाय अपने निःश्वास में ऑक्सीजन
छोड़ती है। डा. जूलिशस व डॉ. बुक
(कृषि वैज्ञानिक जर्मनी)।

गाय अपने सींग के माध्यम से कॉस्मिक
पावर ग्रहण करती है।

एक थके माँदे व तनावग्रस्त
व्यक्ति को स्वस्थ एवं सीधी गाय के नीचे
लिटाने से उसका तनाव एवं थकावट कुछ
ही मिनटों में दूर हो जाती है
तथा व्यक्ति पहले से ज्यादा ताजा एवं
स्फूर्तियुक्त हो जाता है। (वैज्ञानिक
पावलिटा, चेक यूनिवर्सिटी)।

भारतीय नस्ल के गाय की 15 खूबियां, जो उन्हें माता का दर्जा प्रदान करती है

1.  भविष्य पुराण में लिखा गया है कि गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं का और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगा, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र का वास  हैं।

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है?

चिकित्सा में पंचगव्य क्यों महत्वपूर्ण है?
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गाय के दूध, घृत, दधी, गोमूत्र और गोबर
के रस को मिलाकर पंचगव्य तैयार
होता है। पंचगव्य के प्रत्येक घटक द्रव्य
महत्वपूर्ण गुणों से संपन्न हैं।
इनमें गाय के दूध के समान पौष्टिक और
संतुलित आहार कोई नहीं है। इसे अमृत
माना जाता है। यह विपाक में मधुर,
शीतल, वातपित्त शामक, रक्तविकार
नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।
गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय
गुणों से भरपूर है। गाय के दही से
बना छाछ पचने में आसान और पित्त

प्रश्न— लोगों में गो रक्षा की भावना कम
क्यों हो रही है ?
उत्तर— गाय के कलेजे, मांस, खून आदि से बहुत-
सी अंग्रेजी दवाइयाँ बनती हैं | उन दवाइयों का सेवन
करनेसे गाय के मांस, खून आदि का अंश लोगों के पेट में
चला गया है और उनकी बुद्धि मलिन हो गयी है और
उनकी गाय के प्रति श्रद्धा, भावना नहीं रही है |
लोग पापसे पैसा कमाते है और उन्हीं पैसों का अन्न
खाते हैं, फिर उनकी बुद्धि शुद्ध कैसे होगी और
बुद्धि शुद्ध हुए बिना सच्ची, हितकर बात अच्छी कैसे
लगेगी ?
स्वार्थबुद्धि अधिक होने से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट

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