यह सारी कामनायें पूर्ण करने वाली ‘‘कामधेनु’’है।

यह सारी कामनायें पूर्ण करने वाली ‘‘कामधेनु’’है।

भारत में गाय मात्र दुधारू पशु नहीं है, यह सारी कामनायें पूर्ण करने वाली ‘‘कामधेनु’’है। इससे लाखों परिवारों का पोषण होता है। डेयरी इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में ४९ हजार ग्रामीण दुग्ध उत्पादन सहकारी संगठनों के लगभग ५० लाख से ज्यादा ग्वाल परिवार प्रतिदिन ८० लाख टन दूध बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं। सन् १९८७ में दुग्ध उत्पादन ४ करोड़ टन के आसपास रहा, जो १९९५ में बढ़कर ५ करोड़ ४९ लाख टन हो गया है। दुग्ध उत्पादन में ग्वाल परिवार के अलावा सहकारी एवं निजी डेयरियां एवं गोभक्तों की बड़ी जमात सक्रिय है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन का १५००० करोड़ रुपये का योगदान माना जाता है,उसमें ७०% दूध तथा इसके उत्पादों का हिस्सा है।

दुनिया की २.५% जमीन भारत के पास है किन्तु पशु १६% है अर्थात् विश्व के सर्वाधिक पशु हमारे पास ही हैं (यह संख्या निरन्तर घट रही है— सम्पादक), यदि उनकी शक्ति का पूरा—पूरा उपयोग हो तो बेरोजगारी एवं आर्थिक विकास व अन्य सभी बाधाओं को दूर किया जा सकता है। जो किसान केवल खेतिहर है और उर्वरकों का इस्तेमाल कर मालामाल होने की कोशिश में हैं, उन पर "चार दिन की चाँदनी फिर वही अंधेरी रात’’ चरितार्थ होती है।

हम अपने राष्ट्र का कैसा विकास करना चाहते हैं, यह हमारी बुद्धि एवं दूरदर्शिता पर निर्भर है। जिन किसानों के पास गोवंश है और उनके गोबर गोमूत्र का उपयोग खाद में हो रहा है, उनकी आमदनी तथाकथित उन्नत कृषि करने वाले किसानों से डेढ़ गुनी होती है। प्रसिद्ध भू—रसायन विशेषज्ञ डॉ एच.एच.कौढ़ ने कहा भी है कि ‘‘आधुनिक कृषि से रोग तथा कीटाणु बढ़ रहे हैं क्योंकि उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा है, वहीं परम्परागत कृषि से जमीन की उर्वरा शक्ति भी कायम है और उपज भी स्वादिष्ट होती है तथा पशु एवं मानव की क्षमता का पूरा पूरा उपयोग होता है।’’ आज वैसा नहीं है इसी कारण भारत की ८८ करोड़ की आबादी में लगभग आधे लोग गरीब हैं और इसमें से भी आधे गरीबी रेखा के नीचे। बड़े उद्योगों के भरोसे २२ करोड़ लोगों यानि ५ करोड़ परिवारों का जीवन स्तर कब उठेगा, यह कहना कठिन है परन्तु गोपालन की योजना से तत्काल उन्हें लाभ पहुंचाने की गारण्टी दी जा सकती है। देश के आर्थिक विकास को सुदृढ़, स्थायी एवं उच्च स्थान पर पहुंचाने के लिये योजना आयोग को इस बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि गांधीजी की आर्थिक विकेन्द्रीयकरण एवं अन्त्योदयी अर्थव्यवस्था की नीति भी यही है। किसी देश का आर्थिक विकास तभी होता है जब वह अपने आधार को या पाये को मजबूत बनाये रखता है। इसी प्रकार हमारे देश के आर्थिक विकास का आधार ‘गाय’ है परन्तु हम उसकी निरंतर उपेक्षा कर रहे हैं और गौवंश की इस उपेक्षा के कारण ही हमारी अर्थव्यवस्था पिछढ़ रही है अत: यदि हमें विकास की ओर अग्रसर होना है तो लघु व कुटीर उद्योगों की तरफ पुन: जाना होगा ताकि बढ़ती जनसंख्या तथा बेराजगारी का निराकरण हो सके और देश की आर्थिक स्थिति ऊंची उठ सके, इसके लिये इसका आधार ‘गोवंश का पालन’ ही एकमात्र रास्ता है।

 

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