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एक माँ का दर्द ..........

में आप की गाय माता बोल रही हू

क्या आप को पता है की मेरी हत्या की क्या साजा है ? सायद नहीं और जो साजा इन दरिंदों को मिलती है मेरी हत्या की आप को लगता है की य काफी है ??

मेरी हत्या की साजा केवल 5 से 6 साल है य फिर जुरमाना दे कर भी छुट जाते है ! बहुत से केसों में तो पुलिस वाले उनेहे पैसे लेकर ही छोड़ देते है !

में आप से पूछ रही हू की आप की माँ के हत्यारों को य साजा काफ्ही है ??

अगर आप की माँ होती तो क्या आप तबभी कुछ नहीं कहेते !

है सायद में एक बेजबान जानवर ही तो हू

गाय ही श्रेष्ठ क्यों’’? मात्र कम फैट वाले दूध के कारण हमने गाय को पालना कम कर दिया और भैंसों का पालन बढ़ा दिया। कभी ये नहीं सोचा कि फैट व दूध की मात्रा के साथ गुणों का ध्यान भी रखा जाना चाहिये। ‘शंख’ चाहे जितना बड़ा हो पर छोटे से ’’मोती’ की बराबरी नहीं कर सकता। वनस्पति घी तथा देशी घी में फैट समान है फिर भी दोनों के भावों में दुगना अंतर है क्योंकि दोनों के गुणों में अंतर है। तो फिर गाय और भैंस के दूध—दही—मक्खन, घी आदि में भी अतंर होता है इस बात को स्वीकार करना चाहिये। 

गर्ग संहिता गोलोक—खण्ड अध्याय—४ में लिखा है:— जिस गोपाल के पास पाँच लाख गाय हों उसे उपनंद और जिसके पास नव लाख गायें हो उसे नंद कहते हैंं। दस हजार गायों के समूह को व्रज अथवा गोकुल कहने में आता था।

इससे ये बात तो स्पष्ट हो जाती है कि ‘गाय’ द्वापर युग से ही हमारे अर्थतंत्र का मुख्य आधार रही है।

युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्न ‘‘अमृत किम् ?’’ (अमृत क्या है?) के उत्तर में ‘‘गवाऽमृतम्’’ (गाय का दूध) कहा था।

यज्ञ में काम लिया जाने वाला घृत केवल और केवल गो-घृत ही होना चाहिये, तभी देवता उसको ग्रहण करेंगे। बाजारू घृत जो कि चर्बीयुक्त हो सकता है या फिर अन्य पशुओं का घृत जो कि अशुद्ध माना जाता है, देवता नहीं दानव ग्रहण करेंगे। उससे देव शक्ति की बजाय दानवी शक्ति का पोषण होगा। परिणाम हमारे लिये निश्चित उल्टा ही होगा। अतः यज्ञ में केवल गो-गव्यों का ही प्रयोग करना चाहिये। शास्त्र विरुद्ध किया गया कार्य पूरी सृष्टि के लिये हानिकारक होता है। शास्त्र में जहाँ भी दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत आदि उल्लेख किया गया है वो केवल गाय के गव्य ही हैं, क्योंकि उस समय भैंस, जर्सी, हॉलिस्टीयन जैसे पशुओं का व्यवहार कहीं भी

हमारा खेतिहर देश जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर खड़ा है, जिसकी आत्मा गाय है। संसार के अन्य देशों के लोग दूध के लिये गाय और खेती के लिये घोड़े या मशीन रखते हैं। वहां के किसानों का काम भिन्न भिन्न पशुओं से चलता है पर हमारे पूर्वजों ने एक ही गाय से दोनों काम किए, गाय से दूध और गोपुत्र बैल से हल चलाना। गांव नगरों में भार—बोझ ढोने, कुएँ—रहट तथा तेलघानी चलाने आदि का काम भी बैलों से लिया जाता है। आज भी ७०% खेती का आधार बैल ही है। हमारे जीवन की आवश्यक खाद्यान्न वस्तुएँ खेती से ही प्राप्त होती हैं और इस हेतु गोवंश हमारे कृषि जीवन का बहुत बड़ा आधार है। वस्तु का मूल्यांकन आर्थिक दृष्टि से होता है। विश्ववि

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