Skahore's blog

स्वंत्रता के जंग की प्रथम प्रेरणा - " गौ माता "

मंगल पांडेय के विरोध का कारण यहाँ गौ ही थी । गाय के मॉस से बनी कारतूस का उपयोग न करना उनके के लिए और हर भारतवासी के लिए माननीय नहीं था । और आज हम भारत माँ के संताने स्वतंत्र होने के बाद अपनी ही गौ माँ का मॉस खा रहें हैं । गांधी जी भी कहेते थे कि या तो स्वंत्रता दे दो या तो ये गौ हत्या (कतलखाने) बंद करवा दो और इन दोनों में उन्होंने गौ हत्या बंद करवाने को प्राथमिकता क्यूंकि वे जानते थे की अगर गौ बचेगी तो देश बचेगा ।केवल नाम की स्वत्रंता ही नहीं बल्कि वही गौरवशाली भारत के लिए गौ रक्षा बहुत जरूरी है । स्वतंत्रता का अर्थ है अपना तंत्र (व्यवस्था) अपने स्वाभिमान और समझ से बानायी हुई , पर ऐसा है ही

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तो यह कारन हे गाय का गोबर और गोमूत्र को पवित्र मानने का !

आपने हवनकुंड और पूजा के स्थान पर गोबर को देखा ही होगा। लोग भगवान की पूजा दोरान गौ माता के गोबर का इस्तेमाल करते हे। गाय के गोबर में भयानक रोग को ठीक करने की क्षमता होती हे। क्या आपको पता हे पुराने ज़माने में लोग गोबर के उपले में भोजन बनाते थे।

गोबर शब्द का प्रयोग गाय, बैल, भैंस या भैंसा के मल के लिये होता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास होता है। इसलिए गाय को पवित्र पशु माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय के मुख वाले भाग को अशुद्ध और पीछे वाले भाग को शुद्ध माना जाता है।

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गौ - चिकित्सा भाग - 9 ( नासूर )

नासूर ( घाव )
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यह रोग फोड़े होने पर होता है । या नस में छेद हो जाने पर होता हैं । कभी - कभी कोई हड्डी रह जाने पर भी नासूर हो जाता है । यह काफ़ी बड़ा फोड़ा हो जाता है और नस में छेद होने पर ख़ून निकलता रहता है ।

१ - औषधि - आवॅला १२ ग्राम , कौड़ी २४ ग्राम , नीला थोथा ५ ग्राम , गाय का घी ५ ग्राम , आॅवले और कचौड़ी को जलाकर , ख़ाक करके , पीसलेना चाहिए । फिर नीले थोथे को पीसकर मिलाना चाहिए । उसमें घी मिलाकर गरम करके गुनगुना कर नासूर में भर देना चाहिए ।

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