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गाय का अर्थव्यवस्था

गाय के लिए इस देश के लोगों के मन में श्रद्धा किसी अंधविश्वास या धार्मिक अनुष्ठान के कारण नही वरण 
गाय की उपयोगिता के कारण है. कृषि, ग्राम उद्द्योग, यातायात के अलावा दूध, दही और छाछ,गौमूत्र और गोबर विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोगी होते हैं. यहां तक ​​कि उसकी मौत के बाद, चर्म विभिन्न वस्तुओं के निर्माण का साधन और गाय के सींग और शरीर के अन्य भाग का खाद बनाने में उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी के लिए पोषक तत्वों में बहुत अमीर है और कृषि दृष्टि से बहुत कीमती है 

गोवंश और रोजगार

किसान के लिये केवल खेती तथा ग्वाले के लिये केवल दूध का उत्पादन व दूध की कमाई आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभप्रद नहीं है। खेती का उत्पादन व दूध की कमाई मिलकर ही किसान को संभाल सकते हैं इसीलिए हमारी सरकार भी हरित क्रांति के साथ दुग्ध क्रांति की योजना चला रही है। हरित क्रांति से कृषि का उत्पादन बढ़ा है जो उसका लक्ष्य था पर हरित क्रांति तब तक अपूर्ण है, जब तक कि दुग्ध क्रांति नहीं होती है। गांवों में भूमिहीनों की बढ़ती बेरोजगारी देखकर सरकार ने डेयरी उद्योग को प्राथमिकता दी है जिससे गांवों के लोगों को रोजगार मिले। पूरे देश के आंकड़े बताते हैं कि १९५१ में दुग्ध उत्पादन १७ मिलियन टन था जबकि १९८८ में ३६

कैसे शुरु हुआ था कसाईखानों में गौवध ?

मुस्लिम काल में गौवध नाममात्र था : श्री धर्मपाल द्वारा लिखित साहित्य में दिए गए प्रमाणों के अनुसार मुस्लिम शासन के समय गौवध अपवादस्वरूप ही होता था। अधिकांश शासकों ने अपने शासन को मजबूत बनाने और हिन्दुओं में लोकप्रिय होने के लिए गौवध पर प्रतिबंध लगाए। यह तो वे अंग्रेज और ईसाई आक्रमणकारी थे जिन्होंने भारत में गौवध को बढ़ावा दिया। अपने इस कुकर्म पर पर्दा डालने के लिए उन्होंने मुस्लिम कसाइयों की नियुक्ति बूचड़खानों में की।

मैं गाय की पूजा करता हूँ

"मैं गाय की पूजा करता हूँ | यदि समस्त संसार इसकी पूजा का विरोध करे तो भी मैं गाय को पुजूंगा-गाय जन्म देने वाली माँ से भी बड़ी है | हमारा मानना है की वह लाखों व्यक्तियों की माँ है "

- महात्मा गाँधी 

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