गाय और गांव

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

इक्कीसवीं सदी में बैलों का भविष्य

भारत में अधिकतर किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि है,लेकिन भारत सरकार की जो नीतियां चल रही हैं वे अधिकतर बड़े किसानों के लिये हैं। यंत्रीकरण और ट्रेक्टरों के लिए ऋण, अनुदान व अन्य सुविधायें उपलब्ध कराई जाती है, जिनका उपयोग वे किसान नहीं कर सकते जिनके पास चार पाँच हेक्टेयर भूमि है। उन्हें तो पशुशक्ति पर ही आधारित रहना होगा। प्रश्न यह उठता है कि क्या पशुशक्ति आर्थिक दृष्टि से ट्रैक्टर का मुकाबला नहीं कर सकती? यदि सभी पहलू देखे जाएं और उनका मूल्यांकन किया जाय तो पशुशक्ति न केवल इक्कीसवीं सदी में बल्कि शायद २५ वीं सदी में भी अधिक उपयोगी बनी रहेगी।

गाय ने कैसे बदल दिया लोगो का जीवन!

गाय ने कैसे

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के इमलिया गौंडी गांव के लोगों की जिंदगी में गौ-पालन ने बड़ा बदलाव ला दिया है। एक तरफ जहां वह लोगों के रोजगार का जरिया बन गई है, वहीं गाय की सौगंध खाकर लोग नशा न करने का संकल्प भी ले रहे हैं। इमलिया गौंडी गांव में पहुंचते ही ‘गौ संवर्धन गांव’ की छवि उभरने लगती है, क्योंकि यहां के लगभग हर घर में एक गाय है। इस गाय से जहां वे दूध हासिल करते हैं, वहीं गौमूत्र से औषधियों और कंडे (उपला) का निर्माण कर धन अर्जन कर रहे हैं। इस तरह गांव वालों को रोजगार भी मिला है।

गोवंशरक्षा - कल आज और कल

गोवंशरक्षा - कल आज और कल

गोवंशरक्षा - कल आज और कल गोवंश का इतिहास मनुष्य और सृष्टि के प्रारम्भ से शुरु होता है. पृथु मनु ने गोदोहन किया और पुथ्वी पर कृषि का प्रारंभ किया और यह धरा पृथ्वी कहलाई. मानव संरक्षण, कृषि और अन्न उत्पादन में गोवंश का अटूट सहयोग और साथ रहा है. इसही कारण ह्मर्रे शास्त्र वेद पुराण गोमहिमा से भरे है. रघुवंश के रजा दिलीप गोसेवा के पर्याय और राम जन्म सुरभि के दुग्ध द्वारा तैआर खीर से माना गया है यहां तक कि गाय (गोबर) का मलमूत्र एक पर्यावरण रक्षक के रूप में माना जाता था और फर्श और घरों की दीवारों रसोई में इस्तेमाल किया गया था. गोमूत्र शुद्ध करने के लिए हर घर,मानव शरीर में छिड़काव एक आम बात थी.

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